'ऑपरेशन सिंदूर': आतंकवाद के खिलाफ भारत का सटीक प्रहार
'ऑपरेशन सिंदूर': आतंकवाद के खिलाफ भारत का सटीक प्रहार

भारतीय सशस्त्र बलों ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में एक महत्वपूर्ण और निर्णायक कदम उठाते हुए एक गुप्त सैन्य अभियान को अंजाम दिया, जिसे 'ऑपरेशन सिंदूर' नाम दिया गया है। इस ऑपरेशन के तहत, भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर (POK) में सक्रिय कुख्यात आतंकी संगठनों - जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के पहचाने गए ठिकानों पर सटीक हवाई हमले किए।
ये ठिकाने लंबे समय से इन आतंकी संगठनों के लिए रीढ़ की हड्डी का काम कर रहे थे। इनका उपयोग न केवल नए आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने और कट्टरपंथी बनाने के लिए किया जाता था, बल्कि ये भारत में घुसपैठ और आतंकी हमलों को अंजाम देने के लिए 'लॉन्चपैड' के तौर पर भी काम करते थे। इन अड्डों में हथियार और गोला-बारूद भारी मात्रा में जमा रहते थे, और यहीं से भारत विरोधी साजिशों की योजना बनाई जाती थी।
ऑपरेशन सिंदूर में जिन विशिष्ट ठिकानों को निशाना बनाया गया उनमें POK के कोटली, बरनाला कैंप, सरजाल कैंप, महमूना कैंप और बिलाल जैसे महत्वपूर्ण स्थल शामिल थे। इसके अलावा, पाकिस्तान की मुख्य भूमि में स्थित मुरीदके (जो लश्कर-ए-तैयबा का मुख्यालय माना जाता है), बहावलपुर (जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा), गुलपुर और सवाई कैंप जैसे ठिकानों को भी निशाना सूची में शामिल किया गया।
ठिकानों के चयन के पीछे के कारण और रणनीतिक महत्व:
इन ठिकानों को लक्ष्य बनाने के पीछे कई गहन रणनीतिक कारण थे:
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आतंकी सरगनाओं के गढ़: नेस्तनाबूद किए गए कई ठिकाने सीधे तौर पर आतंकी सरगनाओं जैसे हाफिज सईद (जो लश्कर-ए-तैयबा का संस्थापक है) और मसूद अजहर (जैश-ए-मोहम्मद का मुखिया) के नियंत्रण वाले क्षेत्रों या उनके प्रभाव वाले अड्डों में थे। पीओके के कोटली, बरनाला कैंप, सरजाल कैंप, महमूना कैंप और बिलाल जैश और लश्कर के प्रमुख गढ़ माने जाते रहे हैं। इन पर प्रहार कर भारत ने न केवल उनके निचले स्तर के कैडरों को नुकसान पहुँचाया, बल्कि उनके नेतृत्व और कमांड संरचना पर भी दबाव बनाया।
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लॉन्चपैड और प्रशिक्षण शिविर: इन जगहों का मुख्य उपयोग भारत में आतंकवादियों की घुसपैठ कराने के लिए लॉन्चपैड के रूप में और नए आतंकियों को भर्ती एवं प्रशिक्षित करने के लिए प्रशिक्षण शिविरों व हथियार भंडारण केंद्रों के रूप में किया जाता था। कोटली कैंप, जो राजौरी के सामने एलओसी से लगभग 15 किमी दूर है, लश्कर का एक प्रमुख अड्डा बताया जाता है जिसकी क्षमता लगभग 50 आतंकियों को रखने की थी। बिलाल कैंप को जैश का लॉन्चपैड माना जाता था, जबकि बरनाला कैंप (राजौरी के सामने एलओसी से 10 किमी) और सरजाल कैंप (सांबा-कठुआ के सामने अंतरराष्ट्रीय सीमा से 8 किमी) भी सक्रिय घुसपैठ मार्गों के पास स्थित थे। महमूना कैंप (सियालकोट के पास अंतरराष्ट्रीय सीमा से 15 किमी) भी एक महत्वपूर्ण ठिकाना था।
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हमले की साजिशों से सीधा संबंध: इन ठिकानों को खास तौर पर इसलिए चुना गया क्योंकि ऐसी खुफिया जानकारी थी कि इनका सीधा संबंध भारत के खिलाफ भविष्य में होने वाले संभावित हमलों की साजिशों और उन्हें अंजाम देने वाले आतंकियों से था। इन पर हमला करके भारत ने संभावित आतंकी खतरों को उनके उद्गम स्थल पर ही निष्क्रिय करने का प्रयास किया।
