भारत का 23 प्रतिशत हिस्सा निमोनिया से ग्रसित : डॉ. जीएस तोमर
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना से निमोनिया एवं सांस की बीमारियों में कमी आयी
प्रयागराज, 13 नवम्बर । आंकड़े बताते हैं कि भारत का 23 प्रतिशत हिस्सा निमोनिया से ग्रसित है और इससे मरने वालों की संख्या 14-30 प्रतिशत के बीच है। निमोनिया दुनिया भर में बढ़ती मृत्यु दर का प्रमुख कारण बना हुआ है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के माध्यम से आज गांव में भी हर घर में चूल्हे के धुएं से मुक्ति मिली है, जिससे निमोनिया एवं सांस की अन्य बीमारियों में कमी आयी है। यह बातें आरोग्य भारती के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य एवं वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. जी.एस तोमर ने निमोनिया के बारे में जागरूक करते हुए कही।
आरोग्य भारती एवं विश्व आयुर्वेद मिशन के संयुक्त तत्वावधान में विश्व निमोनिया दिवस के अवसर पर ऑनलाइन स्वास्थ्य संवाद आयोजित किया गया। जिसमें डॉ. तोमर ने कहा कि संक्रमण के कारण फेफड़े में सूजन आ जाती है, जिसे निमोनिया कहते हैं। हालांकि ज्यादातर निमोनिया बैक्टीरिया के संक्रमण की वजह से होता है, इंफ्लूएंजा या कोविड-19 वायरस जैसे वायरल संक्रमण भी फेफड़ों को प्रभावित कर सकते हैं। कोरोना महामारी इसका जीता-जागता उदाहरण है। निमोनिया खासतौर से 05 वर्ष से कम उम्र में बच्चों एवं 65 वर्ष से अधिक वृद्धों के लिए जानलेवा है।
उन्होंने बताया कि गाय के देशी घी में कपूर, सेंधा नमक मिलाकर सीने पर मालिश के बाद सेंकाई करने एवं सितोपलादि चूर्ण को तुलसी पत्र स्वरस एवं आर्द्रक स्वरस से सेवन करने पर लाभ मिलता है। श्वास कास, चिंतामणि रस एवं त्रिभुवन कीर्ति रस भी प्रभावी है जिसका प्रयोग चिकित्सक के परामर्श से किया जा सकता है। प्रयागराज के वरिष्ठ चेस्ट फिजिशियन डॉ आशीष टंडन ने कहा कि निमोनिया के अधिकांश रोगियों को आमतौर पर ठंड लगना और तेजी से बुखार आने का अनुभव होता है। ऐसे लक्षण होने पर चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए।
मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज की पूर्व रिसर्च अधिकारी डॉ शांति चौधरी ने इसके कारणों पर विचार रखे। कहा कि बच्चों में पोषक तत्वों की कमी होना, घर या वर्कप्लेस पर वेंटिलेशन की कमी, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर के लिए स्टेरॉयड या अन्य इम्यूनोसप्रेशेन्ट दवाओं का प्रयोग, पर्यावरण प्रदूषण प्रमुख कारण हैं। निमोनिया भी एक संक्रामक बीमारी है, जो खांसने, छींकने, छूने और यहां तक की सांस के जरिए फैलती है। बहुत से लोग ऐसे भी होते हैं जिनमें निमोनिया के कोई लक्षण नहीं दिखते, लेकिन वे भी बीमारी फैला सकते हैं। न्यूमोनिया से बचाने के लिए 6 माह तक शिशु को माँ का दूध अवश्य पिलाना चाहिए।
एपेक्स इंस्टीट्यूट आफ आयुर्वेदिक मेडिसिन चुनार मिर्जापुर के प्रो वीरेंद्र कुमार विभागाध्यक्ष कौमारभृत्य ने कहा कि महर्षि कश्यप द्वारा बताये गये स्वर्ण प्राशन टीकाकरण से सामान्य श्वसन तंत्र के रोगों से लेकर कोरोना आदि अन्य नई बीमारियों से बचाव हेतु बच्चों में रोग प्रति रोधक क्षमता विकसित की जा सकती है। उन्होंने आयुर्वेदिक औषधियों वासा, तुलसी, भारंगी, सेंधा नमक से स्वनिर्मित नेबुलाइजर पर किये गये शोध के विषय मे जानकारी दी। आयुर्वेद चिकित्साधिकारी डॉ अवनीश पाण्डेय ने कहा कि निमोनिया की रोकथाम करने का एक प्रभावी तरीका है, समय पर टीकाकरण कराना।