कुम्भ मेला अद्वितीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव है : गुरूशरणानन्द
कुम्भ मेला अद्वितीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव है : गुरूशरणानन्द
महाकुम्भ नगर, 16 जनवरी (हि.स.)। प्रयागराज में आयोजित गुरूकार्ष्णि कुम्भमेला शिविर में स्वामी चिदानन्द सरस्वती का विशेष आशीर्वाद व उद्बोधन प्राप्त हुआ। प्रसिद्ध कथाकार रमेश भाई ओझा के कथा का शुभारम्भ हुआ। गुरूशरणानन्द महाराज ने कहा कि कुम्भ मेला, एक अद्वितीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव है। स्वामी जी ने विशेष रूप से समाज के प्रत्येक वर्ग से यह आह्वान किया कि वे इस महाकुम्भ का लाभ उठाएं और आत्म-ज्ञान की दिशा में कदम बढ़ाएं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने इस अवसर पर कहा कि कुम्भ, कोई कल्पना नहीं बल्कि करूणा का महासागर है। यह मिथ नहीं, बल्कि एक सत्य है। कुम्भ मेला एक काल्पनिक कथा नहीं, बल्कि एक सजीव और प्रामाणिक परम्परा है। कुम्भ मेला एक धार्मिक अनुष्ठान के साथ एक सामाजिक और मानसिक जागरण का अद्भत केन्द्र है, जो मानवता की सेवा का संदेश देता है। यह समुद्र मंथन की कथा के साथ स्वयं के मंथन का संदेश देती है। अमृत मंथन के साथ-साथ यह आत्म मंथन का अवसर प्रदान करती है।
उन्होंने कहा कि महाकुम्भ मेला एक अद्भुत प्रयोग है, जो हमें इस बात का संदेश देता है कि हम समाज के लिए कैसे उपयोगी, सहयोगी और योगी बन सकते हैं। हमारे ऋषियों ने सदियों से यह प्रयोग किया है कि कैसे हम अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं। यह मेला इसके सकारात्मक परिणामों को भी दर्शाता है। प्रयागराज का कुम्भ मेला विशेष रूप से विलक्षण है, क्योंकि यहां दुनिया भर से लोग आते हैं, ताकि वे इस पावन अवसर का अंग बन सकें।
वर्तमान समय में महाकुम्भ का प्रभाव केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में महसूस किया जा रहा है। इंटरनेट और सर्च इंजनों पर महाकुम्भ की खोज में अभूतपूर्व वृद्धि देखने को मिल रही है। करोड़ों लोग, जो कुम्भ में स्नान करने प्रयागराज नहीं आ सकते, वे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर महाकुम्भ के वैचारिक पक्ष में डुबकी लगा रहे हैं। विश्व भर में लोग इस विशेष उत्सव के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्सुक हैं। इंटरनेट पर इसकी सर्चिंग में निरंतर वृद्धि हो रही है। कुम्भ मेला, जो सदियों से हमारे पूर्वजों द्वारा आयोजित किया जाता आ रहा है, आज डिजिटल युग में भी अपनी महिमा को समर्पित है। यह दिखाता है कि कुम्भ मेला केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर है, जो पूरे विश्व में भारतीयता की पहचान बना हुआ है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने इस अवसर पर समाज में सहयोग, सहिष्णुता और भाईचारे के महत्व पर जोर देते हुये कहा कि महाकुम्भ केवल आत्मा का साक्षात्कार करने का स्थल नहीं है, बल्कि यह समाज में सामूहिक जागरूकता और सेवा का एक अद्वितीय अवसर भी है। स्वामी ज्ञानानन्द ने कहा कि इस अद्भुत महाकुम्भ के साक्षी बनना और इस ज्ञान के समुद्र में गोता लगाना एक अनमोल अनुभव है, जो जीवन भर के लिए स्मरणीय है।