यूपी में होली के रंग निराले, कहीं फूलों की तो कहीं जूतम पैजार होली

यूपी में होली के रंग निराले, कहीं फूलों की तो कहीं जूतम पैजार होली

यूपी में होली के रंग निराले, कहीं फूलों की तो कहीं जूतम पैजार होली

लखनऊ, 24 मार्च। होली का पावन पर्व देश भर में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लेकिन इस पर्व की खास बात यह है कि देश के कोने-कोने में अलग-अलग तरह की परंपराओं के साथ इसे मनाया जाता है। यूपी में रंगों के त्योहार की छटा ही निराली है। यूपी में कहीं रंग-पिचकारी से होली खेली जाती है, कहीं लाठी-डंडों से, तो कहीं कीचड़ से। ब्रज की लठ्ठमार होली और मथुरा की फूलों वाली होली के बारे में तो सुना ही होगा। कहीं होली में रामलीला होती है,तो कहीं जूतम पैजार होली, तो कहीं आठ दिन होली खेली जाती है। प्रयागराज में कपड़ा फाड़ होली है तो वहीं बाबा की नगरी काशी में जलती हुई चिताओं की राख से होली खेली जाती है।

बरसाने की लट्ठमार होली

राधारानी की नगरी बरसाने में लड्डुओं की होली के बाद लट्ठमार होली खेली जाती है और फिर इसके अगले दिन नंदगांव में यही परंपरा निभाई जाती है। देश विदेश से लाखों लोग इस होली को देखने के लिए बरसाना और नंदगांव में आते हैं। ब्रज में वैसे भी होली खास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है। लट्ठमार होली में मुख्यतः नंदगांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं। साथ ही रंगों को लेकर भी यहां खास ध्यान रखा जाता है। रंगों में कोई मिलावट ना हो इसके लिए टेसू के फूलों से रंगों को तैयार किया जाता है। होली के दौरान यहां रसिया गायन का भी आयोजन किया जाता है।

प्रयागराज की कपड़ा फाड़ होली

प्रयागराज में लोकनाथ और चौक इलाका शहर का सबसे महत्वपूर्ण बाजार है। होलिका दहन वाली शाम तक यहां बाजार चलता है। रात में दुकान बंद होने के बाद यहां साफ-सफाई की जाती है। उसके बाद होली के दिन चौक इलाके में लगभग 50 हजार से अधिक लोगों की भीड़ जमा होती है। जहां पाइप के जरिए रंगों की बौछार की जाती है। दूसरी तरफ डीजे की धुन में लोग थिरकते नजर आते हैं। इस विशेष होली में लोग एक दूसरे के कपड़े फाड़ते हैं और बोलते हैं हैप्पी होली। यह होली सुबह 11 बजे से दोपहर करीब 5 बजे तक होती है। यहां होली खेलने के लिए लोग दूसरे शहरों से भी आते हैं। एक तरफ गुजिया के मिठास से लबरेज तो दूसरी और रंगों का व्यवहार यह नजारा देखते ही बनता है।

अद्भुत है वाराणसी की मसान वाली होली

बाबा की नगरी में रंगभरी एकादशी या अमालिका एकादशी के अगले दिन भस्म होली या 'मसाने की होली' खेली जाती है। इस दिन मान-विधान अनुसार काशीवासी अपने पुराधिपति से होली खेलने की अनुमति पाते हैं। मसान की होली की शुरूआत भी शिव जी ने की थी। काशी के मर्णिकर्णिका घाट पर भोलेनाथ ने भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व और प्रेत के साथ चिता की राख से भस्म होली खेली थी। ऐसा इसलिए क्योंकि रंगभरी एकादशी के दिन शिवजी ने अपने गणों के साथ गुलाल से होली खेली लेकिन भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व और प्रेत के साथ नहीं खेली इसीलिए रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन मसाने की होली खेली जाती है। इसीलिए तब से काशी में मसाने की होली की यह परंपरा चली आ रही है। काशीवासियों को इंतजार है फागुन पूर्णिमा की रात का जब होलिका जलाई जाएगी और अगली सुबह चौसट्ठी देवी के चरणों में रंग अर्पित कर समूची काशी होली के रंगों में डूब जाएगी। इसके बाद अबीर-गुलाल के साथ धमाल का क्रम होली के दूसरे मंगलवार को बुढ़वा मंगल तक जारी रहेगा जिसमें रंग के साथ सुर और पुष्प की भी वर्षा होती है।

