डिजिटल प्रक्रिया अदालतों और वादकारियों के बीच की खाईं को पाटती है : हाईकोर्ट

डिजिटल प्रक्रिया अदालतों और वादकारियों के बीच की खाईं को पाटती है : हाईकोर्ट

डिजिटल प्रक्रिया अदालतों और वादकारियों के बीच की खाईं को पाटती है : हाईकोर्ट

प्रयागराज, 05 अगस्त । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका में डिजिटल प्रक्रिया की भागीदारी का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य अदालतों और वादकारियों के बीच की खाईं को पाटना है। एक डिजिटल न्यायपालिका न्याय वितरण प्रणाली की क्षमता को बढ़ाएगी और वादकारियों के लिए न्याय और आसान बनाएगी। यह टिप्पणी न्यायमूर्ति विक्रम डी चौहान ने सुनीता देवी की केस स्थानांतरण अर्जी को खारिज करते हुए कही।

मामले में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत प्रधान न्यायाधीश परिवार न्यायालय भदोही ज्ञानपुर के समक्ष दाखिल केस को जिला प्रयागराज में सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय में स्थानांतरण के लिए एक स्थानांतरण अर्जी दाखिल की गई थी। प्रश्न था कि स्थानांतरित करने की अर्जी को स्वीकार किया जा सकता है या नहीं।


हाईकोर्ट ने कहा कि डिजिटलाइजेशन और प्रौद्योगिकी नागरिकों को सुविधाएं मुहैया कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। महामारी के दौरान भी अदालतों ने नागरिकों को उस स्थान पर भौतिक रूप से उपस्थित हुए बिना न्याय दिया है, जहां अदालत स्थित है और इस संबंध में डिजिटल प्रौद्योगिकी की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। कोर्ट ने कहा कि देश में कानूनी सेवाओं में क्रांति लाने के लिए सूचना और प्रौद्योगिकी में परिवर्तन लाना बड़ा कदम है।


हाईकोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश में न्यायालयों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के लिए नियम-2020 लाया गया है। इस नियम का उद्देश्य है कि न्यायालयों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंस के उपयोग से संबंधित प्रक्रिया को समेकित, एकीकृत और सुव्यवस्थित करना है। यह नियम वादकारियों की चिंता को दूर करता हैं। इस व्यवस्था को देखते हुए कोर्ट ने कहा कि मामले को एक जिले से दूसरे जिले में स्थानांतरित करने का कोई आधार नहीं बनता है। कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दी।