नई दिल्ली, 28 जून (हि.स.)। जम्मू में वायु सेना स्टेशन पर ड्रोन हमले का सीमा पार से आतंकी कनेक्शन पुख्ता होता दिख रहा है। इस मामले की शुरू से ही आतंकी एंगल से जांच कर रही सुरक्षा एजेंसियों को भी आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) की भूमिका होने का संदेह है। प्रारम्भिक जांच में पता चला है कि देश में पहली बार 'ड्रोन अटैक' को अंजाम देने के लिए जम्मू हवाई अड्डे से मात्र 14.5 किलोमीटर दूर सीमा पार से दो ड्रोन ने उड़ान भरी और पेलोड गिराकर वापस लौट गए। ड्रोन के 1.2 किलोमीटर की ऊंचाई पर उड़ने का संदेह है जो लंबी दूरी की बैटरी से संचालित किये गए थे।
खुफिया और जांच एजेंसियों की जांच में इस बात का खुलासा हुआ है कि पाकिस्तान की आर्मी और आईएसआई कश्मीर घाटी में ऐसे छोटे ड्रोन को लाने की कोशिश में जुटी हुई है जिनका इस्तेमाल लश्कर और हिज्बुल के आतंकी जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों पर आईईडी हमले के लिए कर सकते हैं। यह भी पता लगा है कि भी हाल ही में आईएसआई और आर्मी ने पीओके के तेजिन में आतंकियों के साथ एक बड़ी बैठक की थी। इस बैठक में लश्कर का जोनल कमांडर सैफुल्लाह साजिद जट्ट, हिज्बुल मुजाहिद्दीन का चीफ सैयद सलाउद्दीन और हिज्बुल का ही जोनल कमांडर अबु अल बकर मौजूद था। इसी बैठक में आतंकियों को छोटे ड्रोन दिए जाने के बारे में तय हुआ था। यह छोटे ड्रोन 4 से 5 किलो आईईडी को 1.5 से 2 किलोमीटर तक ले जा सकते हैं।
'तस्खीर-ए-जबल' यानी 'पहाड़ पर कब्जा'
अंतरराष्ट्रीय सीमा (आईबी) और नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर चल रहे संघर्ष विराम का फायदा उठाते हुए पाकिस्तानी सेना ने पीओजेके के विभिन्न इलाकों में आतंकवादियों के लिए प्रशिक्षण शिविर स्थापित किए हैं। इस पूरी कवायद को पाकिस्तानी सेना ने 'तस्खीर-ए-जबल' यानी 'पहाड़ पर कब्जा' नाम दिया है। ये प्रशिक्षण शिविर एलओसी से सटे इलाकों में स्थापित किए गए हैं, जिन्हें पहले आतंकवादियों की घुसपैठ के लिए 'लॉन्चिंग पैड' के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। खुफिया जानकारी के अनुसार कुछ युवाओं को पाकिस्तानी सैनिकों के साथ-साथ गुरिल्ला युद्ध कौशल सीखने के अलावा हथियार और हथियार प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
'इम्पैक्ट आईईडी' का इस्तेमाल किये जाने की आशंका
जांच एजेंसियों के सूत्रों ने कहा कि 2 किलो से थोड़ा अधिक वजन वाले दो बम रविवार की रात वायु सेना स्टेशन पर लगभग 100-150 मीटर की ऊंचाई से गिराए गए थे। इन धमाकों में 'इम्पैक्ट आईईडी' का इस्तेमाल किये जाने की आशंका है। इम्पैक्ट आईईडी ऐसा विस्फोटक होता है जो जमीन या सतह पर आते ही फट जाता है। हालांकि घटनास्थल पर मिले अवशेषों की अभी फोरेंसिक लैब में जांच की जा रही है, जिसकी रिपोर्ट आने में 48 घंटे तक का वक्त लग सकता है। उसके बाद ही इस बात की पुष्टि हो सकेगी कि धमाकों के लिए आतंकियों ने किस विस्फोटक का इस्तेमाल किया था। ड्रोन अटैक के बाद रविवार को जम्मू पुलिस ने लश्कर-ए-तैयबा के एक गुर्गे को छह किलोग्राम आईईडी के साथ पकड़ा था जिसके बाद कम से कम तीन संदिग्ध आतंकी हिरासत में लिए गए हैं।
पिछले दो साल में बढ़ा ड्रोन का इस्तेमाल
