अभियुक्त के जमानत की सुनवाई पीड़ित पक्ष को नोटिस बगैर नहीं : हाईकोर्ट
कोर्ट ने कहा-गैर जमानती अपराध में जमानत का विधिक अधिकार नहीं, जज के विवेक पर निर्भर
प्रयागराज, 28 सितम्बर । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किशोर न्याय कानून के तहत जमानत अर्जी की सुनवाई से पहले पीड़ित व शिकायत कर्ता को सुनवाई का अवसर दिया जाना जरूरी है। हाईकोर्ट में दाखिल पुनरीक्षण अर्जी में जमानत पर रिहा करने की सुनवाई बिना शिकायतकर्ता को नोटिस जारी किए नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने शिकायतकर्ता विपक्षी को नोटिस जारी कर चार हफ्ते में जवाब मांगा है। यह आदेश न्यायमूर्ति डॉ वाई के श्रीवास्तव ने हत्या के आरोपी नाबालिग योगेश की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि किशोर न्याय कानून के तहत गिरफ्तारी के बाद किशोर आरोपी को लॉकअप या जेल नहीं भेजा जायेगा। उसे बाल कल्याण पुलिस को सौंपा जाएगा और 24 घंटे में बोर्ड के सामने पेश किया जाएगा। जहां से उसे प्रोवेशन अधिकारी के संरक्षण में सुरक्षा के साथ आश्रय स्थल में रखा जायेगा।
कोर्ट ने कहा कि किशोर अभियुक्त को जमानत पर रिहा करने से इंकार किया जा सकता है। ऐसा करते समय देखा जायेगा कि छूटने के बाद वह कहीं अपराधियों से मिल तो नहीं जायेगा। उसे नैतिक, शारीरिक व मानसिक खतरा तो नहीं होगा। रिहाई न्याय हित के विरुद्ध तो नहीं है। कोर्ट ने कहा कि किशोर को गैर जमानती अपराध में जमानत पाने का विधिक अधिकार नहीं है। यह न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर करता है।
मालूम हो कि मथुरा के वृंदावन थानाक्षेत्र में पीट पीट कर मार डालने के आरोप में 22 सितम्बर 20 को एफआईआर दर्ज कराई गई। आरोपी मृतक को तब तक पीटते रहे जब तक मौत नहीं हो गयी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया कि सिर में गम्भीर चोटों के कारण मौत हुई। पुलिस ने याची सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। किशोर न्याय बोर्ड ने याची की आयु 16 वर्ष 6 माह 16 दिन बताया।
जिला प्रोबेशन अधिकारी ने बोर्ड को रिपोर्ट दी कि याची पर परिवार का नियंत्रण नहीं है। उसके अपराधियों के साथ जाने की सम्भावना है। इस पर कोर्ट ने जमानत अर्जी खारिज कर दी। अपील भी खारिज हो गई। हाईकोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की गई थी। सवाल उठा कि क्या बिना पीड़ित पक्ष को नोटिस जारी किए जमानत अर्जी की सुनवाई की जा सकती है। कोर्ट ने कहा जमानत अर्जी पर पीड़ित पक्ष को सुना जाना जरूरी है।