इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संघटक ’गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान’ में गांधी जयंती मनाई गई

समर्थ भारत का सपना तभी साकार होगा जब प्रत्येक युवा समर्थवान हो : प्रो. धनंजय यादव

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संघटक ’गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान’ में गांधी जयंती मनाई गई

प्रयागराज, 02 अक्टूबर । इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संघटक ’गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान’ में गांधी जयंती मनाई गई। मुख्य वक्ता शिक्षा शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. धनंजय यादव ने कहा कि समर्थ भारत का सपना तभी साकार होगा जब प्रत्येक युवा समर्थवान हो। समर्थ होने पर उसके कार्य मानवता से जुड़ें और मानवता धर्म का आधार बने।

विशेष व्याख्यान कार्यक्रम के अंतर्गत “शिक्षाविद् के रूप में गांधी“ शीर्षक पर प्रो. धनंजय यादव ने कहा कि जब तक शांतिपूर्ण सह अस्तित्व और प्रजातंत्र का अस्तित्व रहेगा, तब तक गांधी को याद किया जाता रहेगा। उन्होंने गांधी के संकल्पना रूपी सूत्र “3 एच“ की चर्चा की और सभी को उन सिद्धांतों से अपने जीवन में बदलाव लाने के लिए प्रेरित किया। कहा गांधी का पूरा जीवन प्रयोग पर आधारित रहा। गांधी स्वतः सीखने की अभिप्रेरणा पर जोर देते थे। उनका मानना था की समावेशी शिक्षा तभी समृद्ध होगी जब सभी के अनुभवों को उसमें जगह मिले। जो हमारे अंदर आत्मिक शक्ति है, उसे पहचानना सबसे जरूरी है। व्यक्ति मां के गर्भ से लेकर मृत्यु तक सीखता है। किसी भी एक घटना को अंतिम सत्य के रूप में नहीं देखा जा सकता।



प्रो. संतोष भदौरिया ने कहा कि आजादी के समय गांधी ने जो सपना देखा था, वह आज भी अधूरा है। उन्होंने गांधी के जंतर का भी जिक्र किया जिसके द्वारा वे ’अंतिम जन’ तक पहुंचने की बात करते हैं। उन्होंने कहा आज के मौजूदा परिदृश्य में गांधी हमारे अंतिम और एकमात्र विकल्प हैं। उन्होंने प्रगतिशील कवि ’मुक्तिबोध’ के हवाले से कहा कि-मुक्ति अकेले नहीं मिलती वह सब के साथ मिलती है। गांधी किसी भी प्रकार की सांप्रदायिकता का विरोध करते थे। अंत में उन्होंने कार्यक्रमों और प्रतियोगिताओं के बारे में संक्षिप्त जानकारी दी।

विशिष्ट अतिथि हिंदी विभाग डॉ राकेश सिंह ने कहा कि उपनिवेशवाद के विरुद्ध गांधी ने सबसे अधिक संघर्ष किया है। पिछले 150 वर्षों में विश्व पटल पर गांधी सबसे अधिक चर्चित व्यक्तित्व रहे हैं। उन्होंने शिक्षा जगत में फैली विषमता को देश की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा माना। उन्होंने गांधी के ’अंतिम जन’ के सामने खड़ी वर्तमान चुनौतियों पर चर्चा की।

अध्यक्षता करते हुए प्रो. पी.के. साहू ने कहा कि आधुनिक भारत की संकल्पना गांधी के बिना निरर्थक है। शिक्षा के तंत्र को नियंत्रित करके ही समाज कल्याण की दिशा में हम आगे बढ़ सकते हैं। ऐसी शिक्षा नीति का हमें प्रयोग करने की जरूरत है जो हमें आर्थिक नहीं, आत्मिक उन्नति की ओर ले चले। गांधी के जीवन की संकल्पना सामुदायिक भावना पर आधारित है। प्रो साहू ने अंत में कहा हमें शिक्षा के व्यवसायीकरण से बचना चाहिए।

कार्यक्रम का संचालन प्राध्यापक डॉ तोषी आनंद और धन्यवाद ज्ञापन अनुवाद अधिकारी हरिओम कुमार ने किया। इस दौरान शहर और विश्वविद्यालय के डॉ रंजना त्रिपाठी, डॉ कल्पना वर्मा, असरार गांधी, डॉ मनोज कुमार सिंह, डॉ राहुल पटेल, प्रवीण शेखर, रियाज खान, डॉ मृत्युंजय राव परमार, डॉ रेहान, डॉ राजेश सिंह, डॉ जया कपूर, राजनारायण, डॉ बृजेश कुमार, हिमांश धर द्विवेदी तथा विश्वविद्यालय एवं संघटक महाविद्यालयों के शोधार्थी, छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।