15 को मनाई जाएगी विजयदशमी, बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाते है दशहरा

नीलकंठ पक्षी को देखना होता है शुभ, शमी वृक्ष पूजन भी किया जाता है

15 को मनाई जाएगी विजयदशमी, बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाते है दशहरा

आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयादशमी (दशहरा ) रूप में मनाते हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि श्रीराम को लंका पर विजय इसी तिथि में प्राप्त हुई थी। इसलिए इसे विजयादशमी भी कहा जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह तिथि बड़ी शुभ मानी जाती है। अबूझ मुहूर्त माना जाता है।

लखनऊ के अलीगंज स्थित स्वास्तिक ज्योतिष केन्द्र के ज्योतिषाचार्य एसएस नागपाल ने बुधवार को यह बताया कि अपरान्ह बेला में ईशान दिशा में अपराजिता देवी के साथ जया और विजयादेवी का पूजन किया जाता है। शमी वृक्ष के पूजन का भी विधान है। दशमी तिथि का मान 14 को रात्रि 9ः 53 मिनट से 15 अक्टूबर को रात्रि 8ः22 मिनट तक है । विजय मुहूर्त 15 अक्टूबर को दिन में 1ः47 मिनट से 2ः33 मिनट तक है। अपरान्ह पूजन मुर्हूत दिन में 1ः01मिनट से 3ः20 मिनट तक है। अपराजिता देवी का पूजन, शमी वृक्ष पूजन करना शुभ होता है।

उन्होंने बताया कि ज्योतिषशास्त्र में आश्विन मास क शुक्ल पक्ष की तिथि को स्वयं सिद्ध या अबूझ मुर्हूत माना जाता है। अतः इस तिथि में बिना विचार के कोई भी नया काम प्रारम्भ करना शुभ होता है। रामलीलाओं में इस तिथि में रावण, मेघनाद व कुंभकर्ण के पुतले जलाने की परम्परा है। संध्या के समय के पुतलों का दहन किया जाता है। पौराणिक मान्यता है कि इस तिथि में श्रीराम ने रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी। उसी की याद में रावण, मेघनाद और कुम्भकर्ण के पुतले जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाया जाता है।

उन्होंने बताया कि इस तिथि में नीलकंठ पक्षी को देखना भी शुभ माना जाता है। वैसे तो सभी लोग इस पर्व को मनाते है, लेकिन यह क्षत्रियों का बहुत बड़ा पर्व है। इस दिन विजय मुहूर्त में अस्त्र- शस्त्र पूजन का विधान है। मां दुर्गा और भगवान राम की पूजा, अपराजिता पूजन आदि का भी इस दिन पूजन किया जाता है।