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भारत की सीमा से निकटता और घुसपैठ: जिन ठिकानों पर हमला किया गया, वे भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा (IB) और नियंत्रण रेखा (LoC) के काफी करीब स्थित थे। उनकी यह रणनीतिक निकटता आतंकियों के लिए घुसपैठ करना, हथियारों की तस्करी करना और भारत में तेजी से हमले की योजना बनाना आसान बनाती थी। इन्हें निशाना बनाकर भारत ने आतंकियों की प्रमुख आपूर्ति श्रृंखलाओं, संचार नेटवर्क और घुसपैठ क्षमताओं को गंभीर रूप से बाधित करने का लक्ष्य रखा। कोटली और सियालकोट जैसे क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से आतंकी गतिविधियों के लिए कुख्यात रहे हैं।
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सटीक खुफिया जानकारी: भारतीय सेना और खुफिया एजेंसियों ने इन विशिष्ट ठिकानों को चुनने के लिए अत्यंत सटीक और विश्वसनीय खुफिया जानकारी का उपयोग किया। ऑपरेशन की योजना इस तरह से तैयार की गई थी कि केवल आतंकवादी ढांचे और उनके ठिकानों को ही अधिकतम नुकसान पहुँचे, जबकि पाकिस्तानी सेना के सैन्य प्रतिष्ठानों या नागरिक क्षेत्रों को जानबूझकर निशाना न बनाया जाए। यह भारत के संयम और जिम्मेदाराना सैन्य आचरण को दर्शाता है।
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प्रतीकात्मक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव: ऑपरेशन का नाम ‘सिंदूर’ (जो भारतीय परंपरा में विजय और शक्ति का प्रतीक है) और विशिष्ट आतंकी अड्डों पर केंद्रित हमला, आतंकवाद के खिलाफ भारत के दृढ़ और आक्रामक रुख का स्पष्ट प्रतीक है। यह आतंकी संगठनों और उनके पाकिस्तानी आकाओं के लिए एक सीधी और जोरदार चेतावनी थी कि भारत अब किसी भी आतंकी गतिविधि या घुसपैठ के प्रयास को बर्दाश्त नहीं करेगा और वह अपनी संप्रभुता व नागरिकों की रक्षा के लिए सीमा पार कार्रवाई करने से हिचकिचाएगा नहीं। इसका उद्देश्य आतंकियों और उनके समर्थकों के मनोबल को तोड़ना भी था।
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सैन्य क्षमता का प्रदर्शन: इन लक्ष्यों को सफलतापूर्वक भेदकर भारत ने अपनी बढ़ती सैन्य और तकनीकी क्षमताओं का प्रदर्शन किया है। सटीक हवाई हमले करने के लिए आधुनिक तकनीक, जिसमें संभवतः 'मेड इन इंडिया' लॉइटरिंग म्यूनिशन जैसे स्वदेशी रूप से विकसित हथियार शामिल थे, का उपयोग भारत की रक्षा प्रौद्योगिकी में प्रगति और उसकी आक्रामक सैन्य शक्ति को दर्शाता है। यह दिखाता है कि भारत के पास अब ऐसे उपकरण हैं जिनसे वह बेहद सटीक और लक्षित हमले कर सकता है।
संयम और सटीकता:
इस ऑपरेशन की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि भारत ने अत्यधिक संयम का परिचय दिया। एयर स्ट्राइक में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि पाकिस्तान का कोई भी सैन्य ठिकाना या नागरिक आबादी इसकी जद में न आए। भारत की लड़ाई केवल और केवल आतंकवादी ढांचे और उन्हें पनाह देने वालों से थी, न कि पाकिस्तानी सेना या आम लोगों से। यह भारत को एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में स्थापित करता है जो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और सैन्य आचार संहिता का पालन करता है, जबकि साथ ही आतंकवाद के खिलाफ अपनी रक्षा करने में सक्षम और दृढ़ है।