शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन भक्तों ने मां ब्रह्मचारिणी की आराधना

शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन भक्तों ने मां ब्रह्मचारिणी की आराधना

शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन भक्तों ने मां ब्रह्मचारिणी की आराधना

शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन प्रातः काल से ही भक्तों ने मां ब्रह्मचारिणी के रूप की आराधना व पूजा की। वहीं देवी स्थलों व सिद्धपीठों में भी सुबह से भक्तों का तांता देखने को मिला।

ज्योतिषाचार्य पंडित विवेक दीक्षित ने बताया कि नवरात्र के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां दुर्गा के नौ रूपों में माता ब्रह्मचारिणी दूसरा स्वरूप हैं। जो कि ब्रह्म अर्थात तप की शक्ति की प्रतीक हैं। सदियों तक कठोर तप करने के कारण ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा। इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए साधना करते हैं।
पंडित विवेक ने बताया कि भविष्य पुराण में माता ब्रह्मचारिणी का शाब्दिक अर्थ बताया गया है। ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का मतलब है आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ कि तप का आचरण करने वाली। मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल रहता है।
खास बात यह है कि इस स्वरूप में माता ब्रह्मचारिणी बिना किसी वाहन के नजर आती हैं। दुर्गाजी के इस स्वरूप की आराधना से कठिनतम स्थितियों में भी मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है।
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की कृपा पाने के लिए विधिपूर्वक पूजन कर निम्न श्लोक का जाप करना चाहिए। इसके हिंदी भावार्थ को भी लगातार जप सकते हैं।

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।



नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।





हिंदी भावार्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। अथवा मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं।



इस दिन सुबह उठकर जल्दी स्नान कर लें, फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें।



घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।



मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें।



अब मां दुर्गा को अर्घ्य दें।



मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।



धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां की आरती करें।



मां को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।