कोरोना के दौर में शिक्षा व्यवस्था का उपाय निकला ऑनलाइन : शुभ्रो माइकल
संस्कृति का महत्वपूर्ण तत्व वहां का लोकसाहित्य, लोकगीत एवं लोकगाथा : प्रो. नन्दिनी
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प्रयागराज, 30 सितम्बर । जब भी चुनौतियां आती है तो समाज उसके साथ समायोजन व सामंजस्य करता है। यही बात शिक्षा व्यवस्था पर लागू हुई। कोरोना के दौर में शिक्षा व्यवस्था को किसी प्रकार चलाना था और दूसरी तरफ उसकी त्रासदी के साथ जूझना था। उस दौर में जो चुनौती हमारे समक्ष थी, उस पर बहुत ही अच्छा उपाय ढूंढ निकाला गया, ऑनलाइन माध्यम से शिक्षा व्यवस्था की गई।
उक्त विचार मुख्य वक्ता शुभ्रो माइकल गोम्स, निदेशक (अध्ययन), भारतीय लागत लेखांकन संस्थान कोलकाता ने ‘ऑनलाइन परीक्षा में प्रश्नपत्र तैयार करने में प्रमुख मुद्दे’ एवं ‘ऑनलाइन परीक्षा में प्रश्नपत्रों के लिए आदर्श उत्तरों का निर्माण’ विषय पर व्याख्यान में व्यक्त किया।
उन्होंने कहा कि स्वाभाविक है कि इसमें हम ऑनलाइन माध्यम से प्रश्नों का निर्माण भी करते हैं और एक आदर्श उत्तर का निर्माण कैसे किया जाये, इसकी भी जानकारी दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि यू-ट्यूब और अन्य चैनलों के माध्यम से ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से हम विद्यार्थियों को मूक्स या स्वयं द्वारा एक आदर्श उत्तर के विभिन्न पहलुओं से करा सकते हैं और बिन्दुवार विश्लेषण कर सकते हैं। उन्होंने मॉडल प्रश्नपत्र और मॉडल उत्तर का व्यवहारिक प्रस्तुतीकरण किया।
ईश्वर शरण पीजी कॉलेज में शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार के उपक्रम संकाय विकास केन्द्र द्वारा आयोजित सात दिवसीय ऑनलाइन कार्यशाला के द्वितीय सत्र की प्रमुख वक्ता प्रो. नन्दिनी साहू अंग्रेजी विभाग इग्नू, नई दिल्ली ने ‘पाठ्यचर्या और शिक्षण : भारतीय विश्वविद्यालयों में लोकगाथा शिक्षण’ एवं ‘नई शिक्षानीति और भारतीय विश्वविद्यालयों में लोकगाथा शिक्षण’ विषय पर कहा कि किसी भी संस्कृति में अगर आप देखें तो संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है वहां का लोकसाहित्य, लोकगीत एवं लोकगाथा। अगर हम लोकगाथाओं से परिचित होते हैं तभी उस संस्कृति का जो जीवन मूल्य है उससे परहित हुआ जा सकता है।
उन्होंने कहा कि वैसे हमारी जो सांस्कृतिक अस्मिता थी, पहचान थी वह कहीं न कहीं खो रहे हैं। ऐसे में शिक्षा व्यवस्था का ही यह दायित्व है कि शिक्षा व्यवस्था अपनी संस्कृति के मूल तत्वों से लोगों को परिचित कराती रहे। लोकगाथा की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। लोकगाथा हमें बताती है कि कोई संस्कृति किसी विषय पर अपना प्रतिउत्तर कैसे देती है। अपने जीवन की समस्याओं को कैसे सुलझाती है। नई शिक्षानीति में शिक्षक, विद्यार्थियों एवं समाज के बीच यह कैसे उपयोगी हो इन पक्षों पर भी आज के व्याख्यान में चर्चा हुई।
कार्यक्रम के क्रियान्वयन में एफडीसी के सहायक समन्वयक डॉ. मनोज कुमार दुबे, कार्यशाला के संयोजक चीफ प्रॉक्टर डॉ.मान सिंह, सहायक संयोजक डॉ. रश्मि जैन एवं सहायक संयोजक डॉ.अरविन्द कुमार मिश्र की महत्वपूर्ण भूमिका रही।