राष्ट्रपति चुनाव में सरकार का मास्टर स्ट्रोक

डॉ. विपिन कुमार

राष्ट्रपति चुनाव में सरकार का मास्टर स्ट्रोक

राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर भाजपा नीति राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने विपक्ष को दुविधा में डाल दिया है। यह निर्णय न केवल विपक्ष को घेरने का प्रयास है बल्कि इसके राजनीतिक मायने भी हैं। सरकार का यह मास्टर स्ट्रोक है। इसका असर आगामी लोकसभा चुनाव के साथ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी दिखेगा। इस निर्णय से विपक्ष कमजोर होगा। विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाकर अपनी हार पहले से ही स्वीकार कर ली है। आंकड़ों पर नजर डालें तो एनडीए लगभग अड़तालीस फीसदी वोट के साथ बढ़त बनाए हुए हैं। यूपीए के पास कुल तेईस फीसदी वोट ही है। अर्थात एनडीए के पास 5,35,000 वोट हैं और उसे मात्र 1.2 फीसदी अर्थात 13,000 वोटों की जरूरत है, जबकि यूपीए के पास 2,92,000 वोट हैं, लगभग एनडीए से आधे और उसे इस फासले को पाटने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। ऐसे में राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की हार सुनिश्चित है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह निर्णय निःसंदेह मास्टर स्ट्रोक है।

प्रधानमंत्री मोदी अपने फैसलों के लिए जाने जाते हैं और उनका यह फैसला भी विपक्ष को चौंकाने वाला रहा। द्रौपदी मुर्मू संथाल आदिवासी समूह से आती हैं। उनका प्रभाव झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल के अधिकांश इलाकों में है। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने प्रधानमंत्री को यह भरोसा दिया है कि वह द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वोट करेंगे। उन्होंने अपने राज्य के सभी विधायकों से अपील की है कि वे दलगत भेदभाव से ऊपर उठकर द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान करें। वाईएसआरसीपी ने भी पिछले राष्ट्रपति चुनाव में बीजेडी के साथ मिलकर एनडीए का समर्थन किया था, जिसकी वजह से एनडीए के उम्मीदवार रामनाथ कोविन्द राष्ट्रपति चुने गए थे। उस समय भी एनडीए के पास कुल 5,37,000 वोट थे, जिन्हें टीआरएस, बीजेडी और वाईएसआरसीपी का समर्थन मिला। इस बार भी एनडीए की जीत सुनिश्चित लग रही है लेकिन यह चुनाव मात्र राष्ट्रपति चुनने का नहीं है बल्कि इसके बहुत सारे राजनीतिक मायने भी हैं।



द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी से जिन प्रदेशों में गैर राजग सरकारें हैं उनके सामने बड़ी दुविधा खड़ी हो गई है। झारखंड विधानसभा में 81 में से 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, इनमें से फिलहाल 26 सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस का कब्जा है। ऐसे में द्रौपदी मुर्मू के विरोध में वोट करना झारखंड सरकार को भारी पड़ सकता है। इधर झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन एवं द्रौपदी मुर्मू के बीच अच्छे संबंध रहे हैं। इसके साथ साथ वे संथाल आदिवासी समूह से आती हैं। इसका ध्यान भी हेमंत सोरेन जरूर रखेंगे। यदि झारखंड सरकार द्रौपदी मुर्मू का समर्थन नहीं करती तो एनडीए सरकार को उन्हें घेरने का मौका मिलेगा और आगामी चुनाव हेमंत सोरेन के लिए आसान नहीं होगा। हेमंत सोरेन अब दुविधा में है कि वह कांग्रेस के विरोध में जाकर द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करें या आदिवासी संथाली समूह के साथ विश्वासघात करें। यह धर्मसंकट की स्थिति है।



दूसरी तरफ ‘बांगला मानुष’ की बात करने वाली ममता बनर्जी ने बंगाल से बाहर बिहार के यशवंत सिन्हा को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाकर खुद बंगाल के साथ धोखा किया है। ममता बनर्जी ने यशवंत सिन्हा का नाम आगे बढ़ाकर भाजपा को एक मौका दिया है। भाजपा आगामी विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे को आगे बढ़ाकर ममता बनर्जी को घेरेगी जरूर। ऐसे में विपक्ष की हालत गले में फंसी हड्डी की तरह हो गई है। लोकसभा में 45 सीटें जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित हैं। द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने से जनजाति समूह तक यह संदेश पहुंच गया है कि भाजपा उनके हितों एवं उनके लोगों का सम्मान कर रही है। इसका फायदा लोकसभा चुनाव में दिखाई पड़ेगा। देश में लगभग 8.6 फ़ीसदी आदिवासी रहते हैं। वह इस नाते भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दे सकते हैं। उम्मीद की जा रही है कि यदि आदिवासियों का वोट भाजपा की तरफ जाता है तो उसे लगभग 100 सीटों का फायदा होगा और विपक्ष की हालत और खराब होगी। झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और गुजरात में जनजाति समूह की बड़ी संख्या निवास करती है। इन राज्यों में भाजपा को अच्छी खासी बढ़त मिल सकती है। दशकों से आरएसएस ने आदिवासी बहुल इलाकों में ‘वनवासी कल्याण आश्रम’ के माध्यम से जो काम किया है, उसका असर अब दिखने लगा है। कुल मिलाकर भाजपा ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर न केवल संथाली जनजाति का मान-सम्मान बढ़ाया बल्कि अपने राजनीतिक हितों को भी संरक्षित कर लिया है।