गंगा, यमुना, सरस्वती का मिलन ही त्रिवेणी संगम : नरेन्द्रानंद सरस्वती
गंगा, यमुना, सरस्वती का मिलन ही त्रिवेणी संगम : नरेन्द्रानंद सरस्वती
प्रयागराज, 14 जनवरी । त्रिवेणी संगम गंगा, यमुना, सरस्वती के मिलन को कहा जाता है। इस संगम स्थल को ओंकार के नाम से भी अभिहित किया गया है। यह शब्द परमेश्वर की ओर रहस्यात्मक संकेत करता है और यही त्रिवेणी का भी सूचक है। भगवान ब्रह्मा ने यहां प्राकृष्ट यज्ञ किया था, जिस कारण इस पवित्र स्थान को प्रयाग से सम्बोधित किया गया।
यह बातें श्रीकाशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने शनिवार को संगम में स्नान कर राष्ट्र की समृद्धि की कामना से माँ गंगा का पूजन-अर्चन किया। इसके उपरांत वहां पहुचें मीडिया से उन्होंने कहा कि पुलिस के व्यवधान के बाद भी स्नान हो गया।
उन्होंने बताया कि नृसिंह पुराण में विष्णु भगवान को प्रयाग में योगमूर्ति के रूप में स्थित बताया गया है। इसके साथ ही मत्स्य पुराण के अनुसार शिव के रुद्र रूप द्वारा एक कल्प के उपरान्त प्रलय होने पर भी प्रयाग स्थल नष्ट नहीं होता। उस समय उत्तरी भाग में ब्रह्मा छद्म वेश में, विष्णु वेणी माधव रूप में व भगवान शिव वट वृक्ष के रूप में निवास करते हैं एवं देव, सिद्धऋषि, मुनि, पापशक्तियों से प्रयाग की रक्षा करते हैं। इसीलिए मत्स्य पुराण में तीर्थयात्री को प्रयाग में एक मास निवास करने तथा देवताओं और पितरों की पूजा करने का विधान भी है। इस अवसर पर शंकराचार्य के साथ स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती, शशांक धर द्विवेदी, विनोद कुमार त्रिपाठी तथा वेद विद्यालय के बटुकों ने भी त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाई।