सरकारी वकीलों की नियुक्ति मामले में आदेश सुरक्षित
सरकारी वकीलों की नियुक्ति मामले में आदेश सुरक्षित
प्रयागराज, 03 अगस्त। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य विधि अधिकारियों की नियुक्तियों में मनमानी और सुप्रीम कोर्ट से घोषित मानकों का पालन न करने के आरोप में दाखिल जनहित याचिका पर फैसला सुरक्षित कर लिया है।
यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने दिया है। अधिवक्ता सुनीता शर्मा एवं प्रियंका श्रीवास्तव की जनहित याचिका पर बहस करते हुए अधिवक्ता ने कहा कि सरकारी वकीलों को नियुक्त करते समय राज्य द्वारा विहित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। उन्होंने यह भी कहा कि नियुक्त किए गए तमाम अधिवक्ताओं में हाईकोर्ट में वकालत के अनुभव योग्यता की कमी है। जिससे मुकदमों की सुनवाई करने से विचाराधीन मुकद्दमों की संख्या बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि ऐसे कई अधिवक्ताओं को राज्य विधि अधिकारी के रूप में नियुक्ति दी गई है, जिन्हें हाईकोर्ट में न्यायिक कार्य का अनुभव नहीं है और हाईकोर्ट में उनका रजिस्ट्रेशन दो या तीन वर्ष पूर्व का है। कहा यह भी गया कि नियुक्तियों में बृजेश्वर चहल बनाम स्टेट ऑफ पंजाब मामले में पारित सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश का पालन भी नहीं किया गया है। नियुक्ति पाने वालों में कुछ आपराधिक प्रवृत्ति के हैं तो कई जिला न्यायालय में वकालत करने वाले नियुक्त कर लिए गए हैं। जो कोर्ट में सरकार का सही पक्ष नहीं रख पाते। उन्होंने कहा कि रिटायर न्यायाधीश की कमेटी बनाकर ऐसी नियुक्तियों में मानकों के उल्लंघन की जांच की जानी चाहिए और भविष्य में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार योग्य अनुभवी अधिवक्ता की ही नियुक्ति की जानी चाहिए।
राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की और कहा कि वकील को वकीलों के खिलाफ याचिका दायर नहीं करनी चाहिए। यह भी कहा कि सभी नियुक्तियां कानून के अनुसार की गई हैं। उन्होंने कहा कि महाधिवक्ता की अध्यक्षता वाली शीर्ष अधिकारियों की समिति ने गहन जांच के बाद ही योग्य वकीलों की नियुक्तियां की हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जनहित याचिका के जरिए नियुक्त किए गए वकीलों की योग्यता पर सवाल उठाना उनकी गरिमा को ठेस पहुंचाना होगा। बिना पक्षकार बनाये उन्हें अयोग्य कहना अनुच्छेद 21 के तहत मिले गरिमामय जीवन के मूल अधिकार का हनन है। कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि यह उन लोगों द्वारा की गई याचिका है जिन्हें नियुक्तियां नहीं मिल पाई हैं। याची अधिवक्ता ने पूरक हलफनामे में कुछ नये तथ्य दाखिल करने की अनुमति मांगी। किंतु कोर्ट ने समय देने से मना कर दिया।