सशक्त पंचायतों से ही बनेगा विकसित राष्ट्र
राष्ट्रीय पंचायत राज दिवस पर विशेष

भारत गांवों का देश है। यहां की बहुसंख्यक आबादी आज भी गांवों में रहती है। भारत के गांव ही देश की अर्थव्यवस्था की मुख्य धुरी हैं। इसीलिए कहा जाता है कि जब तक देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं होगी तब तक भारत विकसित राष्ट्र नहीं बन पाएगा। गांव में सुशासन स्थापित करने के लिए ही ग्राम पंचायत की स्थापना की गई थी। हमारे देश के नेताओं को ग्रामीण पृष्ठभूमि का पूरा ज्ञान था इसलिए उन्होंने गांव के महत्व को समझकर ग्रामीण क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की थी। उनको पता था कि जब तक गांव मजबूत नहीं होंगे तब तक देश मजबूत नहीं होगा। गांव को मजबूत करने के लिए यहां मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराना सबसे महत्वपूर्ण कार्य था।
आजादी के समय भारत के गांव बहुत पिछड़े हुए थे। देश के अधिकांश गांवों में मूलभूत सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं था मगर आज गांवों की व्यवस्था भी बहुत कुछ बदल गई है। आज देश के बहुत से गांव में शहरों की भांति सुविधा देखने को मिल रही है लेकिन आज भी देश में हजारों ऐसे गांव हैं जहां पर्याप्त मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पाई हैं। जब तक सरकार देश के सभी गांव में समान रूप से सुविधा उपलब्ध नहीं करवा पाएगी तब तक देश विकास की दौड़ में पूरी गति से शामिल नहीं हो पाएगा। हम आज पंचायत राज दिवस मना रहे हैं। हमारे देश में 2 अक्टूबर 1959 को पहली बार पंचायत राज व्यवस्था लागू की गई थी। 1993 में त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्राप्त हुआ था।
राष्ट्रीय पंचायत राज दिवस भारत में बहुत महत्व रखता है क्योंकि यह एक संवैधानिक इकाई के रूप में पंचायत राज प्रणाली की स्थापना का प्रतीक है। पंचायत राज प्रणाली भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसका उद्देश्य स्थानीय स्तर पर सत्ता और संसाधनों का विकेंद्रीकरण करना और सहभागी लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और समावेशी विकास को बढ़ावा देना है। पंचायत राज प्रणाली जमीनी स्तर पर लोगों को निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भाग लेने और उनके विकास का स्वामित्व लेने में सक्षम बनाती है, जो स्व-शासन और जवाबदेही को बढ़ावा देने में मदद करती है।
भारत गांवों का देश माना जाता है और गांव के विकास में पंचायतों की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होती है। चूंकि ग्राम पंचायतों के पंच व सरपंच सीधे ग्रामीणों द्वारा चुने जाते हैं। इसलिए निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का अपने ग्राम पंचायत क्षेत्र के लोगों से सीधा संपर्क रहता है। ग्रामवासी भी अपनी समस्याएं सीधे पंचायत तक पहुंचा सकते हैं। मगर ग्राम पंचायतों की स्थापना के इतने वर्षों के बाद भी अभी तक ग्राम पंचायतें वास्तविक रूप में सशक्त नहीं हो पाई हैं। ग्राम पंचायतें पूरी तरह राज्य सरकारों पर निर्भर हैं। कहने को तो ग्राम पंचायतों को बहुत सारे अधिकार प्रदान किए गए हैं मगर आज तक भी ग्राम पंचायतें अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पाती हैं। आज भी देश की अधिकांश ग्राम पंचायतों में सरकारी अधिकारी, कर्मचारी प्रभावी रहते हैं।
ग्राम पंचायतों में आरक्षण व्यवस्था लागू होने के कारण बड़ी संख्या में महिलाएं पंच, सरपंच निर्वाचित होकर आती हैं। उनमें से कई महिलाएं वास्तव में बहुत अधिक पढ़ी-लिखी होने के कारण पूरी जानकारी रखती हैं। इस कारण वह अपने अधिकारों का पूरा प्रयोग कर लेती हैं। मगर अधिकांशतः सुरक्षित क्षेत्र होने के कारण गांवों के प्रभावी नेता अपने परिवार की किसी महिला को पंच या सरपंच बनवा देते हैं, फिर उनके स्थान पर खुद नेतागिरी करते हैं। वहां की निर्वाचित महिलाएं मात्र कागजी जनप्रतिनिधि बन कर रह जाती हैं। बहुत से स्थानों पर तो महिला सरपंचों के हस्ताक्षर भी उनके स्थान पर काम करने वाले उनके परिजनों द्वारा ही कर दिए जाते हैं। ऐसी स्थिति में पंचायती राज व्यवस्था के मजबूत होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सरकार बार-बार परिपत्र जारी कर सरपंच के प्रतिनिधियों को पंचायतों के कार्यों में हस्तक्षेप करने से मना करती है मगर धरातल पर सरकार के परिपत्र मात्र कागजी बन कर रह जाते हैं।
