विज्ञान की जननी है वेद: डॉ. शंकर सुवन सिंह
विज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है वि+ज्ञान अर्थात विशेष ज्ञान,ही विज्ञान है| विज्ञान में "वि" पूर्वप्रत्यय है जो शब्दों के आरम्भ में जुड़कर अर्थ देता है| विज्ञान को अंग्रेजी में‘साइंस’कहते है,यह शब्द लेटिन भाषा के “साइन्सिया” शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ होता है जानना। अतएव हम कह सकते हैं किसी भी ज्ञान का विशेष स्वरुप ही विज्ञान कहलाता है| सफल जीवन के चार सूत्र हैं-जिज्ञासा,धैर्य,नेतृत्व की क्षमता और एकाग्रता|जिज्ञासा का मतलब जानने की इक्षा|धैर्य का मतलब विषम परिस्थितयों में अपने को सम्हाले रहना |नेतृत्व की क्षमता का मतलब जनसमूह को अपने कार्यों से आकर्षित करना|एकाग्रता (एक+अग्रता)का अर्थ है एक ही चीज पर ध्यान केन्द्रित करना।यही चारो सूत्र आपके ज्ञान को विशेष स्वरूप प्रदान करता है| किसी भी क्षेत्र के वैज्ञानिकों में इन चारों गुणों का समावेश होता है| रसायन का वास्तविक ज्ञान,रसायन विज्ञान है।भौतिकी का वास्तविक ज्ञान,भौतिक विज्ञान है।जीव का वास्तविक ज्ञान,जीव विज्ञान है।कृषि का वास्तविक ज्ञान,कृषि विज्ञान है।खाद्य का वास्तविक ज्ञान,खाद्य विज्ञान है।दुग्ध का वास्तविक ज्ञान दुग्ध विज्ञान है।आदि ऐसे अनेक क्षेत्रों में विज्ञान है। रसायन,भौतिकी,जीव जंतु, कृषि, खाद्य, दुग्ध,आदि अनेक क्षेत्रों के वास्तविक ज्ञान से राष्ट्रहित संभव है। विज्ञान में जो महारथ हासिल कर ले वो वैज्ञानिक है।वो विज्ञान जो अविष्कार या खोज के द्वारा विश्व पटल पर चरितार्थ हो,राष्ट्रीय विज्ञान कहलाता है। राष्ट्रीय विज्ञान योग के क्षेत्र में हो सकता है,दर्शन व अध्यात्म के क्षत्र में हो सकता है,सभ्यता व संस्कृति के क्षेत्र में
हो सकता है| कहने का तात्पर्य किसी भी क्षेत्र के ज्ञान का विशेष स्वरूप जो विश्व पर अपनी छाप छोड़े वही राष्ट्रीय विज्ञान है|ज्ञान के स्वरूप को हम दो भागों में बाँट सकते हैं - 1. आंतरिक रूप 2.वाह्य रूप| आंतरिक रूपों में स्व के साथ अनुभति वाला ज्ञान जिसको हम व्यक्त नहीं कर सकते पर महसूस करते हैं| वाह्य रूपों में वस्तुओं के क्रमबद्ध अध्ययन के आधार पर प्राप्त होने वाला ज्ञान जिसको हम व्यक्त कर सकते हैं| वाह्य रूपों में आने वाला ज्ञान जैसे रसायन,भौतकी, जैविकी , गणितीय आदि में हो सकता है|आतंरिक रूपों में आने वाला ज्ञान जैसे अध्यात्म एवं योग ,संस्कृति एवंदर्शन आदि में हो सकता है|इसको समझना इसलिए जरुरी है क्योंकि आंतरिक ज्ञान मनुष्य को आध्यात्मिक रूप से सशक्त करती है तो वहीँ वाह्य ज्ञान मनुष्य को भौतिक रूप से सशक्त करती है|अतएव हम कह सकते है की
आंतरिक ज्ञान आत्म बल को बढ़ाता है तो वहीँ वाह्य ज्ञान शारीरिक बल/विलासिता को बढ़ता है|आंतरिक ज्ञान का सम्बन्ध अध्यात्म से है तो वाह्य ज्ञान का मतलब भौतिक वस्तुओं से है|वर्ष 2020 में कोरोना महामारी तेजी से फैली थी और अनियंत्रित थी| इस दौरान लोगों ने काफी सावधानियां बरती थीं और भौतिक संसाधनों का प्रयोग कम से कम करके प्राचीन पद्वतियों का इस्तेमाल किया था|कोरोना काल में घरों में रहने के दौरान लोगों का अध्यात्म व दर्शन में रुझान बढ़ा|परिणामस्वरूप प्रकृति एवं पर्यावरण को काफी लाभ पंहुचा|पशु-पक्षी ,पेड़-पौधे,नदी,तालाब जो लुप्त होने के कगार पे थे वो पुनर्जीवित हो उठे | स्वच्छ पर्यावरण का सीधा असर मानव के जीवन पर देखने को मिला|कोरोना काल में मानव ने आंतरिक ज्ञान का भरपूर लाभ उठाया| ज्ञान का यही विशेष स्वरुप मानव जाती के लिए सौ प्रतिशत
