महाकुम्भ और मकर संक्रांति पर अमृत स्नान का गुणगान रामचरितमानस में भी

महाकुम्भ और मकर संक्रांति पर अमृत स्नान का गुणगान रामचरितमानस में भी

महाकुम्भ और मकर संक्रांति पर अमृत स्नान का गुणगान रामचरितमानस में भी

 महाकुम्भ नगर, 14 जनवरी (हि.स.)। प्रयागराज महाकुम्भ का महत्व बहुत अधिक है। प्रयागराज महाकुम्भ और मकर संक्रांति पर अमृत स्नान का गुणगान तो रामायण व रामचरित मानस तक में किया गया है। जूना अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि माघ में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब सब लोग तीर्थराज प्रयाग आते हैं। देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्यों के समूह त्रिवेणी में स्नान कर अपने जीवन को धन्य बनाते हैं।

जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक एवं अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री श्रीमहंत हरि गिरि ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास कीे रामचरितमानस में प्रयागराज महाकुम्भ व मकर संक्रांति के अमृत स्नान के प्रसंग का श्रवण करने से जैसा आनंद बरसता है, वैसा ही आनंद मंगलवार को संगम पर अमृत स्नान के दौरान बरसा। सच्चे भक्तों को तो भगवान के साक्षात्कार करने का अनुभव भी प्राप्त हुआ। श्री दूधेश्वर पीठाधीश्वर व श्री पंच दशनाम जूना अखाडा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि महाराज ने बताया कि रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने प्रयागराज, यहां लगने वाले महाकुम्भ व मकर संक्रांति के अमृत स्नान का जो वर्णन किया है, वह तो साक्षात भगवान राम व प्रयागराज के रक्षक नगर देवता वेणी माधव का साक्षात्कार करा देने वाला है। उन्होंने लिखा है कि:-

भारद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा ।।तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना।।

भवार्थः.भारद्वाज मुनि प्रयाग में बसते हैं। उनका श्रीरामजी के चरणों में अत्यंत प्रेम है। वे तपस्वी निगृहीतचित्त जितेन्द्रिय दयाके निधान और परमार्थ के मार्ग में बड़े ही चतुर हैं।

माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई ।।देव दनुज किंनर नर श्रेनी । सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।

भवार्थ .माघ में जब सूर्य मकर राशि पर जाते है तब सब लोग तीर्थराज प्रयाग को आते हैं। देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्यों के समूह सब आदरपूर्वक त्रिवेणी में स्नान करते हैं।

पूजहिं माधव पद जलजाता ।परसि अखय बटु हरषहिं गाता ।।भारद्वाज आश्रम अति पावन ।परम रम्य मुनिवर मन भावन ।।

भवार्थः .श्री वेणी माधव जी के चरणकमलों को पूजते हैं और अक्षयवट का स्पर्श करके उनके शरीर पुलकित होते हैं। भारद्वाज जी का आश्रम बहुत ही पवित्र परम रमणीय और श्रेष्ठ मुनियों के मन को भाने वाला है।

तहाँ होई मुनि रिषय समाजा।जाहिं जे मज्जन तीरथराजा।।मज्जहिं प्रात समेत उछाहा।कहहिं परसपर हरि गुन गाहा।।

भवार्थः.तीर्थराज प्रयाग में जो स्नान करने जाते हैं, उन ऋषि मुनियों का समाज वहां जुटता है प्रातःकाल सब उत्साह पूर्वक स्न्नान करते है फिर परस्पर भगवान के गुणो की कथाएं कहते है।

ब्रह्म निरूपम धरम बिधि बरनहिं तत्व बिभाग।कहहि भगति भगवंत कै संजुत ग्यान बिराग।।

भवार्थः.ब्रह्म निरूपम धर्म का विधान और तत्वो के विभाग का वर्ण करते हैं तथा ज्ञान वैराग्य से युक्त भगवान की भक्ति कथन करते हैं।

एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं।पुनि सब निज निज आश्रम जांही।प्रति संबत अति होइ अनंदा।मकर मज्जि गवनहि मुनिबृंदा।।

भवार्थः इसी प्रकार माघ के महीने भर स्नान करते है और फिर सब अपने अपने आश्रम को चले जाते हैं। हर साल वहां इसी तरह बडा आनन्द होता है मकर में स्नान करके मुनिगण चले जाते हैं।