पुनर्जन्म से मुक्ति के लिए श्रद्धालु कर रहे मडफा के पंचमुखी शिव की आराधना

पुनर्जन्म से मुक्ति के लिए श्रद्धालु कर रहे मडफा के पंचमुखी शिव की आराधना

पुनर्जन्म से मुक्ति के लिए श्रद्धालु कर रहे मडफा के पंचमुखी शिव की आराधना

चित्रकूट,07 अगस्त । भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट अपनी धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व के लिए समूचे विश्व में विख्यात है। धर्म नगरी के भरतकूप क्षेत्र में घने जंगलो के बीच करीब ढ़ाई सौ मीटर ऊंची पहाड़ी पर मड़फा किले के रूप में विख्यात आदि ऋषि मांडव्य का आश्रम है। इस प्राचीन मड़फा आश्रम में नृत्यमुद्रा में विराजमान पंचमुखी भगवान शिव की महिमा का बखान वेदो और पुराणों में भी मिलता है। सावन और अधिमास के सोमवार को भगवान शिव की आराधना के लिए देश भर से लाखों शिव भक्तों का जमावडा लग रहा है। मान्यता है कि मडफा के पंचमुखी शिव की आराधना से पुनर्जन्म से मुक्ति मिलती है।

इस दिव्य धाम की ऐसी महिमा है कि यहां स्थित कुंड के जल में आस्था की डुबकी लगाकर भगवान शिव का पूजन करने से कुष्ठ रोग से निजात मिलने के साथ-साथ पुनर्जन्म से मुक्ति मिल जाती है। पंचमुखी शिव के दर्शन मात्र से ही सारे कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके अलावा इसी प्राचीन आश्रम में महाराजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला ने पुत्र भरत को जन्म दिया था।

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट विश्व के अनादि, अचल और ऐतिहासिक पावन तीर्थ में से एक है। इस प्राचीन धर्म स्थली में स्वयं सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा समेत अगस्त, अत्रि, बाल्मीकि आदि प्रख्यात ऋषि-मुनियों ने तपस्या की है।

इसी वजह से ब्रम्हांड के सबसे श्रेष्ठ स्थल चित्रकूट की तुलना स्वर्गलोक से की जा सकती है। लगभग 84 कोस में फैले चित्रकूट में विविध प्रकार के शिखर (कूट) स्थित है। इस प्राचीन आश्रम में भगवान शंकर अपने पंचमुखी रूप में सशरीर विद्यमान हैं। नृत्यमुद्रा में विराजमान पंचमुखी भगवान शिव की महिमा का बखान वेदो और पुराणों में भी मिलता है।मानपुर गांव से सटे मड़फा पहाड़ पर स्थित इस पावन शिव धाम पर करीब दो सौ मीटर की ऊंची चढ़ाई चढ़कर पहुंचा जा सकता है। घनघोर जंगल में स्थित इस शिवालय में उपासना करने से जहां लोगों के मन की मुरादें पूरी होती हैं। वही न्यग्रोध कुंड (तालाब) में स्नान करने से कुष्ठ रोग (चर्म रोग) से मुक्ति मिलने का उल्लेख है।

इस दिव्य स्नान को लेकर ऐसी मान्यता है कि यहां पर ऋषि मांडव्य ने तपस्या की थी। इसी तपोस्थली पर महाराज दुष्यंत की पत्नी शकुंतला ने पुत्र भरत को जन्म दिया था। इसी तालाब के पास चंदेलकालीन वैभवशाली नगर के ध्वंसावशेष भी देखे जा सकते हैं। जैन धर्म के प्रवर्तक आदिनाथ के भी यहां पर आने की बात कही जाती है।

महाशिवरात्रि व सोमवार को यहां सदियों से मेला लगता रहा है। इस धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण प्राचीन धरोहर को केंद्रीय पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किया गया है। चित्रकूट के सुप्रसिद्ध संत दिव्य जीवन दास महाराज,राम हृदयदास महाराज एवं डॉ रामनारायण त्रिपाठी मडफा किले की महिमा बताते है कि देवराज इंद्र ने वेदवती नामकी अपूर्व सुंदरी अप्सरा को कोढ़ (कुष्ठ) होने का शाप दिया था। शापग्रस्त अप्सरा के अनुनय विनय करने पर इंद्र ने माण्डव ऋषि के आश्रम में स्थित कुंड में स्नान करके वहां विराजमान पंचमुखी भगवान शिव की उपासना से शापमुक्त होने का मार्ग बताया था। आज भी देश भर से लोग कुष्ठ निवारण के लिए यहाँ आते है। इसके अलावा यहाँ स्थित पंचमुखी शिव के दर्शन और उपासना करने से पुनर्जन्म से मुक्ति मिलने की मान्यता है।

इसके अलावा मंदिर के विकास के लिए चिंतित समाजसेवी दिनेश कुमार सिंह एवं भाजपा महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष दिव्या त्रिपाठी नेे मुख्यमंत्री से मडफा धाम में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए रोपवे बनवाने एवं विद्युत व पेयजल का इंतजाम करने की मांग की है।

वहीं जिलाधिकारी अभिषेक आनंद का कहना है कि पर्यटन विभाग के माध्यम से मडफा मंदिर को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का काम किया जा रहा है।