परिवार के बीच बढ़ती दूरियों को समाप्त करने में बरोह की होगी मुख्य भूमिका- डॉ. मनमोहन वैद्य

परिवार के बीच बढ़ती दूरियों को समाप्त करने में बरोह की होगी मुख्य भूमिका- डॉ. मनमोहन वैद्य

परिवार के बीच बढ़ती दूरियों को समाप्त करने में बरोह की होगी मुख्य भूमिका- डॉ. मनमोहन वैद्य

- विश्व संवाद केंद्र में पुस्तक 'बरोह' का विमोचन और परिचर्चा का आयोजन

भोपाल, 27 मार्च (हि.स.)। संघ ने शताब्दी वर्ष में कुछ पुस्तकों को आमजन तक पहुंचने का निर्णय लिया है। यह पुस्तक इसी श्रृंखला का एक प्रमुख हिस्सा है। मुझे याद आता है कि प्रा.प्र.ग. सहस्रबुद्धे द्वारा लिखित तरुण भारत में प्रकाशित होने वाले लेख पढ़ने के लिए मैं प्रत्येक शनिवार को उत्सुक रहता था। क्योंकि इन लेख में बहुत सरल भाषा में जीवन के संदेश, चुनौती और प्रसंग पढ़ने को मिलते थे। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य डॉ. मनमोहन वैद्य ने गुरुवार को विश्व संवाद केंद्र में आयोजित पुस्तक विमोचन एवं परिचर्चा कार्यक्रम में कही।

डॉ. वैद्य कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। इस दौरान उन्होंने संस्कृति अध्येता, अकादमिक प्रशासक गिरीश जोशी द्वारा अनुवादित पुस्तक ‘बरोह’ का विमोचन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी ने की।

उल्लेखनीय है कि गिरीश जोशी ने पुणे के प्रसिद्ध चिंतक, विचारक एवं लेखक प्रा.प्र.ग. सहस्रबुद्धे द्वारा जीवन की चुनौतियों का सहज समाधान देने के लिए सरल एवं रुचिकर प्रसंगों पर आधारित मराठी पुस्तक 'पारंब्या' का हिन्दी अनुवाद किया है। कार्यक्रम का आयोजन पुस्तक प्रकाशित करने वाली संस्था श्रीभारती प्रकाशन, नागपुर द्वारा किया गया।

परिवार में बढ़ रही दूरियां :

इस अवसर पर डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि संघ ने शताब्दी वर्ष में जिन पांच विषयों पर कार्य करने का निश्चय किया है उसमें कुटुंब प्रबोधन प्रमुख है। आज के समय में करियर की चाह में परिवार के साथ बैठना नहीं हो पा रहा है। सोशल मीडिया ने दुनिया के लोगों से तो हमें जोड़ दिया है लेकिन परिवार के सदस्यों से दूरियां बढ़ा दी है। इसलिए आवश्यक है कि हम मोबाइल फोन बंद साइलेंट रखे, टेलीविजन बंद करे और परिवार के साथ अपनों के साथ बैठे। पुस्तक पर चर्चा करते हुए डॉ. वैद्य ने कहा कि हम सभी परिवार के लोगों के साथ बैठे, उनसे पुस्तक पर चर्चा करे, इसमें शामिल छोटी छोटी कहानियों पर चर्चा करें तभी इस पुस्तक की सार्थकता बनेगी। इस दौरान उन्होंने पुस्तक की कहानी छुट्टी और विक्रम का संक्षिप्त विवरण दिया। इसी क्रम ने उन्होंने कहा कि हमें यह बात बहुत अच्छे से समझने की आवश्यकता है कि वैल्यू अलग है और स्किल्स अलग। अगर हम यह बात अच्छे से समझ लें और दोनों शब्दों के अर्थ को बेहतर ढंग से जान लें तो हमें जीवन में कभी कोई दिक्कत नहीं आएगी। अंत में डॉ. वैद्य ने कहा कि हमें साथ बैठना है, अतीत को झांकना है और भविष्य के स्वप्न देखना है।

पुस्तक की हर कहानी है प्रासंगिक

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि मैंने कई किताबें पढ़ी जिनका अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ और वह किताब कहीं न कहीं अपने प्रवाह छोड़ देती है। लेकिन इस किताब को गिरीश जोशी जी ने जिस सूझबूझ के साथ अनुवादित किया वह आपको अंत तक बांधे रखने में सफल होगी। उन्होंने कहा कि हिंदी के पाठकों को जोड़ने के लिए यह जो पहल की गई है वह सराहनीय है। उन्होंने आगे भी इस तरह की श्रृंखला को जारी रखने की बात कही। इस दौरान पुस्तक के बारे में गिरीश जोशी ने कहा कि 125 पृष्ट की इस पुस्तक में 48 लेख और प्रसंग शामिल है।

उन्होंने कहा कि विद्वान वही है जो कठिन भाषा को सरल और सहज ढंग से आमजन तक पहुंचा सके, सहस्त्रबुद्धे जी ने वही कार्य किया है। 'बरोह' का संबंध वटवृक्ष से होता है। 'बरोह' का नाम सुनते ही आँखों के सामने वटवृक्ष आ जाता है। अन्य वृक्षों की भी अनेक शाखाएँ होती है, लेकिन 'बरोह' तो केवल वटवृक्ष का ही वैभव है। वटवृक्ष की शाखाओं से 'बरोह' नीचे उतरकर पुनः धरती में प्रविष्ट होती है और एक नवीन वटवृक्ष को जन्म देती है। ऐसा वृक्ष जो नया होने के बावजूद पुराने से जुड़ा रहता है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अंशुल राय और आभार प्रदर्शन मंगेश जोशी ने किया।