लाभप्रद है| वहीँ वाह्य ज्ञान का विशेष स्वरुप जैसे रसायन,भौतिकी,गणितीय आदि मानव को लाभ पहुंचाते हैं पर सौ प्रतिशत नहीं क्योंकि इन सब के अविष्कार में कहीं न कहीं मानव पर प्रतिकूल असर भी पड़ा है| जैसे परमाणु बम देश को सुरक्षा तो प्रदान करती है पर मानव जाती पर प्रतिकूल असर भी डालती है इसका प्रमाण नागासाकी और हिरोशिमा ( द्वितीय विश्व युद्ध)| हिरोशिमा और नागासाकी परमाणु बमबारी 6 अगस्त 1945 की सुबह अमेरिकी वायु सेना ने जापान के हिरोशिमा पर परमाणु बम "लिटिल बॉय" गिराया था। तीन दिनों बाद (9 अगस्त) अमरीका ने नागासाकी शहर पर "फ़ैट मैन" परमाणु बम गिराया। जिसका खामियाजा जापान की पूरी मानव जाती भुगती| आज भी लोग वहां अपंग पैदा होते हैं और बीमार भी पड़ते हैं| इस कारण से वहां के पर्यावरण को बहुत नुक्सान पंहुचा| हालांकि परमाणु सिद्धांत और अस्त्र के जनक जॉन डाल्टन (6 सितंबर 1766 -27 जुलाई 1844) को माना जाता है, लेकिन उनसे भी लगभग 913 वर्ष पूर्व ऋषि कणाद ने वेदों में लिखे सूत्रों के आधार पर परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया था।आज से 2600 वर्ष पूर्व ब्रह्माण्ड का विश्लेषण परमाणु विज्ञान की दृष्टि से सर्वप्रथम एक शास्त्र के रूप में सूत्रबद्ध ढंग से महर्षि कणाद ने अपने वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित किया था। कुछ मामलों में महर्षि कणाद का प्रतिपादन आज के विज्ञान से भी आगे है।महर्षि कणाद ने परमाणु को ही अंतिम तत्व माना। आज के वाहन,एयर कंडीशन,और भैतिक सुविधाएं जहां आराम देते हैं तो वहीँ इनका मानव जाती पर प्रतिकूल असर पड़ता है| वाहन से निकलने वाली लेड,कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बनडाई ऑक्साइड,सल्फरडाई ऑक्साइड,नाइट्रोजन ऑक्साइड हानिकारक गैसें पर्यावरण और मानव दोनों को छति पंहुचाती हैं| पेट्रोल में लेड की मिलावट के कारण धुएं के माध्यम से एरोसोल के कण निकल रहे हैं। मानकों पर गौर करें तो मानव स्वास्थ्य के लिए 0.002 एमएम तक एरोसोल कण नुकसानदायी नहीं होते, लेकिन दिल्ली में किए गए मेजरमेंट में एरोसोल के कण 0.0383 एमएम तक पाए गए हैं। जो लोगों के नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है। वेदों में वर्णित बिना ईंधन के उड़ने वाले विमान-अनेनो वो मरुतो यामो अस्त्वनश्वश्चिद्यमजत्यरथी:। अनवसो अनभीशू रजस्तूर्वि रोदसी पथ्या याति साधन् ।।–(ऋग्वेद (6/66/7)
भावार्थ–मन्त्र में अत्यंत स्पष्ट शब्दों में अणुशक्ति से चालित यान का वर्णन है। देश के सैनिकों के पास इस प्रकार के यान होने चाहिए जो बिना ईंधन,लकड़ी और पैट्रोल के ही गति कर सकें। कैसे हों वे यान ? वे यान अणुशक्ति से चालित होने चाहिए।उनमें घोड़े जोतने की आवश्यकता न हो। उनमें लकड़ी,कोयला,हवा, पानी,पैट्रोल की आवश्यकता भी न हो। उनमें लगाम,रास,अथवा संचालक- साधन की आवश्यकता न हो। वे स्वचालित हों। वे भूमि पर भी चल सकें और आकाश में भी गति कर सकें। वे विभिन्न प्रकार की गतियाँ करने में समर्थ हों। इस प्रकार के वेदों में सेकड़ों मन्त्र है जिनमें विमान बनाने का विस्तार से वर्णन है।हालांकि वेदों की सेकड़ों शाखा आज लुप्त हों चुकी है परंतु इसके बावजूद आज प्राचीन विज्ञान संबंधी अनेकों ग्रंथ कहीं न कहीं उपलब्ध है। उनमें से कुछ हमारे पास भी उपलब्ध है। हमें अपने सच्चे ज्ञान की और लौटना चाहिए जिसमें भौतिक उन्नति के साथ आद्यत्मिक उन्नति भी हों। वरना केवल भौतिक उन्नति विनाश का कारण बनती है और आज के विश्व में यही हों रहा है। आज इसके कारण भ्रष्टाचार,व्याभिचार,प्रदूषण,आतंकवाद,गरीबी,बीमारियाँ,भेद–भाव तथा मनुष्य नर-पिशाच बनते जा रहे है। इन सब समस्याओं का समाधान केवल वेदों के सिद्धांतों पर चलने से होगा। अत: एक बार फिर से "वेदों की और लौटने" की बात कहने वाले महर्षि दयानन्द सरस्वती की बात मानना हम सबका परम धर्म है। वेदों में वर्णित विज्ञान या उसकी खोज मानव कल्याण की बात करता है| आज का विज्ञान मानव विलासिता की बात करता है|आज विज्ञान जरुरी है पर इसको वेदों से सिखने की आवश्यकता है|तभी आज का विज्ञान सौ प्रतिशत मानव जाती के लिए और पर्यावरण के लिए लाभ प्रद होगा| आज का विज्ञान वाह्य ज्ञान से परिपूर्ण है| वेदों का विज्ञान आंतरिक ज्ञान से परिपूर्ण था|अतएव हम कह सकते हैं कि वेद विज्ञान की जननी है,क्योंकि इसका विज्ञान प्रकृति को समर्पित है| वेदों का विज्ञान मानव कल्याणकारी है |
लेखक
डॉ. शंकर सुवन सिंह
वरिष्ठ स्तम्भकार एवं विचारक
सहायक प्रोफेसर,कृषि विश्वविद्यालय ,प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)