होली का इतिहास, परम्परा, हुल्लड़ और सावधानियां

होली का इतिहास, परम्परा, हुल्लड़ और सावधानियां

होली का इतिहास, परम्परा, हुल्लड़ और सावधानियां

बिहार में कुर्ता फाड़ होली भी खेली जाती है, जो विदेशों में भी काफी प्रसिद्ध है। लोग बताते हैं कि इस दिन के लिए खास तैयारी की जाती है। बाजार में स्पेशल कुर्ते बिकते हैं, जिनकी काफी डिमांड रहती है। यहां होलिका दहन की राख एक-दूसरे को लगाई जाती है, जिसे काफी शुभ माना जाता है। होली वाले दिन पहले गुलाल से सूखी होली खेली जाती है। इसके बाद पुरुष कुर्ता फाड़ होली खेलते हैं। वहीं मथुरा में लठ्ठमार होली तो उत्तराखंड में बैठकी होली की धूम है।

इतिहास बताता है कि होली के त्योहार को मनाने की शुरुआत बिहार के पूर्णिया जिले से हुई थी। माना जाता है कि पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ में आज भी वह स्थान है, जहां होलिका अपने भाई हिरण्यकशिपु के कहने पर भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती चिता पर बैठ गई थी। दावा किया जाता है कि पूर्णिया में ही वह खंभा भी मौजूद है, जहां भगवान विष्णु नरसिंह अवतार में प्रकट हुए थे। इसके बाद उन्होंने हिरण्यकशिपु का वध किया था। सिकलीगढ़ में हिरण्यकशिपु का किला था। यहीं पर भक्त प्रह्ललाद रहते थे। स्थानीय बुजुर्गों की मानें तो पूर्णिया में आज भी उस काल के टीले मौजूद हैं।

इसी दिन भोलेनाथ ने कामदेव को उनकी तपस्या भंग करने के प्रयास में भस्म कर दिया था। लेकिन देवी रति की प्रार्थना पर उन्होंने कामदेव को क्षमादान देकर पुनर्जन्म दिया। साथ ही रति को यह वरदान दिया कि वह श्रीकृष्णा के पुत्र रूप में जन्म लेंगी। कामदेव के पुनर्जन्म और देवी रति को प्राप्त वरदान की खुशी में संपूर्ण विश्व में फूलों की वर्षा हुई। हर तरफ गुलाल उड़ाकर आंनदोत्सव मनाया गया। कहा जाता है कि यह तिथि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा थी। तब से ही इसे पर्व रूप में मनाया जाने लगा।



बदलता स्वरूप



रंगों और खुशियों का त्योहार होली अक्सर कई परिवारों के लिए बेरंगा और दुखदायी हो जाता है। वजह है खतरनाक रासायनिक रंगों का दुष्प्रभाव। रंग-बिरंगे त्योहार की खुशियाँ हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रही हैं। पुराने समय में होली और रंगों का संबंध सीधे प्रकृति से था, सादगी और समन्वय से था, आज इस त्योहार में अक्सर रंग में भंग होता देखा जा सकता है, वजहें अनेक हैं लेकिन रासायनिक घातक रंगों के दुष्प्रभावों के चलते सेहत की दुर्दशा तय है। बाजार से खरीदे रंग रसायनों से भरपूर हो सकते हैं। इन रंगों का दुष्प्रभाव हमारी सेहत पर इतना ज्यादा हो सकता है कि जिसकी कल्पना करना मुश्किल है। त्वचा पर एलर्जी से लेकर आंखों की रोशनी छिन जाने और कैंसर जैसे भयावह रोग होने तक के प्रमाण मिल चुके हैं। ऐसे में रंगों के त्योहार "फगुआ" को मनाना जी का जंजाल हो सकता है।

रासायनिक रंग हमारे शरीर पर त्वचा रोग, एलर्जी पैदा करते हैं। दूसरी तरफ आँखों में खुजली, लालपन, अंधत्व के अलावा कई दर्दनाक परिणाम देते हैं। इन रंगों की धुलाई होने पर ये नालियों से बहते हुए बड़े नालों और नदियों तक प्रवेश कर जाते हैं और प्रदूषण के कारक बनते हैं। रसायनों से तैयार रंग जैसे काला, किडनी को प्रभावित करता है, हरा रंग आंखों में एलर्जी और कई बार नेत्रहीनता तक ले आता है, वहीं बैंगनी रासायनिक रंग अस्थमा और एलर्जी को जन्म देता है, सिल्वर रंग कैंसर कारक है तो लाल भी त्वचा पर कैंसर जैसे भयावह रोगों को जन्म देता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि रासायनिक हानिकारक रंगों का इस्तेमाल हम सबकी सेहत के लिए बेहद घातक हो सकता है।

