मुगल सल्तनत को महंगा पड़ा था चुनार किले का लालच, जानें इतिहास...

चुनार किला पर पड़ा था भगवान विष्णु का पहला पैर, पैर के आकार जैसी है चुनार किले की आकृति

मुगल सल्तनत को महंगा पड़ा था चुनार किले का लालच, जानें इतिहास...

\मीरजापुर, 04 जुलाई (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के मीरजापुर ज़िला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर कैमूर की पहाड़ी पर दूर से ही नजर आ जाता है चुनार का किला। गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर बसा किले के भीतर दाखिल होने पर इसका रख-रखाव कुछ ठीक लगता है, लेकिन सीढ़ियों से ऊपर पहुंचते ही दिखने लगते हैं खंडहर। हालांकि इन खंडहरों में भी इसकी बुलंदी महसूस की जा सकती है।

श्रीमती भागीरथी ट्रस्ट आदर्श संस्कृत महाविद्यालय चुनार के सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य डा. ब्रह्मानंद शुक्ल ने बताया कि यहां के लोगों की बातें सुनें तो लगता है शायद यही किला दिल्ली का प्रवेश द्वार रहा होगा। गाइड तो रहस्य और रोमांच के तमाम किस्सों के बीच यह बताने से कभी नहीं चूकते हैं कि आजादी के बाद तत्कालीन राजा बनारस ने इस किले को हिन्दुस्थान की सरकार से मांगा था। बदले में उन्होंने भारत का कर्ज़ चुकाने का वादा किया था, लेकिन न तो सरकार मानी और न ही कभी यह किला बनारस के बिल्कुल करीब होकर भी उनका हो सका। कम से कम ऐतिहासिक दस्तावेजों के हिसाब से तो बिल्कुल नहीं, वरना यहां के लोग तो यह भी बताते हैं कि यह किला बनारस के राजा सहदेव ने ही बनवाया था।


उन्होंने बताया कि चुनार का किला राजा की पदवी त्याग कर संन्यासी हो गए भर्तृहरि की तपोस्थली रही है। हिंदी साहित्य के उपन्यासकार देवकीनंदन खत्री की कल्पना से उपजे उपन्यास ‘चंद्रकांता संतति’ का केंद्र रहा है। शायद देवकीनंदन की कल्पनाओं ने ही ऐसी कहानियां लोगों की जुबान पर चढ़ा दी कि बूढ़े हो चुके इस किले में रहस्य और रोमांच के तमाम किस्से अब भी जवान हैं। मसलन, इस किले का ताल्लुक महाभारत काल से जोड़ा जाता है। कुछ कहानियां तो यह भी बताती हैं कि इस किले को पहले चरणाद्रि कहा जाता था, क्योंकि इसकी बनावट पैर के आकार की है। बुंदेलखंड की लोककथा के नायक आल्हा का विवाह इसी किले में बताया जाता है।

विक्रमादित्य ने भर्तृहरि के लिए बनवाया था चुनार किला



उन्होंने बताया कि चुनार के किले में प्रवेश करते हुए ही एक शिलालेख है, जिसे 28 अप्रैल 1924 को मीरजापुर के तत्कालीन कलेक्टर और मैजिस्ट्रेट डब्ल्यूबी कॉटन ने लगवाया था। इसमें उन राजाओं का जिक्र है, जिनके अधीन यह किला रहा। शिलापट्ट की शुरुआत होती है, उज्जैन के राजा विक्रमादित्य से। 56 ईसा पूर्व में चुनार पर उनका अधिकार था। ऐतिहासिक तौर पर माना जाता है कि विक्रमादित्य ने अपने भाई राजा भर्तृहरि, जो कि बाद में संन्यासी हो गए थे, उनके लिए ही यह किला बनवाया था।



राजा भर्तृहरि की तपोस्थली थी चुनार किला



गुरु गोरखनाथ से ज्ञान प्राप्त करके संन्यासी हुए भर्तृहरि ने अपनी तपोस्थली के रूप में इसी स्थान को चुना था। कहते हैं कि जंगली इलाके में तमाम जानवरों का खतरा था। ऐसे में भाई के जीवन की रक्षा के लिए विक्रमादित्य ने यह किला बनवाया, ताकि उसमें सुरक्षित तौर पर भर्तृहरि साधना कर सकें। यहां ही उनकी समाधि भी है। विक्रमादित्य के बाद पृथ्वीराज चौहान, मोहम्मद गोरी, स्वामीराज, मोहम्मद शाह शर्की, सिकंदर लोदी, बाबर, शेरशाह सुरी, हुमायूं और फिर तमाम राजाओं का इस पर कब्जा रहा।



‘कहा जाता था, जिसने चुनार पर कब्जा किया उसने भारत के भाग्य पर कब्जा किया’



चुनार किले में सोनवा मंडप को एक तरह से कैदखाने की तरह शासकों ने इस्तेमाल किया। कहा जाता है कि अंग्रेजों के समय में यह फांसी देने की जगह हो गई थी। इस किले में एक बंदी गृह भी है, जिसे बाद में राजाओं ने बनवाया होगा। संजीव सान्याल ने अपनी किताब ‘लैंड ऑफ सेवन रिवर्स हिस्ट्री ऑफ इंडियाज जियोग्राफी’ में लिखा है, ‘एक वक्त पर कहा जाता था कि जिसने चुनार पर कब्जा किया उसने भारत के भाग्य पर कब्जा किया।’



चुनार किले का रहस्य


जिन शासकों का चुनार किले पर कब्जा रहा, उन्होंने इसके निर्माण पर अपनी निशानियां भी छोड़ी हैं। किले में भर्तृहरि की समाधि या उनके नाम पर मंदिर के अलावा सोनवा मंडप, सूर्य धूप घड़ी, 52 खंभों की छतरी, जहांगीरी निवास, बाबर और औरंगज़ेब का हुक्मनामा, शेरशाह सूरी का शिलालेख, आलमगीरी मस्जिद और जहांगीरी कमरे के अलावा एक बावली भी खासी चर्चित है।

तमाम तहखानों, रहस्यमयी दरवाजों, विशेष लिखावटनुमा नक्काशी जैसी चीजों ने इस किले को रहस्य का वह केंद्र बना दिया, जिसके बारे में ना जाने कितने किस्से मौजूद हैं। क्या सत्य हैं, इसके बारे में दावा इसलिए करना मुश्किल है, क्योंकि इसे आजादी के बाद उतने पुख्ता तौर पर कभी संरक्षित नहीं किया गया, जैसे किया जाना चाहिए था। एक वक्त में नक्सलियों की हिटलिस्ट में शामिल रहे इस किले में ही पीएससी का ट्रेनिंग सेंटर बनाया गया। कुछ कमरों को गेस्ट हाउस के तौर पर तब्दील किया गया। इन सब वजहों से इस किले की उतनी अच्छी देखरेख नहीं हो सकी।



भगवान विष्णु के चरण स्वरूप है चुनार किला

चुनार किला को चरणाद्रि कहे जाने के पीछे लोककथा है। कहा जाता है कि राजा बाली के सामने जब वामन अवतार में भगवान विष्णु अवतरित हुए और उन्होंने तीन पग जमीन मांगी तो उनका पहला पैर चुनार के स्थान पर ही पड़ा, जिसकी वजह से वह भाग चरण के स्वरूप में हो गया और तब से ही इसे चरणाद्रि कहा जाता है।