(होली विशेष) हिरण्यकश्यप की नगरी हरदोई से हुई थी होली की शुरुआत
भक्त प्रह्लाद का घाट, कुंड और हिरण्यकश्यप के महल के खंडहर आज भी हैं मौजूद
हरदोई, 17 मार्च । रंगों का त्योहार होली देश-विदेश में पूरे उत्साह से मनाई जाती है, लेकिन इस पर्व की शुरुआत कहां से हुई इसके बारे में लोग कम ही जानते हैं। होली की शुरुआत उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले से हुई। वर्तमान में हरदोई के नाम से जाना जाने वाला जिला, हिरण्यकश्यप के राज्य की राजधानी था। यहीं पर भगवान नरसिंह ने अवतार लेकर भक्त प्रह्लाद की रक्षा की थी। आज भी हिरण्यकश्यप के महल के खंडहर, भक्त प्रह्लाद का घाट, प्रह्लाद कुंड और उनसे जुड़ी अनेक चीजें यहां पर मौजूद हैं।
हरदोई जिले का नाम पहले हरिद्रोही था। हरिद्रोही नाम इसलिए था क्योंकि यह इलाका हिरण्यकश्यप के राज्य की राजधानी के अंतर्गत था। हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से भक्त प्रह्लाद को भस्म करने का आदेश दिया था। भगवान की कृपा से आग की लपटों में होलिका जल गई थी, लेकिन भक्त पह्लाद का बाल भी बांका न हुआ था। भक्त प्रह्लाद का जीवन बचने पर नगरवासियों ने खुशी से एक दूसरे पर रंग गुलाल उड़ाकर त्योहार मनाया था। तभी से होली की शुरुआत हुई।
हरदोई गजेटियर एवं धार्मिक ग्रंथों के अनुसार हिरण्यकश्यप की राजधानी हरदोई थी। राम का विरोधी होने के कारण हिरण्यकश्यप ने र अक्षर के उच्चारण पर भी रोक लगा दी थी। यही वजह है कि हरदोई में काफी दिनों तक लोग र अक्षर से परहेज करते रहे। आज भी अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में र अक्षर से परहेज के कारण लोग हरदोई का उच्चारण हद्दोई करते हैं। हिरण्यकश्यप की नगरी हरदोई पूर्व में हरिद्रोही के नाम से जानी जाती थी। कुछ समय बीतने के बाद हरिद्रोही को हरदोई के रूप में जाना गया।
हिरण्यकश्यप के महल के खंडर के पास भक्तों ने नरसिंह भगवान की मूर्ति स्थापित की है। यहीं पर भक्त पह्लाद का कुंड है। जहां पर प्रह्लाद स्नान कर पूजा ध्यान करते थे। पौराणिक ग्रंथों और हरदोई गजेटियर में भक्त प्रह्लाद की इस नगरी का उल्लेख भी है। आज भी हरदोई में होली पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।