भक्तों ने माता के आठवें स्वरूप महागौरी की आराधना कर कराया कन्या भोज

भक्तों ने माता के आठवें स्वरूप महागौरी की आराधना कर कराया कन्या भोज

भक्तों ने माता के आठवें स्वरूप महागौरी की आराधना कर कराया कन्या भोज

शारदीय नवरात्र: आठवें स्वरूप महागौरी की आराधना कर भक्तों ने घरों व मंदिरों में कन्याभोज करवाया। साथ ही देवी मंदिरों में शीश झुकाकर संसार के कल्याण की कामना की। ज्योतिषाचार्य पंडित विवेक दीक्षित ने बताया माता का आठवां स्वरूप महागौरी भक्तों का कल्याण करती है।

पंडित विवेक का कहना है कि मां दुर्गा का आठवां स्वरुप है महागौरी। नवरात्रि के आठवें दिन मां महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है। देवी मां के आठवें स्वरूप को महागौरी के नाम से पुकारा जाता है। वैसे तो कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन किया जाता है, लेकिन कहा जाता है कि अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना ज्यादा फलदायी रहता है। मां महागौरी की पूजा करने से मन पवित्र हो जाता है और भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

कहा जाता है कि भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये इन्होंने कठोर तपस्या की थी। इस दिन मां की पूजा करने से मनचाहे जीवनसाथी की मुराद पूरी होती है। मां की पूजा करने से मनचाहे जीवनसाथी की मुराद पूरी होती है। मां महागौरी के प्रसन्न होने पर भक्तों को सभी सुख स्वत: ही प्राप्त हो जाते हैं। साथ ही इनकी भक्ति से हमें मन की शांति भी मिलती है। मां की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है।

ऐसा स्वरूप है माता का

मां की कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। देवी महागौरी का अत्यंत गौर वर्ण हैं। इनके वस्त्र और आभूषण सफेद हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। महागौरी का वाहन बैल है। देवी के दाहिने ओर के ऊपर वाले हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले हाथ में त्रिशूल है। बाएं ओर के ऊपर वाले हाथ में डमरू और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है।

माँ दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा विधि

ज्योतिषाचार्य के अनुसार अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में महागौरी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र रखें और यंत्र की स्थापना करें। मां सौंदर्य प्रदान करने वाली हैं। हाथ में श्वेत पुष्प लेकर मां का ध्यान करें।

अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है। कन्याओं की संख्या 9 होनी चाहिए नहीं तो 2 कन्याओं की पूजा करें। कन्याओं की आयु 2 साल से ऊपर और 10 साल से अधिक न हो। भोजन कराने के बाद कन्याओं को दक्षिणा देनी चाहिए।

ध्यान

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।

सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥

पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।

वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥

पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।

मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥

प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।

कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