झूठी शिकायत पर अध्यापकों का वेतन रोकने का आदेश रद्द 

झूठी शिकायत पर अध्यापकों का वेतन रोकने का आदेश रद्द 

झूठी शिकायत पर अध्यापकों का वेतन रोकने का आदेश रद्द 

-शिकायतकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने का निर्देश -कारण बताओ नोटिस दें, क्यों न लगे एक लाख रुपये जुर्माना

प्रयागराज, 06 फरवरी (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने झूठी शिकायत पर तीन शिक्षकों के वेतन रोकने के आदेश को रद्द कर दिया और माध्यमिक शिक्षा सचिव को शिकायतकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। साथ ही कहा है कि नोटिस जारी कर शिकायतकर्ता से जवाब मांगा जाए कि क्यों न उन पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाए।

कोर्ट ने कहा कि झूठी शिकायत पर दो दशकों से शांतिपूर्वक अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे शिक्षकों को परेशान होना पड़ा। न्याय पाने के लिए हाईकोर्ट का चक्कर लगाना पड़ा। यह गम्भीर मामला है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने श्रीमती दुर्गेश शर्मा और 2 अन्य की याचिका पर दिया।

एंग्लो बंगाली बालिका इंटर कॉलेज रकाबगंज, आगरा में सरोज अग्रवाल, दुर्गेश मिश्रा और इंदू बाला कोहली की शिक्षक के रूप में 1998 में नियुक्ति हुई। लगभग दो दशक की नौकरी करने के बाद ग्राम सूरोठी अछनेरा निवासी भूपेंद्र सिंह की शिकायत पर डीआईओएस ने 31 दिसम्बर 2024 के एक आदेश से याचियों का वेतन रोक दिया। इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।

याचीगण का कहना था कि उनकी नियुक्ति वैध है। उन्हें पदोन्नत भी किया गया था। दो दशकों के बाद भूपेंद्र सिंह ने याचिकाकर्ताओं में से एक की नियुक्ति के सम्बंध में शिकायत की, जिस पर संज्ञान लिया गया था। हालांकि 21 नवम्बर 2023 के आदेश से शिकायत खारिज कर दी गई थी। शिकायत खारिज होने के बावजूद, उसी शिकायत के आधार पर सभी याचिकाकर्ताओं के खिलाफ सम्बंधित डीआईओएस को सम्बोधित 15 अप्रैल 2023 को एक संचार द्वारा संयुक्त निदेशक शिक्षा स्तर पर एक जांच स्थापित की गई थी। याचिका कर्ताओं ने अपने-अपने जवाब प्रस्तुत किए। अंततः डीआईओएस ने 31 दिसम्बर 2024 के एक आदेश से याचिकाकर्ताओं का वेतन रोक दिया।

कोर्ट ने कहा कि पारित पूर्व आदेश की गलत व्याख्या की गई है। याचियों की नियुक्ति उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर की गई है। कोर्ट ने डीआईओएस के आदेश को रद्द कर दिया। साथ ही कहा कि ऐसा लगता है कि शिकायतकर्ता की शिक्षा विभाग के अधिकारियों से अच्छी सांठ-गांठ है। क्योंकि पहले की शिकायत को खारिज कर दिया गया था। बाद में दो दशकों के बाद जांच शुरू की गई और विवादित आदेश पारित किया गया। कोर्ट ने शिकायतकर्ता पर आपराधिक कार्रवाई करने का निर्देश दिया।