बाबा विश्वनाथ के गौने की तैयारी,गौरा की हल्दी, गाए गए मंगल गीत
रंगभरी एकादशी उत्सव का पहला दिन, मंहत आवास बना गौरा का मायका
वाराणसी, 11 मार्च । उत्सव प्रिय काशी नगरी में बाबा विश्वनाथ के गौने को लेकर लोगों में जबरदस्त उत्साह है। शिव-पार्वती विवाह के उपरांत रंगभरी (अमला) एकादशी पर बाबा के गौना की रस्म शुक्रवार से शुरू हो गई। टेढ़ीनीम स्थित विश्वनाथ मंदिर के महंत आवास पर रस्म के पहले दिन गौरा के रजत विग्रह को संध्या बेला हल्दी लगाई गई।
गौरा के विग्रह को तेल हल्दी सुहागिनों और गवनहिरयों की टोली ने लगाईं। इस उत्सव में मोहल्ले की बुजुर्ग महिलाएं भी शरीक हुईं। हल्दी की रस्म के बीच ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक पर मंगल गीत महंत आवास पर गुंजायमान हो उठा। लोक संगीत के बीच बीच शिव-पार्वती के मंगल दाम्पत्य की कामना पर आधारित पारंपरिक गीतों का क्रम देर तक चला। ‘गौरा के हरदी लगावा, गोरी के सुंदर बनावा...’,‘सुकुमारी गौरा कइसे कैलास चढ़िहें...’, ‘गौरा गोदी में लेके गणेश विदा होइहैं ससुरारी...’ आदि गीतों में गौने के दौरान दिखने वाली दृश्यावली का बखान किया गया।
दुल्हे के स्वागत के लिए कौन कौन से पकवान पकाए जा रहे हैं। सखियां गौरा पार्वती का साज श्रृंगार करने के लिए कैसे कैसे सुंदर फूल चुन कर ला रही हैं। हल्दी की रस्म के बाद नजर उतारने के लिए ‘साठी क चाऊर चूमिय चूमिय..’ गीत गाकर महिलाओं ने गौरा की रजत मूर्ति को चावल से चूमा। गौरा के तेल-हल्दी की रस्म के लिए महंत डा. कुलपति तिवारी सानिध्य मे संजीव रत्न मिश्र ने माता गौरा का श्रृंगार किया और अंकशास्त्री पं. वाचस्पति तिवारी के संयोजन में सांस्कृतिक कार्यक्रम "शिवांजली" के अंतर्गत अराधना सिंह, पुनीत पागल, सजय दूबे, प्रियंका पांडेय और रीता शर्मा ने शिव भजनों की प्रस्तुति की। 14 मार्च को रंगभरी (अमला) एकादशी पर बाबा विश्वनाथ, माता पार्वती संग प्रथमेश की चल प्रतिमा की पालकी यात्रा निकलेगी।