संगम तीरे नाई समाज के हाथों से सजी महाकुम्भ की दिव्यता और संस्कृति 

संगम तीरे नाई समाज के हाथों से सजी महाकुम्भ की दिव्यता और संस्कृति 

संगम तीरे नाई समाज के हाथों से सजी महाकुम्भ की दिव्यता और संस्कृति 

- प्राचीन परम्परा एवं आधुनिकता के संगम महाकुम्भ के रंग में बसी भारतीय संस्कृति - केश त्याग से लेकर नागा संन्यासियों तक, सेवा से संस्कृति तक का अद्भुत सफर

महाकुम्भ नगर, 31 जनवरी (हि.स.)। महाकुम्भ के पावन अवसर पर जहां देश-विदेश से करोड़ों श्रद्धालु संगम तट पर मोक्ष की तलाश में पहुंच रहे हैं वहीं नाई समाज अपनी निष्ठा और परम्परागत सेवाओं के साथ इस भव्य आयोजन का अभिन्न हिस्सा बना हुआ है। संगम घाट पर केश त्याग संस्कार से लेकर साधु-संतों की सेवा तक नाई समाज की उपस्थिति महाकुम्भ की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धारा को और भी प्रखर बना रही है। महाकुम्भ में नाई समाज न केवल अपने पारम्परिक कर्तव्यों का पालन कर रहा है, बल्कि आधुनिकता की ओर भी कदम बढ़ा रहा है। यह समाज अपने अतीत की जड़ों को मजबूती से थामे हुए एक उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर है।

'हिन्दुस्थान समाचार' से खास बातचीत में संगम तट पर बैठे नाई रामभुवन शर्मा कहते हैं कि महाकुम्भ आता रहेगा, परम्पराएं चलती रहेंगी और नाई समाज अपने सेवाभाव से इस पवित्र आयोजन को सदा गौरवशाली बनाए रखेगा। समर्पण और सेवा का भाव नाई समाज की सबसे बड़ी विरासत है। महाकुम्भ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परम्परा का जीवंत उदाहरण है। महाकुम्भ में नाई समाज की भूमिका केवल सेवा प्रदाता की नहीं, बल्कि एक संस्कृति वाहक की भी है। सेक्टर-4 में फैले महाकुम्भ में उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न राज्यों से 50,000 नाई संगम घाट पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

नाई समाज का इतिहास जितना समृद्ध है, उतना ही प्राचीन भी। ऋग्वेद और पुराणों में नाई समाज का उल्लेख मिलता है। कभी यह समाज राजाओं के दरबारों में केश सज्जा और मालिश विशेषज्ञ के रूप में प्रतिष्ठित था तो कभी युद्ध के मैदान में योद्धाओं को तैयार करने का कार्य करता था। वैदिक काल में आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी नाई समाज की भूमिका महत्वपूर्ण थी। महाकुम्भ के दौरान केश त्याग की परम्परा भी इसी समाज की बदौलत जीवंत बनी हुई है।

नाई चंद्रनाथ शर्मा बताते हैं कि हमारे पूर्वजों ने सदियों तक संतों और श्रद्धालुओं की सेवा की है। जब कोई व्यक्ति गंगा में स्नान कर अपने पुराने पापों को धोता है तो वह अपने पुराने केश भी त्याग देता है। यह आत्मशुद्धि का प्रतीक है और हमें इस सेवा का अवसर मिलना किसी पुण्य से कम नहीं है। महाकुम्भ में केश त्याग अनुष्ठान को अत्यंत पवित्र माना जाता है। पिछले 30 वर्षों से महाकुम्भ में सेवा दे रहे राजेश कुमार शर्मा ने बताया कि हमारे लिए यह सिर्फ काम नहीं, बल्कि पुण्य का कार्य है। जब श्रद्धालु अपने केश का त्याग करते हैं तो वे हमें आशीर्वाद भी देते हैं। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है और हमें गर्व है कि हम इस संस्कृति का हिस्सा हैं।

साधु-संतों और नागा संन्यासियों की सेवामहाकुम्भ में नागा संन्यासियों का आकर्षण सबसे अलग होता है, लेकिन इन संन्यासियों की साधना और धार्मिक अनुष्ठान नाई समाज की सेवाओं के बिना अधूरे रहते हैं। नागा संन्यासियों के विशिष्ट केश और दाढ़ी सज्जा, गज कट (मस्तक के आगे बाल कटवाने की विधि) और संन्यास लेने से पहले केश त्याग जैसे अनुष्ठानों में नाई समाज का योगदान अनिवार्य होता है। प्रयागराज के 55 वर्षीय नाई हरिशंकर ठाकुर बताते हैं कि हम नागा संन्यासियों की सेवा बचपन से करते आ रहे हैं। वे हम पर पूरा भरोसा करते हैं। जब कोई व्यक्ति संन्यास लेता है तो हम ही उनके सिर का मुंडन करते हैं। यह केवल बाल काटना नहीं, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत का हिस्सा बनना है।

बदलते युग में नाई समाज की नई राह जहां एक ओर नाई समाज अपनी परम्पराओं से जुड़ा हुआ है, वहीं आधुनिक समय में नई तकनीकों और बदलते दौर के साथ यह समाज भी खुद को विकसित कर रहा है। सुमित शर्मा बताते हैं कि कई साथी अब डिजिटली पेमेंट भी स्वीकार कर रहे हैं। हालांकि महाकुम्भ में सेवा देना नाई समाज के लिए गौरव की बात है, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। महाकुम्भ जैसे भव्य आयोजनों में नाई समाज की भूमिका केवल पारम्परिक सेवाओं तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। समाज के युवा अब ब्यूटी सैलून, हेयर स्टाइलिंग और स्पा जैसी आधुनिक सेवाओं में भी कदम बढ़ा रहे हैं। युवा नाई सुमित कहते हैं कि हमारी पहचान सिर्फ पारम्परिक नाई तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। हमें नई तकनीकों को अपनाकर अपने काम को ऊंचाइयों तक ले जाना होगा। महाकुम्भ के माध्यम से हमें पहचान मिलती है, लेकिन इसके बाद भी हमें नई सम्भावनाओं को तलाशना होगा।

संस्कृति और भविष्य का संगममहाकुम्भ में नाई समाज की सेवाएं केवल एक पेशा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परम्परा का प्रतीक हैं। समय के साथ यह समाज अपनी जड़ों से जुड़े रहते हुए भी आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है। सरकार और प्रशासन द्वारा उचित सहयोग, नई योजनाएं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों से यह समाज न केवल अपनी परम्परा को बनाए रखेगा, बल्कि अपने भविष्य को भी मजबूत करेगा।-----------