संगम नगरी प्रयागराज में आज से माघ मेले की शुरुआत
रिपोर्टः राजुल शर्मा
प्रयागराज माघ मेला 2021 मकर संक्रांति का विशेष पर्व संगम तट पर मनाया जा रहा है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है। इसी दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं। शास्त्रों में उत्तरायण की अवधि को देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि कहा गया है। इस तरह मकर संक्रांति एक प्रकार से देवताओं का प्रभात काल है। इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का अत्यधिक महत्व है। कहते हैं कि इस अवसर पर किया गया दान सौ गुणा होकर प्राप्त होता है। मकर संक्रांति के दिन घृत-तिल-कंबल-खिचड़ी दान का विशेष महत्व है। इसका दान करने वाला संपूर्ण भोगों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त होता है।
मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान तथा गंगा तट पर दान की विशेष महिमा है। मकर संक्रांति मेला तो सारे विश्व में विख्यात है।
स्पष्ट है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर तीर्थ राज प्रयाग में मकर संक्रांति पर्व के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदल कर स्नान के लिए आते हैं। यही वजह है कि मकर संक्रांति पर्व के दिन स्नान करना अनंत पुण्यों को एकसाथ प्राप्त करना माना जाता है। मकर संक्रांति पर्व पर इलाहाबाद (प्रयाग) के संगम स्थल पर प्रतिवर्ष लगभग एक मास तक माघ मेला लगता है, जहां भक्तगण कल्पवास भी करते हैं। बारह वर्ष में एक बार कुंभ मेला लगता है। यह भी लगभग एक माह तक रहता है।
मकर संक्रांति पर्व प्रायः प्रतिवर्ष 14 जनवरी को पड़ता है। खगोल शास्त्रियों के अनुसार इस दिन सूर्य अपनी कक्षाओं में परिवर्तन कर दक्षिणायन से उत्तर होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं। जिस राशि में सूर्य की कक्षा का परिवर्तन होता है, उसे संक्रमण या संक्रांति कहा जाता है। हमारे धर्म ग्रंथों में स्नान को पुण्यजनक के साथ-साथ स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक माना गया है।
मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं, गरम मौसम आरंभ होने लगता है।
उत्तर भारत में गंगा-यमुना के किनारे (तट पर) बसे गांवों, नगरों में मेलों का आयोजन होता है। भारत वर्ष का सबसे प्रसिद्ध मेला बंगाल में मकर संक्रांति पर गंगा सागर में लगता है। इसके अतिरिक्त दक्षिण बिहार के मदार क्षेत्र में भी एक मेला लगता है। पंजाब, जम्मू-कश्मीर एवं हिमाचल प्रदेश में लोहड़ी के नाम से मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। एक प्रचालित लोक कथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन कंस ने श्री कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा था, जिसे श्री कृष्ण ने खेल-खेल में ही मार डाला था। उसी घटना के फलस्वरूप लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। सिंधी समाज भी मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व इसे लाल लोही के रूप में मनाता है। दक्षिण भारत में संक्रांति पोंगल के रूप में मनाया जाता है।