प्रयागराज: किसी राष्ट्र के लिए सद्भावना ही भावनात्मक और आंतरिक एकता का कारण : आचार्य
किसी राष्ट्र के लिए सद्भावना ही भावनात्मक और आंतरिक एकता का कारण : आचार्य
प्रयागराज, 01 अगस्त । आज समाज में बदलाव आया है और इसके कारण समरूपता, संवेदनशीलता, बंधुत्व, आत्म त्याग, सेवाभाव, वफादारी, सद्भावना और भावनात्मक एवं आंतरिक एकता पर कुछ प्रश्न चिन्ह अवश्य लगे हैं। परंतु इन प्रश्नों का निराकरण “संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम“ के मूल मंत्र से हो सकता है। किसी राष्ट्र के लिए सद्भावना ही भावनात्मक और आंतरिक एकता का कारण बनती है।
यह विचार इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा “सामाजिक सद्भावना: आवश्यकता एवं महत्व“ विषयक वेबीनार में अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश के कुलपति प्रो0 राजकुमार आचार्य ने व्यक्त किया। उन्होंने कहा सतही विवादों के आधार पर सद्भावना, एकता और अखंडता को प्रश्नवाचक निगाहों से नहीं देखा जा सकता है। यह जरूर है कि एकल परिवार की अवधारणा के कारण सहनशीलता और समरसता के हमारे मूल्य कमजोर हुए हैं। गांव, मोहल्ले और नगर तक विस्तृत हमारी मानवीय भावना अब केवल अपने परिवार तक सीमित हुई है। लेकिन हम जिस देश के निवासी हैं वहां असद वृत्तियों की कभी विजय नहीं होती, बल्कि सदवृत्तियां ही जीतती हैं।
प्रो0 आचार्य ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी इस बदलाव का वाहक बनने जा रही है। सद्भावना का नया रूप, मूल्यपरक शिक्षा का नया रूप, इस शिक्षा नीति से खड़ा होगा। उन्होंने कहा कि समाज में जो कुछ भी श्रेष्ठ हो, हम और हमारे शिक्षक और शिक्षार्थी उसे ग्रहण करें। देश हमें सब कुछ देता है, हम भी तो कुछ देना सीखें।
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति प्रो रमेश कुमार पाण्डेय ने कहा कि असहमति और द्वेष प्राचीन काल में भी रहा होगा, लेकिन हमें “ईशावास्यमिदं सर्वं यतकिंच जगत्याम जगत“ के भाव का अनुशीलन करना चाहिए। 18 पुराणों में दो ही वचन व्यास ने निष्कर्ष रूप में कहे हैं, वे वचन हैं परोपकार और परहित की चिंता। सद्भावना ही नहीं समस्त प्रकार की बातों के मूल में परहित भाव ही प्रधान है। हमारा कर्तव्य है समाज निर्माण, व्यक्ति निर्माण, राष्ट्र निर्माण। उन्होंने कहा अयोध्या से निकलने वाले तीन लोग राम, सीता, लक्ष्मण कैसे संख्या, शक्ति, पराक्रम, पौरुष और बल में भारी होते गए और अंत में असद का नाश करने में भी समर्थ रहे। यही इस देश की रीति है।
कार्यक्रम के आयोजक इविवि राष्ट्रीय सेवा योजना के समन्वयक डॉ राजेश कुमार गर्ग ने कहा कि हम सभी को सामाजिक सद्भावना के निर्माण में न केवल प्रयत्नशील होना चाहिए बल्कि इसके बाधक तत्वों को निर्मूल भी करना चाहिए। राष्ट्र निर्माण के लिए सद्भावना, संगठन, सहभाव और कर्तव्य बोध अत्यंत आवश्यक है।
कार्यक्रम का संचालन एसएस खन्ना महिला महाविद्यालय की डॉ सुमिता सहगल एवं धन्यवाद ज्ञापन जगत तारन महिला महाविद्यालय की डॉ निर्मला गुप्ता ने किया। कार्यक्रम में भारत के बाहर नेपाल, यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, बांग्लादेश और ओमान से भी लोग शामिल हुए।