काशी और तमिलनाडु के बीच का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध हजारों वर्षों पुराना : गजेंद्र सिंह शेखावत

बोले- ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की परिकल्पना को साकार करने वाला ऐतिहासिक सांस्कृतिक आयोजन

काशी और तमिलनाडु के बीच का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध हजारों वर्षों पुराना : गजेंद्र सिंह शेखावत

वाराणसी, 17 फरवरी (हि.स.)। केन्द्रीय संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने सोमवार को कहा कि काशी और तमिलनाडु के बीच का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक संबंध हजारों वर्षों पुराना है। यह संबंध भारतीय सभ्यता की एकता और विविधता का प्रतीक है। तमिल भाषा दुनिया की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है, और तमिल संस्कृति अपने समृद्ध साहित्य, संगीत, नृत्य, लोककलाओं और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है। केन्द्रीय मंत्री काशी तमिल संगमम 3 के तीसरे संस्करण के तीसरी निशा में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में शरीक होने के साथ मेहमानों को सम्बोधित कर रहे थे। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (प्रयागराज) एवं दक्षिण क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (तंजावुर) के संयुक्त तत्वावधान में नमोघाट के मुक्ताकाशीय मंच पर आयोजित सांस्कृतिक निशा में केन्द्रीय मंत्री ने कलाकारों की प्रस्तुति भी देखी। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि काशी-तमिल संगमम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की परिकल्पना को साकार करने वाला ऐतिहासिक सांस्कृतिक आयोजन है। प्रधानमंत्री मोदी ने काशी-तमिल संगम जैसे आयोजन के माध्यम से उत्तर और दक्षिण भारत की आत्मीयता को पुनर्जीवित करने का कार्य किया है। काशी भारत की आध्यात्मिक राजधानी है, तो तमिलनाडु भारतीय संस्कृति का गौरव है। दोनों की संस्कृति में श्रद्धा, भक्ति और कला की एक समान धारा प्रवाहित होती है। उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम न केवल सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करता है, बल्कि भारतीय समाज की अखंडता और एकता की भावना को भी मजबूत करता है।

—लोकनाट्य शैली ठेरुकूट्टू का प्रदर्शन

संगमम की तीसरे निशा में तमिलनाडु की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की विविध प्रस्तुतियां हुईं। इसमें भरतनाट्यम की प्रस्तुति माला होम्बल और उनकी टीम ने दी। जिसमें भाव, राग और ताल के माध्यम से देवी-देवताओं की स्तुति, भक्ति और मानव जीवन के विभिन्न भावों को सजीव किया गया। इसके बाद पी. अन्नादुरई और उनकी टीम ने तमिलनाडु की पारंपरिक लोकनाट्य शैली ठेरुकूट्टू का प्रदर्शन किया। मुखौटे, रंगीन वेशभूषा और कथा-वाचन के साथ प्रस्तुत इस नाट्य कला ने पौराणिक कथाओं को मंच पर जीवंत कर दिया। इसके बाद के. अशोक कुमार और उनकी टीम ने पेरियामेलम, दमुकु एवं सत्तीमेलम की वाद्य प्रस्तुति दी, जिसमें ढोल, नगाड़े और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की गूंज ने दक्षिण भारत के ग्राम्य उत्सवों और मंदिरों की भव्यता का अनुभव कराया। मदुरै से आए सेंतिल वेलुकुमार और उनके दल ने तमिल महाकाव्य कम्ब रामायण के अंशों की प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति में भगवान राम की मर्यादा पुरुषोत्तम छवि और रावण के साथ युद्ध प्रसंगों को प्रभावशाली ढंग से दर्शाया गया। इसके बाद कट्टईकल, करगम, थप्पत्तम और लोकगीतों की मनमोहक प्रस्तुतियां हुईं। करगम नृत्य में सिर पर कलश रखकर संतुलन साधते हुए नर्तक-नर्तकियों ने अपनी अद्भुत कला का परिचय दिया, जबकि थप्पत्तम नृत्य में लोकसंगीत और ताल की थाप के साथ तमिल जनजीवन की झलक प्रस्तुत की गई।