माघ मेला : संगम की रेती पर एक माह के कल्पवास का हुआ समापन

माघ मेला : संगम की रेती पर एक माह के कल्पवास का हुआ समापन

माघ मेला : संगम की रेती पर एक माह के कल्पवास का हुआ समापन

प्रयागराज, 05 फरवरी। माघी पूर्णिमा के अवसर पर गंगा, जमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम में लाखों श्रद्धालुओं ने रविवार को आस्था की डुबकी लगाई। माघी पूर्णिमा के स्नान पर्व के साथ ही तीर्थराज प्रयाग में संगम की रेती पर चल रहे माघ मेले का अनौपचारिक समापन हो गया और कल्पवास भी आज खत्म हो गया। वैसे मेला 18 फरवरी को पड़ने वाले महाशिवरात्रि के पर्व तक जारी रहेगा।

हिन्दू पंचांग के अनुसार माघी पूर्णिमा की शुरुआत 04 फरवरी की रात 09ः29 मिनट पर शुरू हुई और इसका समापन 05 फरवरी रात 11ः58 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार माघी पूर्णिमा 05 फरवरी को ही है। हिन्दू धर्म में पूर्णिमा का काफी खास महत्व होता है। पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु भी इस दिन गंगा नदी में वास करते हैं।

दिन में धूप निकलने के बाद श्रद्धालुओं का रेला संगम की ओर तेजी से बढ़ा। मेला प्रशासन के अनुसार लाखों लोगों ने संगम समेत गंगा के 15 घाटों पर स्नान किया। स्नान के बाद लोगों ने घाटों पर पूजन-अर्चन किया और दान भी दिया। समाचार लिखे जाने तक मेला क्षेत्र और स्नान घाटों से किसी अप्रिय घटना की खबर नहीं थी।

माघी पूर्णिमा स्नान के साथ ही संगम तट पर मास पर्यंत चल रहा कल्पवास का अनुष्ठान भी आज समाप्त हो गया। पौष पूर्णिमा से यहां जमे कल्पवासी माघी पूर्णिमा स्नान के बाद अपने घर को प्रस्थान करने लगते हैं। आस पास के कल्पवासी स्नान कर देर रात तक घर वापस जायेंगे। अधिकतर कल्पवासी सोमवार की सुबह घर लौटेगे, जबकि कुछ कल्पवासी त्रिजटा पर्व का स्नान कर मेला क्षेत्र छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं।

सम्पूर्ण मेला क्षेत्र में शान्ति व सुरक्षा व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस विभाग द्वारा पुलिस लाइन, यातायात पुलिस लाइन, थाने, जल पुलिस थाना, फायर स्टेशन, पुलिस चौकियां और वायरलेस ग्रिड स्थापित किये गये हैं। पूरे मेला क्षेत्र को दो जोन और छह सेक्टरों में बांटा गया है। आतंकवादी गतिविधियों के मद्देनजर मेला क्षेत्र के मुख्य स्थलों पर सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं। पुलिस बल के अलावा मेला क्षेत्र में पीएसी और रैपिड एक्शन फोर्स की भी कई कंपनियां लगाई गयी हैं। मेला क्षेत्र की निगरानी के लिए प्रशासन ने ड्रोन कैमरों की भी व्यवस्था की है। श्रद्धालुओ पर फूलों की वर्षा भी हुई। प्रमुख स्नान पर्वों पर एक दिन पहले ही मेला क्षेत्र में यातायात प्रतिबंधित कर दिया जाता है। भीड़ नियंत्रण के लिए कंट्रोल रुम को अत्याधुनिक रुप दिया गया है।

--क्या है कल्पवास

संगम की रेती पर कायाकल्प हेतु किया जाने वाला तप कल्पवास कहलाता है। यह व्रत पौष पूर्णिमा के साथ ही शुरू हो जाता है। इस दिन गंगा स्नान के बाद श्रद्धालु कल्पवास का विधि विधान से संकल्प लेते हैं। वे तीर्थ पुरोहितों के आचार्यत्व में मां गंगा, नगर देवता वेणी माधव और पुरखों का स्मरण कर व्रत शुरू करते हैं। महीने भर जमीन पर सोते हैं। पुआल और घास-फूस उनका बिछौना होता है। बदन पर साधारण वस्त्र और हाथों में टीवी के रिमोट की जगह धार्मिक पुस्तकें होती हैं। तीर्थपुरोहितों के आचार्यत्व में मंत्रोच्चार के बीच मां गंगा, वेणी माधव एवं पूर्वजों का स्मरण कर त्याग-तपस्या के 21 नियमों को पूरी निष्ठा से निभाते हैं। साथ ही मेला क्षेत्र में बने अपने अस्थाई झोपड़ी या तम्बू के दरवाजे के पास ये कल्पवासी बालू में तुलसी का बिरवा लगाते हैं और जौ बोते हैं। सुबह स्नान के बाद यहां जल अर्पित करते हैं। सुबह और शाम को यहां दीपक भी जलाते हैं। कल्पवास समाप्त होने के बाद वापस जाते समय वह इसे प्रसाद स्वरूप अपने घर लेकर जाएंगे। कल्पवास करने वाले श्रद्धालु महीने भर रोज तीन बार गंगा स्नान और मात्र एक बार भोजन करते हैं। किसी का दिया हुआ कुछ भी ग्रहण नहीं करते। दान, यज्ञ-पूजा अनुष्ठान और प्रवचन करने व सुनने का व्रत आरंभ हो जाता है। गंगा की रेती पर मास पर्यन्त कठोर तपस्या के बाद माघी पूर्णिमा का स्नान कर ये कल्पवासी (श्रद्धालु) अपने घर वापस लौटते हैं।



तीर्थराज की यह परम्परा आदिकाल से चली आ रही है। प्रयाग का मतलब ही है, वह पवित्र धरती जहां प्राचीन काल में खूब यज्ञ हुए हों। मान्यता है कि ब्रह्माण्ड की रचना से पहले भगवान ब्रह्मा ने भी प्रयाग में अश्वमेध यज्ञ किया था। दशाश्वमेध घाट और ब्रह्मेश्वर मंदिर इस यज्ञ के प्रतीक स्वरुप आज भी यहाँ मौजूद हैं। इस यज्ञ के कारण यहां कुम्भ का भी विशेष महत्व है, जो संगम की पवित्र रेती पर हर बारहवें साल आयोजित होता है।

इसी क्रम में आज भी गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम पर हर साल माघ माह में तंबुओं और घास-फूस की झोपड़ियों का एक नया शहर बस जाता है, जो माघ मेला के नाम से जाना जाता है। हर छठे साल यही मेला अर्ध कुम्भ और हर बारहवें वर्ष कुम्भ के नाम से पूरी दुनिया में विख्यात है।