छठ : महत्वपूर्ण प्रसाद ठेकुआ के खुशबू से गमक उठी है गलियां

छठ : महत्वपूर्ण प्रसाद ठेकुआ के खुशबू से गमक उठी है गलियां

छठ : महत्वपूर्ण प्रसाद ठेकुआ के खुशबू से गमक उठी है गलियां

19 नवम्बर । लोक आस्था का महापर्व चार दिवसीय छठ के रंग में चप्पा-चप्पा डूब गया है। गांव की गलियों में गूंजते छठ के गीत और परदेसियों की संख्या ने लोगों को पर्व के समरसता का एहसास कराना शुरू कर दिया है। बिहार से निकलकर यह महापर्व देश के विभिन्न हिस्सों से होते हुए विदेशों तक पहुंच गया है।



छठ मतलब एक ऐसा पर्व, जिसमें सभी सामाजिक भेदभाव समाप्त हो जाते हैं, हर घर से एक समूह खुशबू आनी शुरू हो जाती है। लोग जितना छठ पूजा को लेकर उत्साहित रहते हैं, उतना ही ठेकुआ के मिठास के लिए। बिहार में ठेकुआ गुड़ और आटे से बना एक मीठा पकवान है, जिसे खासतौर पर ठेकुआ में छठी मैया और सूर्य देव को भोग लगाने के लिए बनाया जाता है।



ठेकुआ मीठा के साथ बहुत ही खस्ता होता है, जिसका इंतजार सभी लोगों को बेसब्री से रहता है। छठ पर्व के दौरान बहुत से पकवान बनते हैं, जैसे खरना के दिन गुड़ और चावल की खीर बनती है। लेकिन एक चीज जो सबसे खास है वो है ठेकुआ। छठ का नाम आते ही मुंह से ठेकुआ का नाम जरूर आता है, क्योंकि प्रसाद में खासतौर पर इसे रखा जाता है। ठेकुआ को छठी मैया के साथ सूर्य देवता को भी चढ़ाया जाता है।



ठेकुआ गेहूं के आटे, गुड़ और सूजी से बनता है। यह छठ में बनने वाला विशेष पकवान है, जो सभी छठ पूजा मनाने वाले भक्तों के घर में बनता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ठेकुआ के बिना भी छठ की पूजा की जा सकती है। ठेकुआ छठ का विशेष प्रसाद होता है, जिसे खासतौर पर व्रती और उसके घरवाले साथ मिलकर बनाते हैं। इसके बिना छठ की पूजा अधूरी मानी जाती है, जो लोग छठ का व्रत नहीं करते हैं, वह लोग भी ठेकुआ प्रसाद के लिए खुद मांग करते हैं।



कई इलाकों में तो गेंहू की नई फसल का आटा पिसवाकर खासतौर पर साफ-सफाई का ध्यान रखते हुए ठेकुआ बनाया जाता है। छठ पूजा के लिए आपको जितना भी ठेकुआ बनाना है, उस हिसाब से आपको आटा लेना होता है। आटे के हिसाब से आपको घी की मात्रा रखनी होती है। फिर आटे में घी को अच्छे से मिला लें, अपने स्वादानुसार सूखे मेवे प्रसाद में डालने होते हैं।



गांव से जुड़े इस महापर्व में भी अब आधुनिकता का रंग चढ़ने लगा है। ठेकुआ के डिजाइन अलग होने लगे हैं, लेकिन इसका स्वाद आज भी वही है जो दशकों पूर्व था। अंतर बस इतना है कि पहले यह ठेकुआ प्रातः कालीन पूजा के बाद गांव-गांव में रिश्तेदारों तक बैना के रूप में पहुंचाए जाते थे। अब देश के कोने-कोने ही नहीं, विदेश तक भेजे जा रहे हैं। जिनके परिजन विदेश में रह रहे हैं, उन तक कुरियर के माध्यम से यह भेजा जा रहा है।



मधुर गीतों की मिठास भी घुली है ठेकुआ में :



लोकगीत के मधुर धुनों पर झूमती महिलाएं जब ठेकुआ बनाती हैं तो इसमें ना सिर्फ चीनी और गुड़, बल्कि महिलाओं के सुमधुर गीत की मिठास भी घुल जाती है। कहा जाता है कि सूर्य देव और छठी मैया को भी ठेकुआ काफी पसंद है, जिसके कारण इसका स्वाद और दोगुना हो जाता है। आज भी प्रातः कालीन अर्घ्य समाप्त होते ही प्रसाद रिश्तेदारों के यहां पहुंचाने का प्रचलन है। लेकिन प्रसाद में खासकर ठेकुआ का आदान-प्रदान जरूर किया जाता है।



बेटियां अपने मायके से आने वाले प्रसाद में ठेकुआ का इंतजार करते रहती है। यूं तो ठेकुआ सालों भर बनाए जाते हैं, पहले के जमाने में जब लोग कहीं बाहर जाने लगते थे तो ठेकुआ बनाकर दे दिया जाता था। लेकिन छठ के डाला में इसका विशेष महत्व है। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण व्यंजन है जो महीना-दो महीना तक भी खराब नहीं होता है, इसके स्वाद में कोई अंतर नहीं होता है।



विदेश तक पहुंचता है बिहारी प्रसाद ठकुआ :



अब जबकि छठ बिहार से निकलकर मलेशिया ही नहीं, अस्ट्रेलिया, बर्लिन, ब्रिटेन और अमेरिका समेत कई देशों में फैल चुका है, तो फेेेेमस बिहारी व्यंजन विदेश में भी चर्चित हो रहा है। बखरी के जयंत सपरिवार अस्ट्रेलिया में रहते हैं और वहीं प्रत्येक साल छठ मनाते हैं। वहां के स्थानीय लोग पूजा में शामिल होने के साथ-साथ खास करके ठेकुआ प्रसाद खाने के लिए बड़ी संख्या में आते हैं।



पूर्व राष्ट्रपति कर चुके है इस बिहारी महाप्रसाद की प्रशंसा :



बिहार के राज्यपाल रहे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद को बिहार के राजभवन में ठेकुआ इतना भा गया तो उन्हें यह मानना पड़ा कि बिहार के संस्कृति की खुशबू दुनिया में फैल गई है। उन्होंने कहा था कि बेगूसराय का छठ बर्लिन तक पहुंच गया है। बिहार की तरह धूमधाम से तो नहीं, लेकिन छठ पर्व जब दुनिया के विभिन्न देशों में मनाया जाता है तो तमाम देश भारतीय संस्कृति के इस अनूठे पर्व को देखते, समझते और सुनते हैं।