बिकरू कांड में पुलिस कार्रवाई की गुप्त सूचना देने के मामले में इंस्पेक्टर व दरोगा की जमानत नामंजूर
बिकरू कांड में पुलिस कार्रवाई की गुप्त सूचना देने के मामले में इंस्पेक्टर व दरोगा की जमानत नामंजूर
प्रयागराज, 21 सितम्बर। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कानपुर के चर्चित बिकरू कांड केस में विकास दुबे व उसके गैंग के लोगों को पुलिस की किसी भी कार्रवाई की गुप्त सूचना देने के आरोपी थाना प्रभारी रहे विनय तिवारी व पुलिस सब इंस्पेक्टर केके शर्मा की जमानत अर्जी नामंजूर कर दी है।
इन दोनों पर घटना के मुख्य आरोपी विकास दुबे व उसके गैंग को पुलिस दबिश की जानकारी देने का आरोप है। जिसकी वजह से दबिश के दौरान सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की जान चली गई थी। जमानत अर्जी पर न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने सुनवाई कर आदेश पारित किया है।
कोर्ट ने कहा कि इस बात के पर्याप्त प्रमाण है कि याचीगण ने पुलिस के दबिश की जानकारी गैंगस्टर विकास दुबे और उसके साथियों को पहले ही दे दी थी। कोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग के कुछ लोग अपने विभाग के बजाय गैंगस्टर के ज्यादा वफादार है। याचीगण के इस कार्य से गैंगस्टर पुलिस दबिश को लेकर न सिर्फ सचेत हो गए बल्कि उनको जवाबी कार्रवाई करने का मौका भी मिल गया। जिसके कारण पुलिस वालों को जान गंवानी पड़ी।
याचीगण के वकील का कहना था की दोनों पुलिस कर्मियों के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है। यह एक सामान्य पुलिस रेड थी जिसमें मुठभेड़ के कारण आठ पुलिस वाले मारे गए। याचीगण के विरुद्ध कोई भी ठोस साक्ष्य नहीं उपलब्ध है। जबकि सरकारी वकील का कहना था कि के के शर्मा और विनय तिवारी विकास दुबे और उसके गैंग के नियमित सम्पर्क में थे। वह उनकी अपराधिक गतिविधियों से आंख मूंदे रहते थे और निश्चित रूप से घटना वाले दिन उन्होंने विकास दुबे की मदद की थी।
कोर्ट का कहना था कि पुलिस बल तमाम कठिनाइयों से जूझ रहा है। उसके पास अत्याधुनिक हथियार नहीं है। जबकि अपराधियों के पास पुलिस से बेहतर हथियार होते हैं। थानों में पर्याप्त संख्या में पुलिस नहीं है। आबादी के लिहाज से पुलिसकर्मियों की संख्या काफी कम है। कोर्ट ने यह भी कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा अपराधियों व गैंगस्टर को अपनी पार्टी में शामिल करने का चलन काफी चिंताजनक है। यह राजनीतिक पार्टियां न सिर्फ इन अपराधियों को संरक्षण देती हैं बल्कि इनकी छवि को रोबिन हुड की तरह पेश किया जाता है। उनको चुनाव लड़ने के लिए टिकट भी दिया जाता है। और कई बार ऐसे अपराधी जीत भी जाते हैं।
कोर्ट का कहना था कि इस प्रकार के चलन को जितनी जल्दी हो सके बंद कर देना चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को साथ बैठ कर यह तय करना होगा कि गैंगस्टर और अपराधियों को राजनीति में ना आने दे और कोई भी पार्टी ऐसे लोगों को टिकट ना दे। क्योंकि यह प्रवृत्ति न सिर्फ कानून के राज को नुकसान पहुंचाएगी बल्कि देश के लोकतांत्रिक स्वरूप को भी बिगाड़ती है।
उल्लेखनीय है कि 3 जुलाई 2020 को गैंगस्टर विकास दुबे के गांव बिकरू में पुलिस टीम दबिश देने गई थी। मगर गैंगस्टर को पुलिस के आने की खबर पहले ही लग गई थी। जिसकी वजह से उसने घेराबंदी करके सीओ समेत आठ पुलिसकर्मियों की नृशंस हत्या कर दी गयी थी। बाद में विकास दुबे मध्य प्रदेश से गिरफ्तार किया गया और यूपी वापस आते समय भागने की कोशिश में पुलिस के हाथों मारा गया था।