प्राकृतिक कृषि से बरकरार रहती है मिट्टी की उर्वरता : प्रधानमंत्री

प्राकृतिक कृषि से बरकरार रहती है मिट्टी की उर्वरता : प्रधानमंत्री

प्राकृतिक कृषि से बरकरार रहती है मिट्टी की उर्वरता : प्रधानमंत्री

गुजरात के आनंद से देश भर के किसानों को ‘प्राकृतिक कृषि पर राष्ट्रीय सम्मेलन’ में संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि आज का दिन महत्वपूर्ण दिन है। आज करीब आठ करोड़ किसान तकनीक के माध्यम से देश के कोने कोने से इस कार्यक्रम में जुड़े हैं। भले ही यह कन्क्लेव गुजरात में हो रहा है परन्तु इसका प्रभाव पूरे भारत में पड़ेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि प्राकृतिक कृषि से मिट्टी की उर्वरता बरकरार रहती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि किसानों की आय दोगुनी करने के लिए अनेक कदम उठाये गये हैं। परन्तु अगर मिट्टी ही जवाब दे जाएगी तो क्या होगा, जब मौसम साथ नहीं देगा, भूगर्भ जल पर्याप्त मात्रा में नहीं रहेगा तो कृषि ही नहीं संभव हो पायेगी। कृषि में प्रयुक्त हो रहे विभिन्न केमिकलों से प्रकृति पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। केमिकल एवं फर्टीलाइजर ने हरित क्रांति में काफी योगदान दिया परन्तु हमें इसके विकल्प पर ध्यान देना होगा। यह रासायन आदि विदेशों से एक्सपोर्ट होते हैं और महंगे भी पड़ते हैं तथा सेहत पर भी इससे विपरीत प्रभाव पड़ता है इसलिये इनसे परहेज बेहतर है। समस्या के विकराल होने से पहले ही बचाव के लिये कदम उठाना बेहतर है। हमें खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला में जोड़ना होगा। यह प्रकृति की प्रयोगशाला पूरी तरह विज्ञान पर आधारित ही है।



प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारी सभ्यता किसानी के साथ फली-फूली है, आज जब दुनिया जैविक खाद्य उत्पादों की बात करती है तथा बैक टू बेसिक की बात करती है तो जड़ें भारत से जुड़ी दिखाई देती हैं। हमारे देश में प्राचीन श्लोकों में एवं कविताओं में भी प्राकृतिक खेती से जुड़ी तमाम जानकारियां हैं। उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में हजारों किसान प्राकृतिक खेती को अपना चुके हैं। केन्द्र सरकार द्वारा शुरू की गई परंपरागत कृषि विकास योजना से भी किसानों लाभ मिल रहा है, इसमें किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है और प्राकृतिक खेती की तरफ बढ़ने के लिये मदद भी की जा रही है। जो किसान प्राकृतिक खेती से जुड़ चुके हैं उनके अनुभव उत्साहवर्धक हैं। प्रधानमंत्री जी ने किसानों से अवाह्न किया कि वे प्राकृतिक खेती को जन आन्दोलन बनाने के लिये आगे आयें। इस आजादी के अमृत महोत्सव में हर पंचायत का कम से कम एक गाँव जरूर प्राकृतिक खेती से जुड़े यह प्रयास हम सबको करना है। किसान खेत के कुछ हिस्से में प्राकृतिक खेती करके इससे जुड़ें और धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ायें



राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने बताया कि गुरुकुल कुरूक्षेत्र हरियाणा में 35 वर्ष प्रधानाचार्य रहते हुए उनके द्वारा प्राकृतिक खेती का आवश्यकता को समझा एवं गुरुकुल के फार्म में रासायनिक खेती के नुकसान देखते हुए रासायनिक खेती छोड़ उनके द्वारा प्राकृतिक खेती प्रारंभ की गई। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में राज्यपाल रहते हुए उनके द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये दो वर्ष कार्य किया गया। 50 हजार किसानों ने इस खेती को अपनाया और वर्तमान में 1 लाख 35 हजार किसान प्राकृतिक खेती को अपना चुके हैं। हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती अपनाने से किसानों की आय 27 प्रतिशत तक बढ़ी एवं लागत में 56 प्रतिशत की कमी आई। पूरे कार्यक्रम को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद अटारी जोन 3 में सजीव दिखाया गया। निदेशक डॉ अतर सिंह ने कानपुर जोन के सभी अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ किसानों को भी जोड़ा गया था।