महाकुम्भ में बना कीर्तिमान, विश्व कल्याण के लिए एक साथ जले 27 लाख दीप
महाकुम्भ में बना कीर्तिमान, विश्व कल्याण के लिए एक साथ जले 27 लाख दीप
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सनातन की अखंड ज्योति से जग-मग हुई कुम्भ नगरी प्रयागराज
महाकुम्भ नगर, 12 फरवरी (हि.स.)। दुनिया के सबसे बड़े महाकुम्भ में श्रद्धा की लौ जब 27 लाख दीपों में सिमटी तो संगम का जल भी स्वर्णिम आभा में नहाने लगा। ऐसा प्रतीत हुआ मानो तारकाओं ने अपनी चंचलता त्यागकर धरती पर उतरने का संकल्प लिया हो और मां गंगा की लहरें स्वयं उन दीपों को बाहों में भरकर सम्पूर्ण ब्रह्मांड तक उनका प्रकाश पहुंचाने को आतुर हों। महाकुम्भ के सेक्टर-8 में श्री जीयर स्वामी महाराज के शिविर में यज्ञ मंडप के चारों तरफ बुधवार की रात 27 लाख दीप जलाए गए।
स्वामी जी महाराज के मीडिया प्रभारी अखिलेश बाबा ने बताया कि महाकुम्भ में पहली बार ऐसा हुआ है कि एक साथ 27 लाख दीपदान किया गया है। इसमें 2000 लोग दीप सजाने में लगे हुए थे। कलाकारों ने दीप के माध्यम से जय श्री राम, हर-हर महादेव, जय श्रीमन नारायण, जय श्री लक्ष्मी नारायण की आकृति बनाई। उन्होंने बताया कि श्री जीयर स्वामी के सान्निध्य में हो रहे सात दिवसीय श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ का बुधवार को समापन भी हुआ। इसमें देश भर से आए साधु संतों को वस्त्र देकर उन्हें विदाई दी गई। स्वामी जी महाराज ने कहा कि इस प्रयागराज की पावन भूमि पर जिसको भी श्रीमन नारायण प्रभु का स्मरण करने का मौका मिला, समझे कि वह जीवन धन्य है।
श्रद्धालु दीनबन्धु तिवारी अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा कि यह केवल घी में भीगे हुए दीपों की लौ नहीं थी, यह सनातन संस्कृति की अखंड ज्योति जो कालचक्र से परे जाकर विश्व कल्याण की साधना कर रही थी। संतों के मंत्रोच्चार से वातावरण गुंजायमान था और आस्था की तरंगों ने समय की सीमाओं को लांघकर मानो देवताओं तक अपना संदेश पहुंचा रहा हो। श्रद्धालु राजबली ने बताया कि इस महासंगम में रोशनी केवल दीपों तक सीमित नहीं रही, वह हृदयों में उतरकर आत्मा तक उजास भर रही थी। ऐसा लगा जैसे स्वयं महादेव ने काशी से कूच कर संगम के तट पर धूनी रमा ली हो और उनके नेत्रों की तपिश से अज्ञान का तिमिर सदा-सदा के लिए विलुप्त हो गया हो।
जीयर स्वामी ने हिन्दुस्थान समाचार से विशेष बातचीत में कहा कि 'यह केवल एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति के दिव्य प्रकाश का महापर्व था, जिसने पूरे महाकुम्भ को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर दिया। वह एक संदेश था-सनातन की अनंत परम्परा का, विश्व शांति और कल्याण की अभ्यर्थना का। इस अलौकिक दीपोत्सव ने न केवल अंधकार को चीरकर उजाले की राह बनाई, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि श्रद्धा और भक्ति जब संगठित होती है तो पूरी सृष्टि आलोकित हो उठती है।
--27 लाख दीपों से सजा जियर स्वामी का शिविर
इस बार का महाकुम्भ न केवल श्रद्धा और भक्ति का केंद्र बना है, बल्कि यह सनातन संस्कृति के दिव्य और भव्य स्वरूप को भी उजागर कर रहा है। महाकुम्भ में आध्यात्मिक आस्था का अनूठा संगम देखने को मिल रहा है। श्रीत्रिदंडी स्वामी महाराज के शिष्य श्रीजियर स्वामी के नेतृत्व में सेक्टर-8 में बने भव्य शिविर में श्रद्धालुओं ने बुधवार को 27 लाख दीप जलाकर मां गंगा की आरती की। यह न केवल एक ऐतिहासिक क्षण था, बल्कि सनातन संस्कृति के गौरवशाली स्वरूप का जीवंत दर्शन भी था। श्रीजियर स्वामी ने 'हिन्दुस्थान समाचार' से खास बातचीत में बताया कि इस दीपोत्सव का उद्देश्य केवल धार्मिक अनुष्ठान तक सीमित नहीं था, बल्कि यह विश्व शांति, कल्याण और सनातन संस्कृति की दिव्यता को प्रदर्शित करने का एक माध्यम भी था।
महाकुम्भ में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार
महाकुम्भ में इस वर्ष संत समाज भी अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा से पूरे क्षेत्र को अभिसिंचित कर रहा है। विभिन्न अखाड़ों और संत महात्माओं के आश्रमों में भी धार्मिक आयोजन और प्रवचन हो रहे हैं। यह महासंगम सनातन परंपरा की शक्ति और भारतीय संस्कृति की अनूठी विरासत का दिग्दर्शन करा रहा है।
दीपों की जगमगाहट में विश्व कल्याण की प्रार्थना
महाकुम्भ में लाखों दीपों की प्रकाश रेखा एक अलौकिक दृश्य प्रस्तुत कर रही थी। श्रद्धालुओं ने दीप जलाकर गंगा मईया से विश्व शांति, सुख-समृद्धि और मानव कल्याण की प्रार्थना की। इस आयोजन ने न केवल आध्यात्मिक चेतना को जागृत किया, बल्कि यह दिखाया कि सनातन संस्कृति कैसे मानवता के कल्याण की राह प्रशस्त करती है। महाकुम्भ का यह दीपोत्सव निश्चित रूप से सनातन आस्था की शक्ति और उसकी अनंत प्रकाशधारा को दर्शाने वाला एक अविस्मरणीय क्षण बन गया। महाकुम्भ का यह दीपोत्सव केवल ज्योतिर्मय अनुष्ठान नहीं, बल्कि विश्व शांति और सनातन संस्कृति की चिरकालिक आभा का महासंयोग था।