शाहजहांपुर की जूतम पैजार होली

शाहजहांपुर में जूतामार होली की यह परंपरा बरसों पुरानी है। 18वीं सदी में शाहजहांपुर में नवाब का जुलूस निकालकर होली मनाने की प्रथा शुरू हुई थी जो समय के साथ-साथ जूतामार होली में बदल गई। 1947 के बाद से इस होली को जूते मारकर खेला जाने लगा। होली के दिन शाहजहांपुर में ‘लाट साहब’ का जुलूस भी निकलता है। शाहजहांपुर की होली में ना सिर्फ जूते मारे जाते हैं, बल्कि यहां व्यक्ति को लाट साहब बना कर भैंसे पर बिठाया जाता है। इसके बाद सभी लोग भैंसे को जूतों से मारते हैं। कुछ लोग जूतों के साथ-साथ चप्पल और झाड़ू आदि का भी इस्तेमाल किया जाता है।

कानपुर में आठ दिन तक खेली जाती है होली

ब्रिटिश राज के जमाने में कानुपर का हटिया बाजार का कारोबार का मुख्य केंद्र होता था। हटिया के गुलाबचंद सेठ उस वक्त के बड़े व्यापारी हुआ करते थे। उन्होंने हर साल की तरह साल 1942 में भी होली पर विशाल आयोजन करवाया। अंग्रेज आए और होली खेल रहे होरियारों को आयोजन बंद करने को कहा। उन्होंने आयोजन बंद करने से इंकार कर दिया। तो अंग्रेजों ने गुलाबचंद सेठ और कई दूसरों लोगों को गिरफ्तार कर लिया। ये बात कानपुर में आग की तरह फैल गई और जन आक्रोश भड़क उठा। फिर एक अनोखे आंदोलन ने जन्म लिया। गिरफ्तारी के विरोध में पूरे कानपुर में होली के दिन ही नहीं बल्कि हफ्ते भर होली खेली गई। हफ्तेभर होली खेलने के चलते व्यापार और कारखाने बंद हो गए। चूंकि उस वक्त कानपुर अंग्रेजों के कारोबार का बड़ा केंद्र होता था, तो जनविरोध के चलते अंग्रेजों को भारी नुकसान हो रहा था। बात उच्च अधिकारियों तक पहुंची तो उन्होंने गिरफ्तार लोगों का रिहा करने का आदेश दिया। आठ दिन बाद सारे कैदियों को रिहा किया गया। तब से ही ये दिन कानपुरवासियो के लिए त्योहार का दिन हो गया।

झुमका नगरी बरेली होली में होती है रामलीला

बरेली की पहचान झुमका नगरी के नाम से यूपी में नही बल्कि देशभर में जानी जाती रही है। बरेली में साल 1861 से होली पर रामलीला की परंपरा चली आ रही है। असल में उस जमाने में अंग्रेजों से बगावत चल रही थी। मुकाबले के लिए बरेली के लोगों ने श्रीराम सेना बनाई। बाद में बड़ी बमनपुरी इलाके में रामलीला का मंचन शुरू हुआ। अंग्रेजों ने रामलीला को रोकने के कई प्रयास किए मगर सफल नहीं हो पाए। तभी से ये रामलीला वाली परंपरा लगातार चली आ रही है। छोटी होली के दिन राम बारात की झांकी निकाली जाती है। इस झांकी में सैकड़ों ट्रालियों में ड्रम रखे जाते हैं और उन ड्रमों में रंग। इन ट्रालियों पर हजारों हुरियारे होते हैं, जो एक-दूसरे पर पिचकारियों से मघ्घों से रंग उड़ेलते हैं। रंगों की बौछार करते हैं। साल 2008 में यूनेस्को ने इस रामलीला को वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल किया था।