प्राकृतिक रंगों से मनाएं होली



होली बेशक मनायी जानी चाहिए लेकिन रंग प्राकृतिक हों और आपकी सेहत पर इनका दुष्प्रभाव ना हो तो रंग में भंग होने के बजाए असली होली का मजा लिया जा सकेगा। हमारे पाठक चाहे तो अपने ही घर में प्राकृतिक रंगों को बना सकते हैं। किचन में ही उपलब्ध अनेक वनस्पतियों का उपयोग कर कई तरह के प्राकृतिक रंगों को बनाया जा सकता है। हरे सूखे रंग को तैयार करने के लिए हिना या मेहंदी का सूखा चूर्ण लिया जाए और इतनी ही मात्रा में कोई भी आटा मिला लिया जाए।



सूखी मेहंदी चेहरे पर अपना रंग नहीं छोड़ती और इसके क्षणिक हरे रंग को आसानी से धोकर साफ किया जा सकता है। गुलाबी रंग तैयार करने के लिए एक बीट रूट या चुकन्दर लीजिए, बारीक टुकड़े करके एक लीटर पानी में डालकर पूरी एक रात के लिए रख दीजिए और सुबह गुलाबी रंग तैयार हो जाएगा। गुड़हल के खूब सारे ताजे लाल फूलों को एकत्र कर लें और छांव में सुखा लें। बाद में इन्हें कुचलकर इनका पाउडर तैयार कर लें और इस तरह तैयार हो जाएगा सूखा लाल रंग। यह लाल रंग बालों के लिए जबरदस्त कंडीशनर होता है। साथ ही गुड़हल बालों के असमय पकने को रोकता है और बालों का रंग काला भी करता है।



इसी तरह पीला सूखा रंग तैयार करने के लिए हल्दी एक चम्मच और बेसन (2 चम्मच) को मिलाकर सूखा पीला रंग तैयार किया जाता है, ये पीला रंग ना सिर्फ आपकी होली रंगनुमा करेगा बल्कि चेहरा और संपूर्ण शरीर कांतिमय बनाने में मदद भी करेगा क्योंकि त्वचा की सुरक्षा के लिए हल्दी और बेसन के गुणों से आप सभी चिर परिचित हैं। बेसन की उपलब्धता ना होने पर गेहूं, चावल या मक्के के आटा का उपयोग किया जा सकता है। पीला तरल रंग तैयार करने के लिए 4 चम्मच हल्दी को एक लीटर पानी में डालकर उबाल लिया जाए और इसमें लगभग 50-75 पीले गेंदे के फूल डालकर रात भर डुबोकर रखा जाए, अगली सुबह हर्बल पीला तरल रंग तैयार रहेगा। फिर खेलिए खूब होली इस पीले रंग से। पौधे से प्राप्त रंग स्वास्थ्य के लिए उत्तम होने के साथ-साथ पर्यावरण मित्र भी होते हैं, इसके उपयोग से त्वचा पर किसी भी तरह की एलर्जी, संक्रमण या रोग नहीं होते हैं और तो और ये सेहत की बेहतरी में मदद करते हैं।



होली खेलते समय आंखों में रंग जाना आम बात है लेकिन ये उतना ही घातक भी हो सकता है। रंग कृत्रिम या रसायन आधारित होंगे तो लेने के देने भी पड़ सकते हैं। बतौर प्राथमिक उपचार सर्वप्रथम आंखों को साफ पानी से धोया जाए और ये ध्यान रखा जाए कि आंखों को मसला ना जाए। साफ पानी से आंख धोते वक्त छींटे भी जोर जोर से ना पड़े। आंखों की साफ धुलाई होने के बाद आंखों में दो-दो बूंद गुलाब जल डालकर आंखों को बंद करके लेट जाएं। यदि असर ज्यादा गहरा नहीं है तो कुछ देर में आराम मिल जाएगा। तेज जलन या लगातार आंखों से पानी टपकने की दशा में तुरंत अपने चिकित्सक से संपर्क करें।

सबसे पहले तो रंगोत्सव मनाने से पहले अपने चेहरे और शरीर की त्वचा पर नारियल या सरसों का तेल लगा रखें। ये तेल त्वचा के छिद्रों में समा जाएगा और रसायनिक रंगों को शरीर के भीतर प्रवेश होने से रोकेगा। होली के दौरान सावधानी और साफ सफाई बरतने पर काफी हद तक संक्रमित होने से रोका जा सकता है। होली के दौरान आप साधारण फ्लू, सर्दी, छींक या हल्के बुखार से पीड़ित हैं तो होली खेलने से परहेज करें। यदि आप स्वस्थ हैं और होली का आनंद भी लेना चाहते हैं तो कोशिश करें भीड़-भाड़ के इलाकों में ना जाएं। लेकिन होली की शुरुआत सबसे पहले कुल देवी-देवताओं को रंग चढ़ाकर करें। साथ ही, उन्हें गुंजिया का भोग भी लगायें। देव पूजन के बाद परिवार के सभी छोटे सदस्य अपने से बड़ों के पैरों पर रंग लगायें और आशीर्वाद लें।