हिन्दी को भारतीय भाषाओं का सेतु बनने की जरूरत : प्रो. संजीव दुबे
तीन दिवसीय ‘भाषा संसद’ में 11 प्रस्ताव पारित
प्रयागराज, 24 जुलाई। हिन्दुस्तानी एकेडेमी उप्र, प्रयागराज एवं नया परिमल, प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय ‘भाषा संसद’ के अंतिम दिवस सोमवार को दो सत्रों में ‘भाषा संसद’ का आयोजन हिन्दुस्तानी एकेडेमी स्थित गांधी सभागार में किया गया। मुख्य वक्ता प्रो. संजीव दुबे ने कहा कि हिन्दी को भारतीय भाषाओं का सेतु बनने की जरूरत है।
डॉ बहादुर सिंह परमार ने कहा कि बहुभाषिकता हमारी कमजोरी नहीं हमारी ताकत है। पूर्व अध्यक्ष उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान डॉ कन्हैया सिंह ने कहा कि सभी राजभाषा सम्बंधी संस्थाएं अगर मिलकर आन्दोलन चलाएं तो हिन्दी अपना उचित स्थान पा सकती है।
प्रथम सत्र में ‘भाषा संसद (राष्ट्रभाषा हिन्दी, भारतीय भाषाएं एवं मातृभाषा)’ विषय पर परिचर्चा हुई। डॉ. प्रसून कुमार सिंह ने कहा कि मातृभाषा हमेशा हमारी पीड़ा को व्यक्त करती है। मातृभाषा में हमेशा वह सुख मिलता है जो मां की गोद और आंचल में मिलता है। डॉ वीरेन्द्र मीणा ने हिन्दी के पाठ्यक्रम में मातृभाषा के शब्दों को रखने की बात कही।
डॉ. अमितेश कुमार ने रामविलास शर्मा की हिन्दी जाति की अवधारणा और रंगमंच पर प्रयोग की जाने वाली भाषा के सम्बन्ध में अपनी बात रखी। डॉ विजय कुमार रविदास ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर के शान्ति निकेतन का हवाला देते हुए पश्चिम बंगाल में हिन्दी के प्रयोग पर विचार व्यक्त किया। डॉ लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता ने कहा कि हिन्दी या अन्य किसी भाषा का इतिहास तब तक नहीं लिखा जा सकता जब तक उसकी अपनी मुकम्मल भाषा नहीं होगी। चिंतन की क्षमता उस जबान में होती है जो मां देती है।
डॉ सुनील विक्रम सिंह ने कहा कि भोजपुरी सिर्फ लोक भाषा लायक है, साहित्य के लायक नहीं है। डॉ राजेश कुमार गर्ग ने सभी भाषाओं के समन्वय की बात की। डॉ संजय सिंह ने प्रारम्भिक शिक्षा के लिए मातृभाषा पर जोर दिया। डॉ रमेश सिंह ने सम्पूर्ण भारत में हिन्दी के वर्चस्व की बात की। डॉ मार्तंड सिंह ने कहा कि भाषा ही हमारा पर्याय है। भाषा ने ही हमें बनाया है। जिस देश की भाषा मर जाएगी उस देश की संस्कृति भी मर जाएगी। डॉ. सरोज सिंह ने कहा कि हर व्यक्ति को अपनी मातृभाषा पर गर्व होना चाहिए और सम्मान के साथ अन्य भाषाओं को भी सीखना चाहिए।
अध्यक्षता करते हुए उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य प्रो पंकज कुमार ने दक्षिण भारत में जिस तरह से हिन्दी संस्थान खोले गये उसी तरह उत्तर भारत में भी दक्षिण भारतीय भाषाओं के संस्थान खोलने की बात की। भाषा संसद के समापन सत्र में अतिथि वक्ताओं में डॉ राकेश सिंह ने कहा जब तक हम लोक मन को नहीं पढ़ेंगे तब तक भाषा का महत्त्व नहीं समझ सकते। डॉ. प्रमोद कुमार तिवारी ने भाषाओं में वर्ग सहयोग की भूमिका और भोजपुरी के महत्व को रेखांकित किया।
धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के कोषाध्यक्ष दुर्गेश कुमार सिंह एवं नया परिमल के सचिव डॉ विनम्रसेन सिंह ने किया। भाषा संसद में उपस्थित विद्वानों में प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह, प्रो. शिवप्रसाद शुक्ल, डॉ. बृजेश कुमार पाण्डेय, डॉ. अनिल कुमार सिंह, प्रसिद्ध कवि डॉ श्लेष गौतम, इविवि के शोधार्थी एवं हिन्दुस्तानी एकेडेमी के कर्मचारीगण उपस्थित रहे।
तीन दिवसीय भाषा संसद में 11 प्रस्ताव पारित
तीन दिनों तक चले भाषा संसद के अंतिम सत्र में डॉ कन्हैया सिंह (अध्यक्ष उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ) की अध्यक्षता में 11 महत्वपूर्ण प्रस्ताव सहमति से पारित किए गये। जिनमें
1. भारत की भाषाओं के आपसी सम्बंधों पर विचार हुआ और तय किया गया कि इस सम्बंध को और मजबूत किया जाएगा।
2. भाषा के आधार पर एक वृहत्तर भारत की तस्वीर बनती है, इस धारणा का व्यापक प्रचार किया जाएगा। वृहत्तर भारत के साथ सम्बधों के निर्वाह के रास्ते भी तलाश किए जाएंगे।
3. हिन्दी और उनकी जनपदीय भाषाओं का रिश्ता धीरे धीरे जटिल होता जा रहा है। प्रत्येक जनपदीय भाषाएं हिन्दी से अलग पहचान के लिए संघर्षरत हैं। इनके कारणों की तलाश कर उसके निदान की बिंदुओं को उद्घाटित किया जाएगा।
4. संस्कृत भारतीय भाषाओं के बीच की कड़ी है। इस कड़ी की उपेक्षा हुई है। इस सम्बंध में समन्वय बनाया जाएगा।
5. हिन्दी और अंग्रेजी के बीच वर्चस्व की राजनीति का अंत कर इनकी भूमिकाओं के सही रेखांकन की आवश्यकता है। किसी भी भाषा के प्रति दुराग्रह को त्याग कर उसकी उचित भूमिका तय किए जाने का प्रयास किया जाएगा।
6. प्रत्येक राज्य में कम से कम एक भारतीय भाषा विश्वविद्यालय की स्थापना हो जो भारतीय भाषाओं के वांगमय में उपस्थित ज्ञान सम्पदा को देश के समक्ष प्रस्तुति में योगदान का अवसर प्रदान करे।
7. सामान्य शब्दों के लिए भारतीय भाषाओं में समानांतर कोष निर्मित हो।
8. इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में भारतीय भाषाओं के कुंजीपटल हों जिससे लोग अपनी भाषा में अधिकतम योगदान कर सकें।
9. प्रत्येक विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में भारतीय साहित्य का एक पाठ्यक्रम अनिवार्य हो देश की भावात्मक एकता को अभिव्यक्त करता हो।
10. भारतीय भाषाओं के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक आयोग का गठन हो।
11. समस्त भारतीय भाषाओं में सामान्य अभिवादन के प्रति हम देशभर में जनजागरण करेंगे। एवं संविधान सभा की तीन दिन की बैठक को सर्व समाज में चर्चा का विषय बनाएंगे।