दोषियों को भी पढ़ाई करने का अधिकार : हाईकोर्ट
निष्कासित बीए एलएलबी छात्र का कोर्स पूरा करने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से मांगी जानकारी
प्रयागराज, 05 अगस्त । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भारतीय कानून प्रणाली के तहत एक दोषी व्यक्ति को भी अपने अध्ययन को आगे बढ़ाने और जेल से परीक्षा में शामिल होने का अधिकार है। ताकि, वह सामाजिक जीवन की मुख्य धारा में प्रवेश कर सके।
हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के निष्कासित विधि छात्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए की। छात्र को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा बीएएलएलबी पाठ्यक्रम पूरा करने की अनुमति नहीं दी गई थी। उसे यूनिवर्सिटी से अनुशासनहीनता के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया था। कोर्ट ने मामले में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी प्रशासन से जानकारी मांगी है। पूछा है कि अनुशासन बनाए रखने के साथ छात्र अपनी पढ़ाई कैसे पूरा कर सकता है।
याची छात्र आदिल खान की याचिका पर न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की पीठ सुनवाई कर रही थी। विधि छात्र सातवीं सेमेस्टर की परीक्षा में उपस्थित हुआ था। लेकिन उक्त सेमेस्टर का परिणाम घोषित नहीं किया गया था और इसी बीच उसे अनुशासनहीनता के आरोप में विश्वविद्यालय द्वारा पांच साल की अवधि के लिए निष्कासित कर दिया गया।
विधि छात्र ने न्यायालय के समक्ष अनुशासन और अच्छे आचरण को बनाए रखने के लिए हलफनामा प्रस्तुत किया कि वह न केवल नियमों का पालन करेगा बल्कि विश्वविद्यालय परिसर के अंदर और बाहर शांति और सद्भाव पूर्ण अनुशासन बनाए रखेगा।
विधि छात्र ने विश्वविद्यालय के समक्ष भी ऐसा ही हलफनामा प्रस्तुत किया था। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने निष्कासन आदेश को रद्द करने से इंकार कर दिया। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया कि याची के खिलाफ दो आपराधिक मामला दर्ज है। इसे देखते हुए न्यायालय ने कहा कि याची छात्र अभी तक दोषी सिद्ध नहीं हुआ है। इसलिए उसे अपनी पढ़ाई पूरी करने का अधिकार था। कोर्ट ने विश्वविद्यालय को निर्देश दिया कि वह अदालत को इसके बारे में अगली तारीख को सूचित करे। कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय के अनुशासन को भंग किए बिना अपने शैक्षिक कैरियर को बचाने के लिए याचिकाकर्ता अपने बीए एलएलबी पाठ्यक्रम को कैसे पूरा करेगा।
कोर्ट ने कहा कि भारतीय कानूनी व्यवस्था में एक दोषी व्यक्ति को भी अपने अध्ययन को आगे बढ़ाने और जेल से परीक्षा में बैठने का अधिकार है ताकि वह सामाजिक जीवन की मुख्य धारा में प्रवेश कर सके। किसी भी व्यक्ति को दी जाने वाली सजा सुधारात्मक होनी चाहिए थी और पूर्वाग्रही नहीं। याचिकाकर्ता को अपने बीए एलएलबी पाठ्यक्रम को पूरा करने से इंकार करने से उसका करियर बर्बाद हो सकता है। निश्चित रूप से याचिकाकर्ता एक युवा छात्र है और उसे खुद को सही करने और जीवन का सही रास्ता चुनने का मौका दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने मामले की सुनवाई केलिए 17 अगस्त की तिथि निर्धारित की है