विकास का दूषित मॉडल ने जनजातियों को अविकसित मानकर खाई निर्मित की : अशोक भगत

जनजातीय समाज भारतीय सामाजिक संरचना की मूल धारा : पद्मश्री अशोक भगत

विकास का दूषित मॉडल ने जनजातियों को अविकसित मानकर खाई निर्मित की : अशोक भगत

प्रयागराज, 03 सितम्बर। जनजातीय समाज भारतीय सामाजिक संरचना की मूल धारा है। हमारी सनातनी परम्परा जनजातियों में अक्षुण्ण हैं और हमारे देश की संस्कृति और सम्पदा की संरक्षक भी हैं। परंतु विकास के दूषित मॉडल के अंतर्गत भारत में जनजातियों से संवाद स्थापित नहीं किया गया और हमने स्वयं को विकसित और जनजातियों को अविकसित मानकर एक खाई निर्मित की।

उक्त विचार मुख्य अतिथि पद्मश्री अशोक भगत ने शुक्रवार को ईश्वर शरण पीजी कॉलेज के समाजशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित एवं 'आईसीएसएसआर, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित 'उभरते जनजातीय परिदृश्यः भारत में विकास और संपोष्णीयता' विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार के उद्घाटन पर व्यक्त किया।

उन्होंने आगे कहा कि इससे नक्सलवाद जैसी समस्याएं उत्पन्न हुई है। नक्सलवाद जैसी समस्या के समाधान स्वरूप हथियारों से हथियारों की लड़ाई तो हो सकती है परंतु हथियार से हथियार समाप्त नहीं किये जा सकते। हथियारों की समाप्ति के लिए दृष्टिकोण में परिवर्तन आवश्यक है और यह आदिवासियों के मध्य रहकर विकास कार्य संपादन और समाज में उनके आत्मसातीकरण से सम्भव होगा।

-जनजातीय क्षेत्रों का विकास कागज पर ही हुआ : प्रो. चौधरी

आईसीएसएसआर, नई दिल्ली राष्ट्रीय अध्येता व मुख्य वक्ता प्रो.एस.एन चौधरी ने कहा कि इस काल में जनजाति विकास के समक्ष भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियों के कारण जनजातीय क्षेत्रों का विकास कागज पर ही हुआ। जनजातियां सहज, सरल, साहसी, ईमानदार हैं। परंतु ये तत्व उक्त विकास मॉडल के मानक नहीं है। वर्तमान परिदृश्य में बाजार केंद्रित अर्थव्यवस्था के अंतर्गत जनजातियों का अध्ययन भी बाजार केंद्रित मूल्यों के आधार पर ही हो रहा है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में संस्थान और नीति निर्माण से जनजातियों का विकास तथा समस्या निवारण सम्भव नहीं होगा। बल्कि जनजातियों से प्रत्यक्ष सम्पर्क और उनके सांस्कृतिक साक्षात्कार के माध्यम से ही जनजातियों का विकास करने की अपरिहार्य आवश्यकता है।

-जनजातियां सदैव प्रकृति के निकट व प्रकृति पर निर्भर रही : प्रो आनंद

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के कुलपति प्रो.आनंद कुमार त्यागी ने स्पष्ट किया कि जनजातियां सदैव ही प्रकृति के निकट, प्रकृति पर निर्भर, प्रकृति से सह अस्तित्ववान रही है। वर्तमान आर्थिक विकास प्रक्रिया के अंतर्गत प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन ने पारिस्थितिकी असंतुलन उत्पन्न किया जिससे जनजातीय जीवन शैली, जीवन मूल्य प्रतिकूलतः प्रभावित हुए हैं और नक्सलवाद जैसी समस्याएं उत्पन्न हुई है। जो इन क्षेत्रों के विकास को नकारात्मक प्रभावित करती है। वर्तमान विकास प्रक्रिया के अंतर्गत संपोष्णीता का प्रश्न मानवीय अस्तित्व का प्रश्न है। यह जनजातियों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों की भी प्रमुख समस्या है।

कोरिया, छत्तीसगढ़ के पुलिस अधीक्षक संतोष कुमार सिंह ने कहा कि अधिकांश जनजातीय क्षेत्र नक्सल प्रभावित हैं, जिससे उनका विकास बाधित हो रहा है। जनजातीय क्षेत्र विकास में उपेक्षित, सुदूर दुर्गम सघन वन भौगोलिक क्षेत्र है जो नक्सल हमलों के लिए सुभेद्य हैं। विगत 25 वर्षों से नक्सली लोकप्रिय मुहावरे 'जल, जंगल, जमीन हमारा' के आधार पर वैकल्पिक शासन व्यवस्था स्थापित करने का दावा करते हैं। परंतु वे इसके संचालन में पूर्णतः असफल सिद्ध हुए हैं। हिंसा समर्थन, भारत विरोधी एवं जनविरोधी विचार ही नक्सलियों का वैचारिक प्रदेय है।

ग्राम विकास क्षेत्र निदेशक ललन कुमार शर्मा ने कहा कि भारत के सारे जनजातीय क्षेत्र किसी न किसी रूप में समस्या ग्रस्त हैं और उन्हीं समस्याओं के बीच से हमें विकास के रास्ते निर्मित करने होंगे। 'जल, जंगल, जमीन हमारा' वस्तुतः एक मुहावरा न होकर जनजातीय जीवन का मूल स्पंदन है। जनजातीय समाज अपनी संस्कृति एवं जीवन मूल्यों के प्रति संवेदनशील है। वर्तमान परिदृश्य में कृषि पशुपालन पर आश्रित, 'गो आधारित कृषि मॉडल' जनजातीय क्षेत्रों के विकास हेतु आदर्श मॉडल सिद्ध हो सकता है।

महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.आनंद शंकर सिंह ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि धर्म संस्कृति आदि की मुख्यधारा जनजातीय सामाजिक संस्कृति में ही विद्यमान है वहीं से यह मुख्यधारा निःसृत होकर परवर्ती समाज में समाहित होती है। स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी 50 प्रतिशत जनजातीय जनसंख्या का गरीबी रेखा के नीचे होना चिंतनीय है। विकास की धारा में जिस प्रकार जनजातीय समावेशन होना चाहिए, नहीं हुआ। राष्ट्रीय वेबिनार में विश्वविद्यालय, संघटक महाविद्यालयों के शिक्षकों, विद्वतजनों, शोध छात्रों और देश-देशांतर के विविध राज्यों के प्रतिभागियों ने सहभागिता की। संचालन वेबिनार समन्वयिका डॉ. शाइस्ता इरशाद ने और धन्यवाद ज्ञापन वेबिनार संयोजक डॉ. विकास कुमार ने किया।