दादा साहेब आपटे : एक कर्मशील जीवन की दो महानतम उपलब्धियां

दादा साहेब आपटे : एक कर्मशील जीवन की दो महानतम उपलब्धियां

दादा साहेब आपटे : एक कर्मशील जीवन की दो महानतम उपलब्धियां

एक सौ बीस साल पहले, आज ही (2 फरवरी) के दिन शिवराम शंकर (दादा साहेब) आपटे का जन्म हुआ था। दूरद्रष्टा विद्वान और कुशल संगठनकर्ता होने के नाते ही हम सब श्रद्धापूर्वक दादा साहेब आपटे का पुण्य स्मरण करते हैं। 45 साल के अपने जीवन में दो महानतम उपलब्धियां- एक संगठन और एक संस्थान की स्थापना का अनुपम कार्य, इसके चलते वे कालजयी रहेंगे। भारत में भारतीय भाषाओं की एकमात्र न्यूज एजेंसी में कार्य करने का जो गौरव हम महसूस करते हैं, 1948 में इसकी नींव दादा साहेब आपटे ने ही रखी थी। ‘गर्व से कहो हम हिन्दू हैं’- यह जयघोष जिस संगठन के माध्यम से विश्वव्यापी हुआ, 1964 में विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना के शिल्पी भी दादा साहेब आपटे ही थे।

दादा साहेब आपटे के व्यक्तित्व और कृतिव्य को एक लेख या कुछ सौ शब्दों में व्यक्त या प्रस्तुत कर पाना असंभव सा कार्य है। वह भी ऐसा जीवन जिसमें एक समय के बाद बहुत व्यापक परिवर्तन हुआ हो। गुजरात के वडोदरा के एक कुलीन परिवार में 02 फरवरी 1905 को जन्में शिवराम शंकर आपटे 35 वर्ष की आयु तक जीवन की एक अलग धारा में तैर रहे थे। कानून की डिग्री हासिल कर वकालत करने बाम्बे गए तो एक शाही अंदाज था। सूट, बूट, हैट और सिगार वाले शिवराम शंकर को यह सौभाग्य मिला कि वे स्वातंत्र्यवीर सावरकर के सान्निध्य में चले गए। वीर सावरकर के घर किराएदार बनकर। उधर वकालत करने के बाद वे जिस पार्क में आकर बैठते थे, वहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक शाखा भी लगती थी, जिसके चलते वे आबाजी थत्ते के संपर्क में भी आए। वीर सावरकर और संघ के सुमेल का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसी के चलते अपनी 32 वर्ष की आयु में पिताजी के निधन के बाद पारिवारिक जिम्मेदारी निभाकर ही संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बने।

हालांकि अविवाहित रहकर राष्ट्रकार्य करने का विचार तो तभी दृढ़ हो गया था जब वे नागपुर के संघ शिक्षा वर्ग में चालीस दिन तक मा.स. गोलवलकर उपाख्य श्रीगुरु जी के संपर्क में आए। यह वही संघ शिक्षा वर्ग था जिसके सर्वाधिकारी श्रीगुरुजी थे और उसी साल 21 जून को संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार का भी महाप्रयाण हुआ था। इन दो महान संगठनकर्ताओं और शिल्पियों की आभा से प्रदीप्त शिवराम शंकर 1944 में संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनकर तमिलनाडु गए और उसके बाद से लेकर 10 अक्टूबर, 1985 तक अहिर्निश देश और समाज की सेवा में समर्पित रहे।

दादा साहेब आपटे के विशाल व्यक्तित्व के बारे में खुद का विश्लेषण न कर यदि उस संगठन के प्रमुख का भाव ही पढ़ा जाए, जिसकी स्थापना उन्होंने की, तब शायद अधिक हम उन्हें अधिक जान सकेंगे। विश्व हिन्दू परिषद् के सबसे यशस्वी महासचिव और विश्व स्तर पर प्रख्यात आंदोलनकारी श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति के प्रखर नेतृत्वकर्ता श्री अशोक सिंहल ने उनका स्मरण करते हुए लिखा है- ‘दादा आपटेजी के पत्रकारिता के क्षेत्र में हिन्दुस्थान समाचार और सामाजिक सांस्कृतिक क्षेत्र में विश्व हिन्दू परिषद् के प्रयोग जहां एक ओर नीति निर्धारकों के घट-घट में व्याप्त कूड़े-कचरे को निकालने के प्रयास थे, वहीं दूसरी ओर सामान्य जन को यह विश्वास दिलाने के लिए भी कि ये लोग ‘विदेशी रूह’ से ग्रस्त हैं। इसलिए इस संक्रमण काल में ये ‘महाजन’ नहीं हैं। इस प्रकार विश्व हिन्दू परिषद् जन साधारण के स्तर पर छेड़ा गया एक महा आंदोलन है।’

