सोनिया ने 12 सांसदों के निलंबन को बताया नियम विरूद्ध

सोनिया ने 12 सांसदों के निलंबन को बताया नियम विरूद्ध

सोनिया ने 12 सांसदों के निलंबन को बताया नियम विरूद्ध

नई दिल्ली, 8 दिसंबर। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राज्यसभा से 12 सांसदों के निलंबन को अपमानजनक और अभूतपूर्व बताया। उन्होंने कहा कि इस फैसले से सबको गहरा आघात लगा है। फैसला संविधान और राज्यसभा के कार्य करने के तरीके और नियमों दोनों के विरुद्ध है।

कांग्रेस संसदीय दल की बुधवार को बैठक हुई। बैठक में सोनिया गांधी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी निलंबित सांसदों के साथ एजुटता से खड़ी है।

सोनिया गांधी ने पार्टी संसदीय दल की बैठक में कहा कि कई मुद्दे हैं, जिन्हें हम उठाना चाहते हैं। उनमें से महत्वपूर्ण, भारतीय कृषि के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों और अपनी आजीविका खो चुके परिवारों को प्रत्यक्ष आय सहायता की तत्काल आवश्यकता पर चर्चा करना शामिल है। हमें इस पर जोर देना चाहिए।

सोनिया ने नागालैंड में सैन्य कार्रवाई में नागरिकों की मौत को पीड़ादायक बताया और कहा कि सरकार का केवल खेद व्यक्त करना काफी नहीं है। पीड़ित परिवारों के लिए जल्द से जल्द न्याय सुनिश्चित किया जाना चाहिए। ऐसी भयानक त्रासदियों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए विश्वसनीय कदम उठाए जाने चाहिए।

कांग्रेस अध्यक्षा ने अपने उद्बोधन में मांग की कि सरकार को तुरंत पड़ोसियों के साथ रिश्तों और सीमा पर हालात पर सदन में चर्चा करानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार मुश्किल सवालों का जवाब नहीं देना चाहती लेकिन स्पष्टीकरण मांगना विपक्ष का अधिकार और कर्तव्य है। मोदी सरकार बहस के लिए समय आवंटित करने से लगातार मना करती आ रही है।

सोनिया गांधी ने सरकार को कोविड की स्थिति और आर्थिक हालात पर भी घेरा। उन्होंने कहा कि वह अपेक्षा करती हैं कि नए कोविड वैरिएंट को ध्यान में रखते हुए सरकार पिछली गलतियों से सीख लेगी। साथ ही उन्होंने कहा कि महामारी ने आर्थिक नुकसान को तेज कर दिया लेकिन सरकार के आधे-अधूरे और नासमझी भरे जवाबों से स्थिति और भी गंभीर हो गई है। सरकार यह घोषणा करती रही है कि अर्थव्यवस्था तेजी से ठीक होने की राह पर है। लेकिन वसूली किसके लिए असली सवाल है?

उन्होंने बढ़ती मंहगाई और किसानों का मुद्दा भी उठाया। बैठक में उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों को लाते समय और उन्हें रद्द करते समय सरकार ने लोकतांत्रिक तरीकों को नहीं अपनाया। यह किसानों की एकजुटता और दृढ़ता, उनके अनुशासन और समर्पण ने एक ‘अभिमानी’ सरकार को पीछे हटने के लिए मजबूर किया है।