सुहाग नगरी फिरोजाबाद की पैनामार होली

फिरोजाबाद के टुंडला रेलवे स्टेशन से लगभग दो किलोमीटर दूर स्थित गांव चुलावली गांव में कई पीढ़ियों से पैनामार होली खेलने की परंपरा है। होली दहन होने के बाद गांव की सभी महिलाएं और पुरुष इस परंपरा को निभाते हैं। महिलाएं लकड़ी में पैना बांधकर रंग लगाने आ रहे पुरुषों की पिटाई करती हैं। वहीं पुरुष भी महिलाओं को रंग लगाने की ताक में रहते हैं। सुबह होते ही गांव के चबूतरे पर महिलाओं की टोली निकल पड़ती है और पुरुष भी अपनी अलग अलग टोली बनाकर गांव में घूमते हैं। गांव में होली की इस परंपरा का नजारा दिनभर देखने को मिलता है। शाम को इसमें विजेता पुरुष और महिला को इनाम के रूप में साड़ी और नगद रूपए का पुरुस्कार भी दिया जाता है।

हमीरपुर में महिलाओं की अनूठी होली

बुंदेलखंड के जिले हमीरपुर कुंडौरा गांव में महिलाओं की होली कोई मर्द नहीं देख सकता। महिलाओं की होली शुरू होने से पहले ही पूरे गांव के पुरुषों को घर छोड़कर खलिहान में डेरा डालना पड़ता है। बूढ़ी और घूंघट वाली महिलाएं होली पर नाच गाकर पूरे गांव में धमाल मचाती हैं। गांव का कोई भी पुरुष इनका नृत्य नहीं देख सकता है। यदि किसी ने देखने की हिम्मत भी की तो उन्हें लट्ठ लेकर गांव से खदेड़ दिया जाता है। महिलाओं की यह अनोखी होली सूर्यास्त होने के बाद खत्म होती है। तभी सभी पुरुष अपने घर लौटते है। सैकड़ों साल से यह परंपरा चली आ रही है।


ब्रज में कीचड़ और मिट्टी की होली

रंग-गुलाल और लठामार होली के अलावा ब्रज में कई जगह कीचड़ और मिट्टी की भी होली खेली जाती है। सुरीर और नौहझील समेत कई गांव हैं, जहां कीचड़ और मिट्टी की होली खेलने की रिवाज वर्षों से चली आ रही है। यहां रंग की होली (धुलेड़ी) के अगले दिन मिट्टी व कीचड़ की होली खेली जाती है। होली के हुरियारे जगह-जगह मिट्टी लाकर डाल देते हैं, जिसका घोल बनाने के बाद हुरियारे युवक एक दूसरी को मिट्टी में सराबोर करने के बाद राहगीरों समेत लोगों को खींच कर मिट्टी में सराबोर करते घूमते हैं। जिसकी वजह से बाजार बंद हो जाता है। लोग अपने घरों की छत पर चढ़कर इस होली का आनंद लेते हैं।

देवा शरीफ दरगाह की होली

यूपी के बाराबंकी जिले में स्थित देवा शरीफ की दरगाह पर मनाई जाने वाली होली अपनी आप में अनूठी है। इस दिन यहां देश के हर कोने से ही नहीं बल्कि पाकिस्तान से भी लोग होली मनाने के लिए जुटते हैं। हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर होली गंगा जमुनी तहजीब के साथ आपसी भाई चारे की एक बड़ी मिसाल पेश करती है। करीब पिछले सौ साल से ज्यादा समय से यहां होली के दिन रंग गुलाल खेलने की परंपरा चली आ रही है। संत वारिस अली शाह अपने हिंदू शिष्यों के साथ यहां होली के दिन होली खेल कर सूफी परंपरा का इजहार किया करते थे। तभी से ये परंपरा चली आ रही है।