बरसाना लट्ठामार होली : नंदगांव के हुरियारों (ग्वाले) पर गोपियां ने बरसाई प्रेमपगी लाठियां

मुझे अपने ही रंग में रंग ले दिलदार सांवरे, बरसाना में बरसो ऐसो रंग तीन लोक में नायै

बरसाना लट्ठामार होली : नंदगांव के हुरियारों (ग्वाले) पर गोपियां ने बरसाई प्रेमपगी लाठियां

मथुरा, 11 मार्च  । बरसाना की रंगीली गली शुक्रवार के आंनद स्वर्ग और अपवर्ग के सुख को फीका करता मालूम दे रही है। हुरियारिनें (गोपियाें) हाथों में चमचमाती लाठियां लिए घूंघट की ओट से हुरियारों (ग्वाले) पर तड़ातड़ प्रहार कर रही हैं। हुरियारे अपनी ढालों पर इन प्रहारों को झेल कर अपने को बचा रहे है रहे।

स्त्री आज उन्मुक्त है और पुरुष रक्षा आवरण के होते हुए भी असहाय होता दिख रहा है। पुरुष का नारी शक्ति के सामने समर्पण और प्रतिकार न कर पाने का यह दृश्य दुनिया को नारी तत्व की प्रधानता का सन्देश दे रहा है कि संसार मातृत्व शक्ति से द्वारा ही संचालित है। इस दृश्य को देखने के लिए देश विदेश से लाखों का जनसैलाब उमड़ा हुआ है।



गौरतलब हो कि, होली का जिक्र हो और उसमें बरसाने की होली का जिक्र न हो ये कैसे संभव है। कहा जाता है कि इस अद्भुत और अलौकिक होली के दरम्यान सूर्य, चन्द्रमा भी ठहर जाते है और सभी देवतागण भी इस लीला के दर्शन करने के लिए उपस्थित होते है।

दरअसल, कृष्णकालीन होली भगवान कृष्ण की लीलाओं की पुनरावृत्ति है मान्यता है कि कृष्ण अपने सखाओं के साथ कमर में फेंटा बांधकर राधारानी और उनकी सखियों के साथ हंसी ठिठोली करते हुए होली खेलते थे। आज भी इसी परम्परा का निर्वहन उसी कृष्ण कालीन रूप में किया जाता है।



शुक्रवार को सुबह से ही समूची राधा नगरी उत्साह और उल्लास से लबरेज दिखाई दे रही थी। देश दुनिया में विख्यात लठामार रंगीली होली का आनंद उठाने को लाखों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ आए। कस्बे की हर एक गली श्रद्धालुओं के आवागमन की चहल पहल की गवाह बनी। रगीली गली में तो पैर रखने को भी जगह नहीं मिली। बालक, युवा और वृद्ध सभी का जोश देखते ही बन रहा था। सुबह से ही श्रद्धालुओं ने गहवर वन की परिक्रमा लगाना शुरु कर दिया। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालु जोश व मस्ती से नाचते कूदते होली के भजन गाते चल रहे थे। श्रद्धालुओें ने एक दूसरे को गुलाल लगाकर होली की शुभकामनाएं दी।

बरसाना कस्बे की गलियों में खड़े स्थानीय लोगों ने परिक्रमा लगा रहे श्रद्धालुओं पर गुलाल और रंग की बारिश की। श्यामा श्याम मंदिर, गोपाल जी मंदिर, राम मंदिर, सांकरी खोर, विलास गढ़, गह्वर वन, रस मंदिर, मोर कुटी, राधा सरोवर, मान गढ़, दानगढ और कुशल बिहारी मंदिर से होते हुए परिक्रमार्थी लाडिली जी के मंदिर में पहुंचे। मंदिर में लोगों ने राधा रानी के चरणों में गुलाल भेंट किया। हुरियारिनें सुबह से ही होली की तैयारियों में जुटी हैं। हुरियारिनों (गोपियां) का उत्साह देखते ही बन रहा है। आखिर साल भर जिस दिन का इंतजार रहता है वो आ पहुंचा है। राधा रानी की लीलाओं में सहभागिता करने का मौका जो मिला है।