देश में आज चाहे ग्राम पंचायत हो, पंचायत समिति हो या जिला परिषद् हो। जहां भी महिला जनप्रतिनिधि निर्वाचित होकर आती हैं। उनके स्थान पर उनके परिजन ही कार्य करते देखे जा सकते हैं। सभी प्रदेशों की राज्य सरकारों को कड़ाई से इस पर रोक लगानी चाहिए ताकि महिलाओं को भी अपने पद पर काम करने का मौका मिल सके। ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर देखने में आता है कि निर्वाचित पंच, सरपंच पंचायतों की बैठक में घूंघट निकाल कर बैठती हैं क्योंकि वहां उनकी ससुराल के बड़े परिजन भी बैठे होते हैं। आज देश शिक्षा के क्षेत्र में बहुत तरक्की कर रहा है। महिलाएं हर क्षेत्र में अपने काम से धूम मचा रही हैं। अब तो सेना को भी महिलाओं के लिए पूरी तरह खोल दिया गया है। ऐसे में जनप्रतिनिधियों का घूंघट निकाल कर बैठना सभ्य समाज के लिए किसी दुखद घटना से कम नहीं है। सरकार को ऐसी घटनाओं पर भी सख्ती बरतनी चाहिये।
पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से महिलाओं का जीवन बहुत प्रभावित हुआ है। सही मायने में पंचायती राज ने महिलाओं को समाज का एक विशेष सदस्य बना दिया है। लाखों महिलाऐं सार्वजनिक जीवन में आयी हैं लेकिन अधिकतर निर्वाचित महिलाओं को निर्वाचक सदस्य होने के विषय में पूर्ण जानकारी भी नहीं है। अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता की कमी के कारण वह प्रभावी नहीं हो पाती हैं। उन्हें यह भी ज्ञान नहीं होता है कि वह एक कुशल प्रशासक भी हो सकती हैं।
घूंघट में रहना लोकतंत्र और औरत जाति के लिए चुनौती है। समय के साथ बहुत कुछ बदल गया है लेकिन औरतों के प्रति लोगों की सोच अभी तक नहीं बदली है। राजनीति घूंघट में रह कर नहीं हो सकती। इसके लिए बेबाक होना पड़ता है। औरतों को अपने से कमतर मानने की सोच के चलते ही उनके चेहरे से परदा नहीं हट पा रहा है। लोकतंत्र की सबसे छोटी संसद पंचायती राज में हालांकि महिलाएं 50 फीसदी सीटों पर काबिज हैं लेकिन इन महिला जनप्रतिनिधियों में से कई पढ़ी-लिखी होने के बाद भी ग्राम पंचायत की बैठकों में घूंघट में बैठी रहकर जुबान ही नहीं खोलती हैं।
क्या ऐसी स्थिति के लिए ही पंचायत राज को मजबूती देने का निर्णय किया गया था। क्या इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करने के बाद भी हमारे देश की महिला जनप्रतिनिधियों को घूंघट की ओट में ही जीने को विवश होना पड़ेगा। यह एक बड़ा सवाल है जिसे ना सिर्फ प्रशासनिक अधिकारियो को गंभीरता से लेना पड़ेगा बल्कि राजनेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों को भी सरपंच पतियों के बढ़ते हस्तक्षेप पर प्रभावी अंकुश लगाना होगा। औरतों के सिर से घूंघट हटाने के लिए लड़कियों के माता-पिता को आगे आना होगा। उन्हें अपनी बेटियों की शादी उसी परिवार में करनी चाहिए जहां घूंघट का बंधन नहीं हो। घूंघट में रह कर औरतें अपनी जिंदगी के ताने-बाने को कैसे बुन सकती हैं? घूंघट में रह कर राजनीति या समाजसेवा नहीं की जा सकती।
आज के समय में ग्राम पंचायतें पैसे कमाने का जरिया बन गई हैं। पंचायत चुनाव में बड़ी मात्रा में पैसे खर्च होते हैं। चुनाव जीतने के बाद निर्वाचित सरपंच द्वारा जनसेवा के बजाय पैसे कमाने पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इस कारण निर्वाचित जनप्रतिनिधि ग्राम पंचायत के सामाजिक सरोकार के कामों को भूल कर निर्माण कामों में व्यस्त हो जाते हैं। अपनी पंचायत में अधिक से अधिक निर्माण कार्य स्वीकृत करवाने के लिए सरपंच विधायकों, सांसदों के चक्कर काटते रहते हैं। जिस कारण वह उनके दबाव में काम करते हैं। पंचायती राज व्यवस्था को सही मायने में सशक्त बनाने के लिए सरकार को सभी प्रकार के निर्माण कार्य ग्राम पंचायतों से हटाकर संबंधित विभागों से कराना चाहिए ताकि सरपंच जनता से जुड़ कर उनकी समस्याओं का सही मायने में समाधान करवा सकें।