महोबा के पूर्व एसपी मणिलाल पाटीदार की जमानत खारिज
-व्यापारी से रिश्वत मांगने, खुदकुशी के लिए उकसाने के आरोप में जेल में है बंद

प्रयागराज, 29 अप्रैल (हि.स)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महोबा के पूर्व एसपी मणिलाल पाटीदार की ज़मानत अर्जी खारिज़ कर दी है। पाटीदार पर महोबा के एक व्यापारी से रिश्वत मांगने, उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने और खुदकुशी के लिए उकसाने का केस दर्ज है। इस मामले में लम्बे समय तक फरार रहने के बाद पाटीदार फिलहाल जेल में बंद हैं।
ज़मानत अर्जी पर न्यायमूर्ति राजबीर सिंह ने सुनवाई की। घटना की प्राथमिकी मृतक इंद्रकांत त्रिपाठी के भाई रविकांत त्रिपाठी ने दर्ज कराई थी। आरोप है कि इंद्रकांत त्रिपाठी विस्फोटक का कारोबार करता था। उसके पास इसका लाइसेंस था। साथ ही वह कई फर्मों में भागीदार भी था। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि उसके प्रतिद्वंदी फर्म के अजय सोनी और ब्रह्मानंद ने उसे सबक सिखाने के लिए एसपी महोबा मणिलाल पाटीदार से मिलकर जून 2020 में 6 लाख रूपये प्रतिमाह रिश्वत देने की मांग की थी।
कारोबार में घाटा होने के कारण इंद्रकांत रकम नहीं दे पाया तो उसे धमकियां दी जाने लगी। झूठे मुकदमे में परेशान करने और जिंदगी तबाह करने की धमकी दी गई। उसे जेल में बंद कर हत्या करवाने की भी धमकी दी गई। इंद्रकांत ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से भी की थी। साथ ही उसने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी अपनी पीड़ा वायरल की थी कि उसे रिश्वत न देने पर प्रताड़ित किया जा रहा है। 8 सितम्बर 2020 को इंद्रकांत अपनी कार में घायल अवस्था में मिला। उसके गले में गोली लगी थी। बाद में अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई।
पुलिस की जांच में पता चला की इंद्रकांत ने प्रताड़ना से ऊबकर आत्महत्या कर ली है। इस मामले में मणिलाल पाटीदार सहित अन्य लोगों के खिलाफ आपराधिक षड्यंत्र, आत्महत्या के लिए प्रेरित करने सहित भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया।
पाटीदार के अधिवक्ता की दलील थी कि वह आईपीएस अधिकारी है तथा उसके खिलाफ कभी भी भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं रहा है। याची ने मृतक से पैसों की मांग की थी इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है और न ही मृतक ने उसे कोई धनराशि दी थी। आत्महत्या के लिए उकसाने का भी कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।
जमानत अर्जी का विरोध करते हुए अपर महाधिवक्ता और वरिष्ठ अधिवक्ता आई के चतुर्वेदी का कहना था कि वास्तव में मृतक ने पूर्व में 6 लाख रुपए प्रति माह रिश्वत दी थी। मगर बाद में उसका व्यवसाय नहीं चल रहा था इसलिए रकम देने में असमर्थ था। उसे लगातार परेशान किया गया जिससे ऊबकर उसने खुदकुशी कर ली। पैसा न देने के कारण ही उसे जुआ खेलने के फर्जी मुकदमे में फंसाया गया।
कोर्ट ने मामले के सभी तथ्यों परिस्थितियों पर विचार करने के बाद कहा कि उपलब्ध साक्ष्य को ट्रायल कोर्ट द्वारा देखा जाना है। मौजूदा स्थिति में जमानत देने का कोई आधार नहीं है। कोर्ट ने जमानत अर्जी खारिज कर दी।