शक्ति स्वरूपा दुर्गा की उपासना से होती है मोक्ष और मोक्ष की प्राप्ति

शक्ति स्वरूपा दुर्गा की उपासना से होती है मोक्ष और मोक्ष की प्राप्ति

शक्ति स्वरूपा दुर्गा की उपासना से होती है मोक्ष और मोक्ष की प्राप्ति

''''जयंती मंगला काली, भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवाधात्री, स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।'''' कलयुग में चंडी यानी शक्ति मतलब महाशक्ति दुर्गा के विभिन्न रूपों तथा श्री गणेश की उपासना फलित होती है। यही कारण है कि आजकल समस्त भू-भाग में दुर्गा पूजा का महत्व बढ़ता जा रहा है। जहां पूर्ण श्रद्धा, विश्वास तथा अडिग भक्ति भावना होती है। वहां किसी भी पूजा सामग्री का महत्व नहीं होता।

विशेष स्त्रोतों के द्वारा मां भगवती की वंदना करने में भक्तों की साधना नहीं भावना प्रधान हो जाती है। उपासना का अर्थ है उपवेशन करना मतलब भगवान के करीब बैठना। जब हम अपनी भावनाओं को शुद्ध कर पूर्ण श्रद्धा के साथ अपने परम आराध्य के पास आसीन होते हैं, बैठते हैं तो वह उपासना है। जब हम ईश्वर का ध्यान करते हैं, उनकी स्तुति करते हैं, उनसे प्रार्थना करते हैं, उस समय उनके समीप पहुंच जाते हैं। लेकिन जब स्तुति नहीं करते, प्रार्थना नहीं करते तो भी हम सच्चे हों तो ईश्वर हमसे दूर नहीं होते।

माता की समीपता प्राप्त करने के लिए हम जिस क्रिया को प्रयोग में लाते हैं, वही उपासना है और वही तो नवरात्रा की साधना है। नवरात्रा की साधना के मार्ग पर चलकर मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करने में किसी प्रकार के अनिष्ट की संभावनाएं नहीं है। जहां भोग है, वहां मोक्ष नहीं है। जहां मोक्ष है, वहां सांसारिक भोग का कोई महत्व नहीं है। लेकिन त्रिपुरसुंदरी अर्थात शक्ति स्वरूपा दुर्गा की सेवा उपासना से भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति होती है। मनुष्य संसार में यदि सबसे अधिक किसी का ऋणी है तो वह है मां। मां जो साक्षात ममता, दया, करुणा, प्रेम की प्रतिमूर्ति है। वात्सलय का सागर है। पुत्र कैसा भी हो माता के लिए वह सदैव प्रिय होता है। माता का हृदय इतना विशाल होता है कि संतान की बड़ी से बड़ी गलती को भी क्षमा कर देती है। उसके अनेकों को गलतियों के पश्चात भी सीने से लगा लेती है। क्योंकि माता तो माता ही होती है, माता की बराबरी ब्रह्मांड में कोई नहीं कर सकता।

मां दुर्गा तो जगतजननी है, वही इस दुनिया की स्त्रोत है, शक्ति स्वरूपा है, उसकी पूजा उपासना कर कोई भी उसकी कृपा प्राप्त कर सकता है। मां दुर्गा, भक्तों को वात्सलय के चादर में समेट लेती है। उसकी प्रत्येक मनोकामना को पूरी करती है। पापी से पापी व्यक्ति भी नवरात्रि में पूजा उपासना कर मां की कृपा दृष्टि का पात्र बन सकता है। परमसत्ता के अभिन्न आदि शक्ति मां जगदंबा की उपासना का लक्ष्य साधक के लिए भक्ति और मुक्ति दोनों ही होते हैं। इस संसार की समस्त सुख सुविधाएं भोग कर, धन-संपत्ति, स्त्री पुत्र का आनंद उठा कर, पूर्ण सफल जीवन का भोग करके, मृत्यु के बाद मुक्ति का, निर्वाण का सतचित आनंद मिल जाने का सौभाग्य केवल देवी की उपासना से ही प्राप्त होती है। इस संबंध में विस्तार से बातें देवी भागवत में कही गई है। नवरात्र ही ऐसी आलौकिक और चमत्कारी रात्रि होती है जिसमें की गई पूजा, उपासना सरल और शीघ्र मनोवांछित फल देने वाली होती है। हमारे प्राचीन धर्म ग्रंथों में ऐसे बहुत से तंत्र-मंत्र और यंत्र का उल्लेख मिलता है। जिसका उपयोग करके कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा को पूर्ण कर सकता है। नवरात्रि के पुण्यकाल में मां दुर्गा को प्रसन्न कर, उनकी आराधना कर शास्त्रों के अनुसार सात सुख, निरोगी काया, घर में माया, पुत्र सुख, मान सम्मान, सुलक्षणा नारी, शत्रु मर्दन और ईश्वर दर्शन सहज ही प्राप्त किया जा सकता है।