भारतीय संस्कृति समग्र मानवता के कल्याण और सार्वभौमिक दृष्टिकोण पर आधारित
भारतीय संस्कृति समग्र मानवता के कल्याण और सार्वभौमिक दृष्टिकोण पर आधारित
महाकुम्भ नगर, 12 जनवरी(हि.स.)। भारतीय संस्कृति समग्र मानवता के कल्याण और सार्वभौमिक दृष्टिकोण पर आधारित है। वसुधैव कुटुम्बकम् और सर्वे भवन्तु सुखिनः के मंत्र भारतीय दर्शन का मूल है जो पूरी दुनिया को एक परिवार मानने का संदेश देते हैं। यही विचारधारा हमारे जीवन को न केवल आध्यात्मिक रूप से समृद्ध करती है, बल्कि सामाजिक रूप से भी एक मजबूत आधार प्रदान करती है तथा समाज में शांति और सहिष्णुता को बढ़ावा देती है। उक्त बातें महर्षि ज्ञानयुग दिवस महोत्सव में परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहीं।
उन्होंने कहा कि प्रकृति की अनन्त धारा में निरंतर प्रवाहित होते हुए, भारतीय संस्कृति ने हमेशा से मानवता के हित में अपने असीमित ज्ञान का विस्तार किया है। भारतीय संस्कृति और परम्पराएं पूरे विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत रही हैं।
महर्षि आश्रम, संगम तट, अरैल प्रयागराज में आयोजित होने वाला महर्षि ज्ञानयुग दिवस महोत्सव भारतीय संस्कृति, योग, ध्यान, और वैदिक परम्पराओं को आत्मसात करने का दिव्य अवसर है।
उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति, जिसका आधार प्रकृति और ब्रह्मांड के साथ एकता पर आधारित है। भारतीय संस्कृति की जड़ें सदियों पुरानी हैं, इसकी शक्ति और महिमा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी पहले थी। भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा योगदान यह है कि यह जीवन के हर पहलू को दिव्यता और सत्य से जोड़ने का प्रयास करती है।
भारतीय संस्कृति, प्रकृति को केवल एक संसाधन के रूप में नहीं देखती बल्कि इसे एक जीवंत शास्त्र मानती है। जिसे समझने और महसूस करने की आवश्यकता है। प्रकृति का हर तत्व ब्रह्म के अद्वितीय रूप का प्रतिबिंब है। प्रकृति से हम केवल भौतिक रूप से नहीं जुड़े हैं, बल्कि यह हमारी आत्मा और चेतना का भी एक अभिन्न हिस्सा है। प्रकृति से जुड़ने का अर्थ केवल वृक्षारोपण या जल संरक्षण करना नहीं है, बल्कि यह समझना है कि हम जो कुछ भी हैं, वह प्रकृति के बिना कुछ भी नहीं हैं। प्रकृति का संरक्षण मानवता का संरक्षण है। जब हम प्रकृति का सम्मान करेंगे, तभी हम अपने जीवन के उद्देश्य और दिशा को समझ पाएंगे। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को केवल बाहरी रूप से ही नहीं, बल्कि आंतरिक रूप से भी देखा जाता है।
प्रकृति की अनन्त धारा में निरंतर प्रवाहित होते हुए भारतीय संस्कृति ने हमेशा मानवता के हित में अपने असीमित ज्ञान का विस्तार किया है और यह ज्ञान हम सभी को एक साथ जोड़ने, शांति की ओर मार्गदर्शन करने और जीवन के वास्तविक उद्देश्य की ओर अग्रसर करने का कार्य करता है।