खुद के भाग्य सराहती हुरियारिनें (गोपियां) अपनी पंरपरागत पोशाक लंहगा चुनरी को पहन कर तैयार थी। कान्हा के सखा होली खेलने आते ही होंगे। दोपहर करीब दो बजे नंदगांव से हुरियारों के टोल के टोल आने शुरु हो गए। हुरियारों (ग्वाले) की जोश और उमंग देखते ही बन रही है। धोती और बगलबंदी पहने हुरियारे (ग्वाले) कंधे पर ढाल रखे हुए हैं। ससुराल आने के चाव में ज्यादातर हुरियारे (ग्वाले) अपने मुखिया के नेतृत्व में पैदल ही ढाई कोस चले आए। नंद भवन से कान्हा की प्रतीक ध्वजा के पीछे पीछे हुरियारे (ग्वाले) नाचते झूमते गाते आये। मुख पर पसीना झलक रहा है लेकिन थकान कहीं भी दिखाई नहीं दे रही है। बरसाना में पहुंचते ही प्रिया कुंड पर सब इकठ्ठे हो गए।

बरसाना के गोस्वामी समाज के मुखिया के नेतृत्व में हजारों बरसानावासी उनके स्वागत को जा पहुंचे हैं। भांग की ठंडाई में केवडा, गुलाबजल ओर मेवा घोल कर हुरियारों (ग्वाले) को पिलाई जा रही है। जो कभी भांग नहीं पीता वो हुरियारा (ग्वाला) भी आज भांग पिये बिना रह नहीं पाता। यहा पर हुरियारों (ग्वाले) ने अपने सिरों पर पाग बांधी हैं। प्रिया कुंड के घाटों पर सैकडों हुरियारे (ग्वाले) एक दूसरे के पाग बांध रहे हैं। जो छोटे बच्चे पहली बार होली खेलने आए हैं उनके पिता या दादा उनकी पाग बांध रहे है। ऐसा लग रहा है कि हुरियारा (ग्वाले) बनने की पंरपरा का अगली पीढ़ी को उत्तराधिकार दिया जा रहा है। प्रिया कुंड पर पाग बांधने के बाद हुरियारे (ग्वाले) लाडिली जी मंदिर की ओर चल दिए है। दरसन दे निकरि अटा में ते दरसन दे गाते हुए हुरियारे (ग्वाले) मंदिर में प्रवेश कर गए।

कान्हा की प्रतीक ध्वजा को मंदिर में किशोरी जी के पास रख दिया जाता है। जो इस बात का प्रतीक है कि नटवर नंद किशोर फाग खेलने के लिए बरसाना आ चुके हैं। मंदिर में दोनों गांवों के गोस्वामियों के मध्य संयुक्त समाज गायन किया गया। समाज गायन में दोनों पक्ष एक दूसरे पर प्रेम भरे कटाक्ष करने लगे। समाज गायन के बाद हुरियारे (ग्वाले) मंदिर से उतर कर रंगीली गली में आ पहुंचे। रंगीली गली में हुरियारिनें (गोपियां) अपने द्वारों पर टोल बना कर खड़ी हुई है। हुरियारों (ग्वाले) ने उनको देखकर पंचम वेद के प्रचलित पदों का गायन शुरु कर दिया। जिसके बाद हुरियारिनें (गोपियां) लाठियां लेकर हुरियारों (ग्वाले) पर पिल पड़ी। हुरियारों (ग्वाले) का बच के निकलना बड़ा मुश्किल हो गया। हुरियारिनों (गोपियां) के लाठी प्रहारों को हुरियारों ने बड़ी कुशलता से अपनी ढालों पर झेलना शुरु कर दिया। एक ओर हुरियारिने (गोपियां) पूरे जोश से लाठियां बरसा रही थी।

वहीं हुरियारे (ग्वाले) किसी कुशल योद्धा की तरह सिर पर ढाल का आवरण रखे उछल उछल कर खुद को बचा रहे थे। इस आनंदपूर्ण दृश्य को देखने के लिए लाखों श्रद्धालु उमड़ रहे थे। लोग घंटो पहले से आस पास के मकानों की छतों, छज्जों आदि पर जमे थे कि लठमार की एक झलक देख सकें। यही है अनूठी और अलौकिक बरसाना की लट्ठमार होली जिसको शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता क्योंकि यह होली है ही इतनी आकर्षक कि लोग टकटकी लगाये देखते रहते हैं और बरबस ही कहने लगते है वाह क्या कहने इस राधा कृष्ण की प्रेम से ओतप्रोत होली के।