देवों का सान्निध्य पाने के लिए बनें पवित्र हिन्दू : स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
देवों का सान्निध्य पाने के लिए बनें पवित्र हिन्दू : स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
प्रयागराज महाकुंभ में बोले शंकराचार्य, हमारी संस्कृति में गाय सबसे पवित्रतम
महाकुंभ नगर,23 जनवरी (हि.स.)। ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा कि देवता कोप से बचने के लिए प्रत्येक सनातनी को पवित्र रहना चाहिए। सनातनी अपनी पवित्रता नहीं खोना चाहते। देव संस्कृति के लोग पवित्रता को अपना रक्षा कवच मानते हैं। पवित्रता से ही हम देवताओं का सान्निध्य पा सकते हैं और हमारी संस्कृति में गाय सबसे पवित्रतम् है। शंकराचार्य प्रयागराज महाकुंभ में आयोजित परमधर्म संसद को सम्बोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि पवित्र शब्द पवि और त्र से मिलकर बना है। पवि का अर्थ है वज्र और त्र का अर्थ है रक्षा। वज्र का प्रहार निष्फल होता है। उन्होंने कहा कि किसी भी वस्तु के तीन स्तर होते हैं, जिन्हें आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक कहकर सम्बोधित किया जाता है। इन्हीं तीन स्तरों पर वस्तु शुद्ध अथवा अशुद्ध भी होती है। मल, दोष और पाप इसके कारण बनते हैं। जो वस्तु निर्मल-निर्दोष और निष्पाप भी हो वही पवित्र शब्द से सम्बोधित की जाती है। देवता इसी पवित्र वस्तु का उपभोग करते हैं। इसीलिए देव संस्कृति को अपना मानने वाले हम सनातनी भी स्वयं को दैहिक, वाचिक और वैचारिक आदि हर एक स्तरों पर स्वयं को पवित्र बनाये रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि दैवी कृपा प्राप्त करने की इच्छा रखने वाले हर हिन्दू परम धार्मिक को अपना ख़ान-पान, स्नान-ध्यान, बात-व्यवहार पवित्र रखने की सतर्क चेष्टा बनाये रखनी चाहिए। अपवित्रता हमें दैवी सान्निध्य से दूर करती है। इसलिए इससे बचने का सर्वथा प्रयास करना चाहिये। शंकराचार्य शिविर में आयोजित परमधर्म संसद में विषय विशेषज्ञ के रूप में रितु त्रिपाठी ने व्याख्यान प्रस्तुत किए। चर्चा में अरविंद भारद्वाज , संजय मिश्र , सुभाष मल्होत्रा , सुनील कुमार शुक्ल , अनुसुईया प्रसाद उनियाल , संजय जैन , साध्वी सोनी ने भी विचार रखा। संचालन देवेन्द्र पांडेय ने किया।
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