राष्ट्र, धर्म एवं संस्कृति का संगम है महाकुम्भ : कांची शंकराचार्य
राष्ट्र, धर्म एवं संस्कृति का संगम है महाकुम्भ : कांची शंकराचार्य
महाकुम्भ नगर, 24 जनवरी (हि.स.)। सनातन धर्म के महानतम कुम्भ परम्परा के वैशिष्ट्य का वर्णन करते हुए कांची शंकराचार्य श्रीशंकर विजयेन्द्र सरस्वतीजी ने कहा है कि, कुम्भ पर्व राष्ट्र, धर्म एवं संस्कृति की त्रिवेणी का वह संगम है जिसमें देव, ऋषि, पितरों की उपासना, साधना, अराधना द्वारा राष्ट्र, धर्म, संस्कृति की उन्नति, वृद्धि एवं विकास के लिए धर्मनिष्ठ, आस्तिक, वैदिक धर्मी एकत्रित होकर विचार मन्थन करते हैं।
स्वामीजी ने कहा कि, सनातन संस्कृति आज जो अजेय है उसका एक प्रमुख कारण हमारी कुम्भ परम्परा है। क्योंकि इस कुम्भ पर्व के माध्यम से साधु-महात्मा, ऋषियों के दिव्य संदेशों को सम्पूर्ण राष्ट्र में प्रसारित करते रहे हैं। जिससे राष्ट्र, धर्म एवं संस्कृति सदा जीवन्त जागृत रहे हैं। उन्होंने कहा कि, सनातन संस्कृति ऋषि संस्कृति है, जो ऋषियों द्वारा पालित, पोषित है। ऋषियों का जो दिव्य समागम सतत् चलता रहा है। उसी समागम का पर्व हमारा कुम्भ पर्व है। जिसमें सम्मिलित होकर प्रत्येक आस्तिक सनातन धर्मी अपने भीतर राष्ट्र एवं धर्म का गौरव बोध कर अपने जीवन को धन्य बनायें।
प्रयागराज महाकुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर 20 में स्थित कांची कामकोटि पीठम के शिविर में भागवत कथा का आयोजन आरम्भ किया गया। कलकत्ता के संत त्रिभुवन पुरी श्रीमद्भागवत कथा का वाचन कर रहे हैं। भारत राष्ट्र के अभ्युदय तथा सनातन धर्म-संस्कृति की रक्षा के निमित्त शतचण्डी पाठ महाराष्ट्र से आये हुए वैदिक विद्वानों द्वारा सम्पन्न किया जा रहा है।