महाकुम्भ मेले की रीढ़ है कल्पवासियों की आस्था

कल्पवास करने से साधक का होता है कायाकल्प : कल्पवासी

महाकुम्भ मेले की रीढ़ है कल्पवासियों की आस्था

महाकुम्भ नगर, 01 फरवरी (हि.स.)। तीर्थराज प्रयाग में मां गंगा, यमुना व अन्त: सलीला सरस्वती के संगम पर आयोजित महाकुम्भ मेले में वैश्विक स्वरूप देखने को मिल रहा है। महाकुम्भ क्षेत्र में जहां एक तरफ विदेशी श्रद्धालुओं का रेला लगा है तो वहीं दूसरी तरफ सन्यासी भी लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। लेकिन इन सब चकाचौंध से दूर कुछ ऐसे भी शिविर लगे हैं, जिनमें देश के कोने-कोने से लोग आकर कल्पवास कर रहे हैं। इन कल्पवासियों की आस्था महाकुम्भ मेले की रीढ़ बनी हुई है।

संगमनगरी में आए कल्पवास करने आये लगभग दस लाख श्रद्धालु पूरे कुम्भ अवधि तक गंगा किनारे रहकर नियमित स्नान व पूजा कर पुण्य का लाभ उठा रहे हैं। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तरांचल, राजस्थान सहित कई अन्य राज्यों से आये कल्पवासियों से पूरा गंगा किनारा भरा पड़ा है। न्यूनतम सुविधाओं में कल्पवासी का जीवन जी रहे अधिकतर कल्पवासियों की उम्र 50-60 वर्ष के ऊपर है।

ऐसा माना जाता है कि, कल्पवास करने से वस्तुतः साधक का कायाकल्प हो जाता है। मनसा, वाचा, कर्मणा व पवित्रता के बिना कल्पवास निष्फल हो जाता है। इसीलिए कल्पवास के लिए 21 कठोर नियम बताया गया है। जिनमें झूठ न बोलना, हिंसा व क्रोध न करना, दया-दान करना, नशा न करना, सूर्योदय से पूर्व उठना, नित्य प्रातः संगम स्नान, तीन समय संध्या पूजन, हरिकथा श्रवण व एक समय भोजन व भूमि पर शयन मुख्य है।

महाकुम्भ मेला सेक्टर 6 के बजरंग दास मार्ग पर स्थित शिविर में कल्पवास करने आये प्रयागराज निवासी पीलीभीत से सेवानिवृत्त मुख्य विकास अधिकारी श्रीनिवास मिश्र तथा वाराणसी से सेवानिवृत्त इम्प्लायमेंट ऑफिस के डिप्टी डायरेक्टर प्रभा शंकर शुक्ल कहते हैं कि यहां आकर मन को शुद्धि मिलती है। भक्ति और आस्था के संगम में नियमित डुबकी लगाने का अपना अलग ही महत्व है। हालांकि कल्पवास की दिनचर्या पारिवारिक दिनचर्या से बिल्कुल अलग होती है। एक महीने का कल्पवास कोई पिकनिक नहीं बल्कि कठोर तपस्या साधना है। द्वय अधिकारियों ने बताया कि जैसे ही रिटायरमेंट हुआ, उसी वर्ष से कल्पवास शुरू कर दिया। यह कल्पवास का दूसरा साल है।

उन्होंने बताया कि यहां इस तरह से लाखों लोग कल्पवास के लिए आये हैं। कुछ कल्पवासी अपने पूरे परिवार के साथ भी रह रहे हैं। इनका कहना है कि सेवा और आत्म शुद्धि के लिए इससे अच्छा और कोई अवसर हो ही नहीं सकता। पूरे दो महीने कुम्भ में रहते हुए कोशिश है कि अपने सामर्थ्य के अनुसार लोगों की मदद कर सकें।---------------