हमें इकोनामी के साथ इकोलाजी पर भी विशेष ध्यान देना होगा: स्वामी चिदानंद
हमें इकोनामी के साथ इकोलाजी पर भी विशेष ध्यान देना होगा: स्वामी चिदानंद
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महाकुंभनगर, 16 फरवरी (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा आयोजित ‘महाकुम्भ की आस्था और जलवायु सम्मेलन‘ में परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि जलवायु परिवर्तन में संत, संस्था, समाज और सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है। अब समय आ गया कि हम यूज एंड थ्रो कल्चर से यूज एंड ग्रो कल्चर की ओर बढ़े। दैनिक जीवन में जो चीजें हम उपयोग करते हैं, उनका हम सिर्फ इस्तेमाल कर के फेंक देते हैं। महाकुंभ मेला क्षेत्र, सेक्टर 25, प्रयागराज में आयोजित सम्मेलन में रविवार को उन्होंने कहा कि में हमें इकोनामी के साथ इकोलाजी पर भी विशेष ध्यान देना होगा। सस्टेनेबल विकास (वर्तमान के साथ ही आने वाली पीढ़ियों के विकास की जरूरतें पूरा करना) के लिए कार्बन मुक्त होने की ओर बढ़ना होगा। जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण कदम डीकार्बोनाइजेशन है और इसके लिये ग्रीन ब्रांड कल्चर को विकसित करना होगा। ऐसे ब्रांड्स को बढ़ावा देना होगा जो पर्यावरण संरक्षण के लिये जिम्मेदार हो। हमें यह समझना होगा कि किस ब्रांड का कार्बन उत्सर्जन कितना है और उसी आधार पर उन्हें प्राथमिकता देनी होगी।
प्रथम सत्र में पर्यावरण संरक्षण में धार्मिक नेताओं की भूमिका पर स्वामी मुकुंदानन्द ने धर्म और पर्यावरण के बीच के संबंधों पर चर्चा की। उन्होंने धार्मिक संस्थाओं से पर्यावरण संरक्षण के लिए सक्रिय पहल करने का आह्वान किया। शालिनी मेहरोत्रा (हर्टफुलनेस इंस्टीट्यूट), स्मृति गौर सिंह (अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी) और डॉ. अरविंद कुमार (लंग केयर फाउंडेशन के संस्थापक) ने भी अपने विचार साझा किए।
दूसरे सत्र में पवित्र नदियों, जल सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन पर डॉ. राजेंद्र सिंह (भारत के जलविज्ञानी और ‘वाटरमैन’ ने पवित्र नदियों के संरक्षण पर जोर दिया और जल सुरक्षा के महत्व पर चर्चा की। अन्य विशेषज्ञों ने पवित्र नदियों के संरक्षण को धार्मिक और सांस्कृतिक कर्तव्य बताया और इसे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मददगार बताया।
तीसरे सत्र में सतत धार्मिक केंद्र और धार्मिक आयोजन पर काशी विश्वनाथ मंदिर के ट्रस्टीप्रोफेसर चंद्रमौली उपाध्याय और कैलाश मानसरोवर के अचार्य हरी दास गुप्ता ने धार्मिक केंद्रों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशीलता को बढ़ाने की आवश्यकता पर चर्चा की। अमृता विश्वविद्यालय से डॉ. मनीषा वी. रामेश और आईएएस सत्यब्रत साहू ने धार्मिक संस्थाओं में सतत व सुरक्षित प्रथाओं के महत्व पर अपने विचार साझा किए। इसी तरह चैाथे सत्र में सरकारी अधिकारियों और धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ विश्वास-आधारित कार्यों पर चर्चा की और इस पर विचार किया कि कैसे सरकारें धार्मिक संगठनों के साथ मिलकर प्रभावी कदम उठा सकती हैं।
पांचवे सत्र में मिशन लाइफ, सतत जीवनशैली को बढ़ावा देना में रामकृष्ण मिशन आश्रम, कानपुर के स्वामी आत्मश्रद्धानंद और आरआर रश्मि, टेरी के विशेषज्ञ ने व्यक्तिगत स्तर पर सतत जीवनशैली अपनाने की आवश्यकता पर जोर दिया । छटवे सत्र में धार्मिक संगठनों के योगदान पर चर्चा की गई, जिसमें कांची कामकोटि पीठम के प्रतिनिधिअरुण सुब्रमणियन और अन्य विशेषज्ञों ने जलवायु अनुकूलन, शमन और आपदा राहत में धार्मिक संस्थाओं के कार्यों की समीक्षा की। इस सत्र में आपदा प्रबंधन की योजनाओं विस्तार से बताया।
इस अवसर पर इंटरनेशनल फोरम फॉर एन्वायर्नमेंट, सस्टेनेबिलिटी एंड टेक्नोलॉजी के अध्यक्ष और सीईओडॉ. चंद्र भूषण, ग्राम्य अवार्ड विजेता रिकी केज, एनटीपीसी के प्रबंध निदेशक गुरदीप सिंह समेत आदि अनेक विभूतियों, वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने सहभाग किया।
हिन्दुस्थान समाचार / बृजनंदन