हमारी उपभोक्तावादी संस्कृति ही जल संकट का कारण : प्रो. बलदेव

हमारी उपभोक्तावादी संस्कृति ही जल संकट का कारण : प्रो. बलदेव

हमारी उपभोक्तावादी संस्कृति ही जल संकट का कारण : प्रो. बलदेव

प्रयागराज, 11 जुलाई । इलाहाबाद विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा “जल आंदोलन : जन आंदोलन“ विषय पर आयोजित वेबीनार में कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ के कुलपति प्रो. बलदेव भाई शर्मा ने कहा कि जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं हो सकती। हमारी उपभोक्तावादी संस्कृति ही इस संकट का कारण है। वह शिक्षा जो व्यक्ति को शीलवान और प्रज्ञावान बनाती है अगर वह हमें केवल उपभोक्तावादी बना रही है तो यह चिंता की बात है।

रविवार को आयोजित वेबीनार में प्रो शर्मा ने कहा कि बीते कुछ दशकों में यूरोपीय चिंतन के भोगवाद ने आज प्रदूषण सहित जल समस्या के मुहाने पर लाकर हम सब को खड़ा कर दिया है। हम प्रकृति को देवता मानने वाले लोग हैं, धरती हमारी माता है, जल हमारा जनक है।

उन्होंने कहा जब हम अपने गटर गंगा में खोल देंगे तो स्वाभाविक रूप से वह जल आचमन लायक नहीं रहेगा। ऐसे में यह विलाप कि यह जल आचमन लायक भी नहीं है, समस्या पर पर्दा डालने जैसा है। हमें यह सोचना होगा कि “माता भूमिः पुत्रोंअहं पृथिव्याम“ और इसी के आलोक में जल के प्रति हमें संवेदनशील बनना होगा। आज ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र के जलस्तर का बढ़ना, कहीं स्टीफन हॉकिंस कि वह भविष्यवाणी सच न कर दे। जिसमें उन्होंने तमाम वृक्षों, वनस्पतियों और डायनासोर सहित यही विकास की गति रहने पर मनुष्य को भी नष्ट होने के मुहाने पर खड़े होने का खतरा बताया था।

प्रो शर्मा ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों के दोहन का अगर यही हाल रहा तो हमें शुद्ध जल के लिए कठिनाई में पड़ने से कोई नहीं रोक सकता। कहा कि हमारी उपभोक्ता संस्कृति वहीं तक ठीक है जहां तक वह दूसरे की स्वतंत्रता में खलल न डाले। उन्होंने कहा कि आज कामायनी का यही संदेश संकट हरण का काम कर सकता है जिसमें प्रसाद कहते हैं “औरों को हंसते देखो मनु हसो और सुख पाओ। अपने सुख को विस्तृत कर सबको सुखी बनाओ“।



जल संसाधन के बगैर हम प्रगति की कल्पना नहीं कर सकते : कुलपति



मगध विश्वविद्यालय बिहार के कुलपति एवं प्रोफेसर राजेंद्र सिंह (रज्जू भैया) विश्वविद्यालय उप्र के पूर्व कुलपति प्रो. राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि जैव विविधता पृथ्वी का स्वभाव है। जल का जीवन से अनिवार्य सम्बंध है। दुनिया जल के संघर्ष की तरफ न बढ़ जाए इसके लिए अभी से सजग होने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि सब प्रकार के विकास में जल संसाधन सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। जल संसाधन के बगैर हम प्रगति की कल्पना नहीं कर सकते। उन्होंने कहा ग्रामीण और शहरी अंचलों में पेयजल का संकट, मृदा प्रदूषण, एसिड रेन, बढ़ती गर्मी से बढ़ता जल वाष्पन, पिघलते ग्लेशियर, विलुप्त होते जल स्रोत और आने वाले समय में और बड़ी होती यह विकराल समस्या हम सब के लिए चिंता का विषय है। हम सबको आने वाली पीढ़ियों के हितों की चिंता करते हुए इसे जन आंदोलन बनाना होगा।



भारत की पुरानी पोखर और तालाब व्यवस्था एक कारगर हथियार : राजेश गर्ग



कार्यक्रम के आयोजक इविवि, राष्ट्रीय सेवा योजना के समन्वयक डॉ राजेश कुमार गर्ग ने जल आंदोलन को जन आंदोलन में बदलने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इतनी बड़ी आबादी, उसके भोजन का प्रबंध और उसके लिए पेयजल का प्रबंध हम सब का सामूहिक दायित्व है। अगर हम वर्षा जल का संरक्षण नहीं कर पाएंगे तो न केवल हम भूमिगत जल को अवरुद्ध कर रहे होंगे बल्कि पेयजल के संकट की तरफ भी बढ़ रहे होंगे। भारत की पुरानी पोखर और तालाब व्यवस्था एक कारगर हथियार है। बिना इसके जल संकट का समाधान होना सम्भव नहीं है।

कार्यक्रम का संचालन चौधरी महादेव प्रसाद महाविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ. अरुण कुमार वर्मा तथा धन्यवाद ज्ञापन सदनलाल सांवलदास खन्ना महिला महाविद्यालय के सहायक आचार्य डॉ. शिव शंकर श्रीवास्तव ने किया।