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक 05 अगस्त, 2019 के बाद से पाकिस्तान के साथ देश की पश्चिमी सीमाओं पर, विशेष रूप से पंजाब और जम्मू सेक्टरों में 300 से अधिक ड्रोन और अज्ञात उड़ने वाली वस्तुओं को देखा गया है। उन्होंने कहा कि अग्रिम क्षेत्रों में तैनात कर्मी इन घातक आकाश में तैरती वस्तुओं की जांच के लिए एक उपयुक्त तकनीक खोजने के लिए जूझ रहे हैं। अधिकारियों ने कहा कि सुरक्षा एजेंसियां पाकिस्तान के साथ लगती सीमाओं के साथ उबड़-खाबड़ जंगल इलाकों, रेगिस्तान और दलदल में कुछ स्वदेश निर्मित काउंटर-ड्रोन तकनीकों का भी परीक्षण कर रही हैं, लेकिन आज तक बहुत कम सफलता मिली है। फिलहाल जम्मू-कश्मीर में वायु सेना स्टेशन, मिलिट्री स्टेशन और अन्य सैन्य क्षेत्रों के आसपास एनएसजी कमांडो एंटी-ड्रोन तोपों से लैस हैं।
ड्रोन हमला यानी आतंकी रणनीति में बदलाव
विशेषज्ञों का कहना है कि जम्मू में भारतीय वायुसेना स्टेशन पर ड्रोन हमला आतंकी रणनीति में बदलाव को दर्शाता है और भारत को इस नए खतरे से निपटने के लिए मजबूत जवाबी उपायों की जरूरत है। सूत्रों का यह भी कहना है कि कुछ विशिष्ट एंटी-ड्रोन तकनीकों जैसे स्काई फेंस, ड्रोन गन, एथेना, ड्रोन कैचर और स्काईवॉल 100 को अपनाने के लिए विश्लेषण किया जा रहा है ताकि संदिग्ध और घातक रिमोट-नियंत्रित हवाई प्लेटफार्मों को इंटरसेप्ट और स्थिर किया जा सके। सऊदी अरब के दो प्रमुख तेल प्रतिष्ठानों पर 2019 में ड्रोन हमलों के बाद भारत सरकार ने ड्रोन का मुकाबला करने के लिए दिशा-निर्देश तय करने की प्रक्रिया शुरू की थी।
सैन्य क्षेत्र में बढ़ रहे छोटे ड्रोन पर चिंता
इसके लिए नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) के महानिदेशक की अध्यक्षता में नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए), खुफिया ब्यूरो, डीआरडीओ, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड को मिलाकर एक समिति बनाई गई थी। इस समिति ने सैन्य क्षेत्र में बढ़ रहे छोटे ड्रोन पर चिंता जताते हुए महत्वपूर्ण राष्ट्रीय महत्व के स्थानों के लिए कई उपाय अपनाने के सुझाव दिए थे। सुझावों में ऐसे एंटी ड्रोन मॉडल की तैनाती किये जाने की सिफारिश की गई थी जिसमें राडार, रेडियो फ्रीक्वेंसी (आरएफ) डिटेक्टर, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल और इन्फ्रारेड कैमरे जैसे प्राथमिक और निष्क्रिय पहचान साधन शामिल हों।
हालांकि ड्रोन से निपटने के लिए निर्धारित उपायों के अलावा डीजीसीए के पास पहले से ही नागरिक ड्रोन संचालन के लिए नियम हैं। इनमें ड्रोन के लिए नो-परमिशन, नो-टेकऑफ़ (एनपीएनटी) नियमों को अनिवार्य करना शामिल है, जो ड्रोन को आवश्यक अनुमतियों के बिना उड़ान भरने से रोकता है। समिति ने आरएफ जैमर, जीपीएस स्पूफर, लेजर और ड्रोन कैचिंग नेट जैसे सॉफ्ट किल और हार्ड किल उपाय भी लगाए जाने का सुझाव दिया था।
रिपोर्ट में भारतीय वायु सेना के प्रतिनिधि की अध्यक्षता में एक संचालन समिति की स्थापना का सुझाव दिया गया था जिसमें एनएसजी, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ), राज्य के प्रतिनिधि, पुलिस विभाग, डीजीसीए, एएआई, राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन, आईबी और डीआरडीओ भी शामिल हों।