संविधान भारत के लोकतंत्र की आधारशिला : प्रो मुकुल शरद सुतावाने
संविधान भारत के लोकतंत्र की आधारशिला : प्रो मुकुल शरद सुतावाने

प्रयागराज, 28 अप्रैल (हि.स.)। भारतीय संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि एक जीवंत इकाई है। जो न्याय, समानता और स्वतंत्रता के आदर्शों को मूर्त रूप देती है और यह प्रत्येक भारतीय की पहचान को आकार देती है। यह एक अनुस्मारक के रूप में कार्य करता है।
उक्त विचार भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद (ट्रिपल आईटी) के निदेशक प्रोफेसर मुकुल शरद सुतावाने ने सोमवार को प्रशासनिक ब्लॉक सभागार में आयोजित “हमारा संविधान, हमारा स्वाभिमान“ कार्यक्रम में व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह वाक्यांश भारत के संविधान और राष्ट्र के गौरव और पहचान के बीच गहरे सम्बंध पर जोर देता है। 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है और उन सिद्धांतों और मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है जिन पर भारत खड़ा है-लोकतंत्र, समानता, न्याय, धर्मनिरपेक्षता और कानून का शासन।
निदेशक ने कहा कि जब हम “हमारा संविधान“ कहते हैं, तो हम उस आधारभूत दस्तावेज का उल्लेख करते हैं जो न केवल देश के शासन का मार्गदर्शन करता है बल्कि प्रत्येक नागरिक के अधिकारों और स्वतंत्रता की सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है। “हमारे स्वाभिमान“ संविधान के प्रति भारत के प्रत्येक नागरिक के सम्मान और गरिमा को दर्शाता है, जो इसे एकता, विविधता और शक्ति का प्रतीक मानता है। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार देता है जो वर्तमान परिवेश में भी उनकी स्वतंत्रता, समानता और न्याय सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रमुख वक्ता बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के लॉ विभाग के प्रो. रजनीश पटेल ने कार्यशाला को (ऑनलाइन) मोड में “भारतीय संविधान के मूल अधिकार और वर्तमान परिवेश“ विषय पर अपने विचार व्यक्त किये।
प्रोफ़ेसर पवन चक्रवर्ती, डीन, विद्यार्थी ने कहा कि भारतीय संविधान घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों तरह के कई स्रोतों के संयोजन से प्राप्त हुआ है। जिसने इसकी संरचना, प्रावधानों और कार्यप्रणाली को आकार देने में मदद की। इसकी व्युत्पत्ति ऐतिहासिक, कानूनी और दार्शनिक प्रभावों में निहित है, जिन्होंने इसके निर्माण में योगदान दिया।
प्रोफ़ेसर ओ पी व्यास, डीन इंफ्रास्ट्रक्चर ने कहा कि भारतीय संविधान ऐतिहासिक परिस्थितियों, दार्शनिक विचारों और वैश्विक प्रभावों का परिणाम है। इसे एक लचीला, प्रगतिशील दस्तावेज़ के रूप में डिज़ाइन किया गया था जो मौलिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए और सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देते हुए भारत के विविध सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य को प्रतिबिंबित करेगा। जिस तरह से यह कई स्रोतों-विशेष रूप से ब्रिटिश कानूनी प्रणाली, अमेरिकी संघवाद और गांधीवादी आदर्शों-से प्रेरित है, वह भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की जटिलता और विशिष्टता को दर्शाता है।
डीन डेवलपमेंट प्रोफेसर शेखर वर्मा ने कहा कि भारत का संविधान एक जीवंत दस्तावेज है, जो समय के साथ संशोधनों और न्यायिक व्याख्याओं के माध्यम से विकसित होता रहा है। इसका उद्देश्य अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करके और सभी नागरिकों के कल्याण को बढ़ावा देकर एक न्यायपूर्ण, लोकतांत्रिक और समावेशी समाज का निर्माण करना है। ट्रिपल आईटी के मीडिया प्रभारी डॉ पंकज मिश्र ने बताया कि कार्यक्रम का संचालन डॉ. संजय कुमार सिंह ने एवं धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव प्रोफेसर मंदार कार्यकर्ते ने किया।