ट्रेन संचालन संरक्षा में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन में भारी निवेश

उत्तर मध्य रेलवे में 108 किमी की स्वचालित सिग्नलिंग कार्य पूरा

ट्रेन संचालन संरक्षा में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन में भारी निवेश

प्रयागराज, 06 अप्रैल । उत्तर मध्य रेलवे में सिग्नलिंग और दूरसंचार सम्बंधी आधारभूत संरचना के उन्नयन क्षेत्र में वर्ष 2021-22 में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की गईं। तकनीकी उन्नयन में निवेश करने वाले सभी क्षेत्रीय रेलों में उत्तर मध्य रेलवे, वर्ष 2021-22 में लगभग 317 करोड़ के कुल निवेश से पहले स्थान पर रहा। उत्तर मध्य रेलवे में 108 किलोमीटर ऑटोमेटिक सिग्नलिंग स्थापना का कार्य वर्ष के दौरान पूरा किया गया। जो संपूर्ण भारतीय रेल (218 किमी) में स्थापित स्वचालित सिग्नलिंग का लगभग आधा है।

मुख्य जनसम्पर्क अधिकारी डॉ शिवम शर्मा के मुताबिक इसमें 74 किमी नई कमीशनिंग और 34 किमी पुरानी सिग्नलिंग को बदलने का कार्य शामिल है। इसके अलावा, विभिन्न स्टेशनों पर 37 नई इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग (ईआई) को स्थापित किया गया। यह एक वर्ष में अब तक का सबसे अधिक ईआई कमीशन है और भारतीय रेलवे में स्थापित कुल 421 ईआई का लगभग 9þ है। इसमें 14 स्टेशनों पर यांत्रिक सिग्नलिंग को समाप्त करके उसके स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग की स्थापना की महत्वपूर्ण उपलब्धि शामिल है।

2021-22 के दौरान उत्तर मध्य रेलवे में 10 समपारों को इंटरलॉक किया गया। इसके साथ ही कुल 395 लेवल क्रॉसिंग गेट इंटरलॉक कर दिए गए हैं। इसी क्रम में एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की गई, जिसमें 17 पुराने यांत्रिक गेटों के स्थान पर बिजली द्वारा संचालित गेटों का (तकनीकी रूप से पावर ऑपरेटेड लिफ्टिंग बैरियर कहा जाता है) प्रावधान किया गया है।

यात्री सुविधाओं में कुल 121.3 किमी ऑप्टिकल फाइबर केबल चालू किया गया है। साथ ही उत्तर मध्य रेलवे के सभी ब्रॉडगेज नेटवर्क को अब ओएफसी प्रदान कर दिया गया है। इसके साथ ही 14 स्टेशनों को वाई-फाई कनेक्टिविटी भी प्रदान की गई। इस प्रकार उत्तर मध्य रेलवे के कुल 296 स्टेशन पर अब वाई-फाई उपलब्ध हैं। इसके अलावा, 7 स्टेशनों झींझक, शिकोहाबाद, टूंडला, दतिया, उरई, झांसी और बांदा में ट्रेन डिस्प्ले बोर्ड लगाया गया है।

रेलवे में दो प्रमुख प्रकार की सिग्नलिंग प्रणाली का उपयोग किया जाता है। पहली एबसोल्यूट ब्लॉक प्रणाली है, जिसमें एक समय में दो स्टेशनों के बीच एक ट्रेन होती है, और वहीं दूसरी ट्रेन को केवल तभी प्रवेश करने की अनुमति दी जाती है जब पहली ट्रेन ब्लॉक सेक्शन से निकल चुकी होती है। दो स्टेशनों के बीच के हिस्से को ब्लॉक सेक्शन कहा जाता है। इस प्रणाली को आगे बढ़ाते हुए इंटरमीडिएट ब्लॉक स्टेशन (आईबीएस) का प्रावधान किया जाता है, जिसमें खंड में एक सिग्नल प्रदान करके खंड को दो उपखंडों में विभाजित किया जाता है और इस प्रकार दो ट्रेनों को दो स्टेशनों के बीच समायोजित किया जाता है।

इसी क्रम में दूसरे प्रकार की सिग्नलिंग प्रणाली स्वचालित सिग्नलिंग की है। इस सिस्टम में लगभग 1-1.5 किलोमीटर के बाद लगातार सिग्नल दिए जाते हैं और दो सिग्नल के बीच में एक ट्रेन हो सकती है। इस प्रकार व्यावहारिक रूप से प्रदान किए गए स्वचालित सिग्नल की संख्या के आधार पर दो स्टेशनों के बीच कई ट्रेनें हो सकती हैं। स्वचालित सिग्नलिंग से लाइन क्षमता बढ़ जाती है। इससे मौजूदा ट्रैक का उपयोग करके एक ही मार्ग में अधिक ट्रेनें चलाई जा सकती हैं। इसका उपयोग भारतीय रेलवे के व्यस्त मार्गों में किया जाता है।