अशोक जी सिंहल लिखते हैं- महात्मा गांधी की हत्या का झूठा आरोप लगाकर संघ को प्रतिबंधित किया गया। आपटे जी इस बात का अनुभव करते थे कि संघ जैसे पवित्र कार्य पर बाधा आई, लेकिन राष्ट्रीय संकट के इस काल में मीडिया की भूमिका नकारात्मक रही। संघ के विरुद्ध अनर्गल और झूठे प्रचार में तत्कालीन प्रचार माध्यम सहायक बने रहे। तब उन्होंने हिन्दुस्थान समाचार नाम की भारतीय भाषाओं की संवाद समिति का निर्माण किया। इसके विस्तार के लिए वे विदेश गए। उस दौरान उनका विश्व भर में कार्य करने गए हिन्दू समुदाय के साथ निकट संपर्क आया और देश-विदेश में समस्त हिन्दुओं के संगठन की आवश्यकता पर उन्होंने सारगर्भित लेख लिखे। संघ के तत्कालीन प्रमुख श्रीगुरुजी भी उन लेखों से प्रभावित हुए दादा साहेब आपटे जी को ही यह कार्य सौंप दिया। यह कार्य भी उन्होंने बहुत सफलता से किया और 1964 में श्रीकृष्ण जन्माटमी के दिन मुंबई के संदीपनी आश्रम में स्वामी चिन्मयानंद जी महाराज की अध्यक्षता में विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना हुई। यह आपटे जी के प्रयासों का ही फल था कि 1966 में प्रयागराज कुंभ में पहली ‘विश्व हिन्दू परिषद्’ हुई, जिसमें पहली बार लोगों ने विभिन्न संप्रदायों के आचार्यों को एक मंच पर देखा। माना जाता है हर्षवर्धन के कालखंड के बाद वह पहला अवसर था, जब समस्त सम्प्रदायों के पूज्य धर्माचार्य एक मंच पर एकत्रित हुए थे।

वहीं हिन्दुस्थान समाचार बहुभाषी संवाद समिति को पुनरूज्जीवित करने वाले श्रीकांत जोशी जी इसके संस्थापक दादासाहेब आपटे का स्मरण करते हुए बताते हैं- दादा साहेब आपटे जीके जीवन की दो महानतम उपलब्धियां आज भी भारतीयों के लिए चिर गौरव का कारण बनी हुईं हैं। हिन्दुस्थान समाचार संवाद समिति और विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना उनके युग प्रवर्तक होने का आभास कराती है। वस्तुतः श्री शिवराम शंकर उपाख्य दादा साहेब आपटे का जीवन एक स्वयंसेवक का राष्ट्र समर्पित जीवन था। आपटे जी संघ के एक कर्तव्यवान प्रचारक थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि पूरा जीवन देश-दुनिया में यायावार की तरह घूमने और संगठन करने के बाद में जीवन के अंतिम कालखंड में पुणे के कौशिक भवन चले गए थे। उन्होंने यह कौशिक भवन अपने प्रयासों और संसाधनों से निर्मित किया था। उन्होंने यहीं अंतिम स्वांस ली और अब यह कौशिक भवन भी कौशिक आश्रम बन गया है।

दादा साहेब आपटे अपने समय के उद्भट विद्वान् थे। अनेक भाषाओं के ज्ञाता, चित्रकार, छाया चित्रकार तो वे थे ही, अमर चित्रकथा नामक बच्चों के लिए प्रकाशित होने वाली चित्रकथा की प्रेरणा भी दादा साहेब ने ही दी थी। उनकी पंद्रह से ज्यादा पुस्तकें अंग्रेजी व मराठी में प्रकाशित हुई थीं। लोकमान्य तिलक के मराठी दैनिक में वे नियमित लिखते थे। वेदों की स्थापना करने के लिए वे विश्व के अनेक देशों में गए। ऐसे महान व्यक्तित्व को ठीक से जानना और समझना हो, उनके जीवन चरित्र से प्रेरणा लेनी हो तो डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री की पुस्तक ‘विश्व हिन्दू परिषद् के शिल्पी दादा साहेब आपटे’ अवश्य पढ़नी चाहिए। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस कृति में हिन्दुस्थान समाचार और विश्व हिन्दू परिषद् की स्थापना के साथ आपटे जी के महान जीवन की एक विस्तृत झांकी के दर्शन होते हैं।